MEERUT : बंगाल से काम की तलाश में मेरठ आए हजारों सर्राफा कारीगर बंद की वजह से पैसे-पैसे को मोहताज हैं। हर सुबह उनकी यही दुआ रहती है कि आज बाजार खुल जाए और उनकी रोजी-रोटी का इंतजाम हो सके। किसी के घर में चार तो किसी  के घर में आठ लोग हैं, लेकिन कमाने वाला एक। महंगाई के जमाने में छह-सात हजार रुपए में घर चलाने को मजबूर कारीगरों की हालत हर दिन बिगड़ती जा रही है। हमने कुछ कारीगरों से बात की तो उनका दर्द जुबां पर आ गया

सडक़ पर आ जाएंगे
बंगाल के हुबली से आए राजू के घर में चार लोग हैं। दस हजार की आमदनी में घर का किराया, घर का राशन, दूध, बिजली का बिल, बच्चों की छोटी-छोटी डिमांड, बीवी की फरमाइशों के अलावा उसे अपने मां-बाप के लिए कुछ पैसे घर भेजने होते है। राजू का कहना है कि हालात में कोई बदलाव नहीं आया तो सडक़ पर रहने को मजबूर हो जाएंगे।

टैक्स की फांस गले पड़ी
नितिन महीने भर पसीना बहाने के बाद सिर्फ छह हजार कमा पाता है। जिसमें उसे दो बच्चों के स्कूल की फीस के साथ ही घर के सारे खर्च भी पूरे करने होते हैं। सात दिनों से सर्राफा कारोबार बंद है। नितिन के पास खर्चे के पैसे भी खत्म हो चुके हैं। उसका कहना है कि मालिक का कोई माल पकड़ा जाता है तो उसका टैक्स कारीगर को अपनी जेब से भरना पड़ता है। हमें तो टैक्स कैलकुलेशन भी नहीं आती और सरकारी टैक्स का फंदा हमारे गले में फंस रहा है।

उधार से चल रही जिंदगी
मेराजुद्दीन की माने तो सोने की बढ़ती कीमत की वजह से पहले ही व्यापार कमजोर चल रहा था। अब टैक्स लादने से व्यापारी परेशान हैं। उनकी परेशानी का सीधा असर कारीगरों पर पड़ रहा है। अब अप्रैल में बेटी के स्कूल की फीस भरने का टाइम भी आ रहा है। जब काम नहीं करेंगे तो पैसा कहां से आएगा। सात दिनों से वैसे ही उधारी में डूबा हूं। अगर हालात जल्द नहीं सुधरे तो आत्महत्या की नौबत आ जाएगी।

कोई रास्ता निकले
शाहा हुसैन की अगले छह महीनों में शादी होने वाली है। पांच हजार रुपए महीना कमाने के बाद जो बचत जमा किया वो शादी की तैयारियों में खत्म हो चुका है। अब घर खर्च और बाकी इंतजामों के लिए जेब में पैसे नहीं है। वो कहते हैं कि अल्लाह से यही दुआ है कि सरकार व्यापारियों की मांगे मान ले या फिर कोई समझौता हो जाए।

जाने क्या होगा
मोनू वर्मा कहते हैं घर में मैं अकेला कमाने वाला हूं। उसमें भी अभी आमदनी बहुत कम है। महीने भर में 3500 कमा पाता हूं। शादी तो नहीं हुई है लेकिन मां-बाप को खर्च भी भेजना होता है। पिछले सात दिनों से कर्जा लेकर काम चला रहा हूं। पता नहीं आगे क्या होगा, कुछ समझ नहीं आ रहा है।

दुकानदार ने बंद किया उधार
सुंदर शर्मा की दो बेटी है। दोनो स्कूल जाती है। परिवार में पांच लोग है। सुंदर ने बताया कि परचून वाले ने उधार देना बंद कर दिया है। ऐसे में मालिकों से कर्जा लेकर घर में चूल्हा जल रहा है। बाजार खुलने के बाद पहले तो वो कर्जा ही चुकाना होगा। उसके बाद ही कोई कमाई हो पाएगी। ऊपर से बेटियों के स्कूल की फीस का बोझ भी आने वाला है। कोई मुझे बता दे कि आगे क्या होगा।

या तो मांगे मानो या ट्रेन चलवाओ
मेरठ में 25 हजार कारीगर है। जिनके दम पर सर्राफा कारोबार चल रहा है, जिसमें से अधिकतर बंगाली हैं। उनका कहना है कि काम बंद होने से घर वापस लौटने की नौबत आ गई है। या तो ममता बनर्जी अपनी ताकत का इस्तेमाल करके केंद्र सरकार पर व्यापारियों की मांगे मनवाने के लिए दवाब बनाएं या फिर एक स्पेशल ट्रेन फ्री में चलवा दें। ताकि सभी सर्राफा कारीगर उसमें बैठकर अपने घर वापस लौट सकें। फ्री इसलिए क्योंकि अब ट्रेन का किराया देने के लिए भी पैसे नहीं बचे हैं।