-बंगाल की खाड़ी में पहले ही बदल चुका है चक्रवात का केन्द्र

-अब अल नीनो इफेक्ट की चेतावनी ने बढ़ा दी है चिंता

-एक्सप‌र्ट्स ने कहा, खूब तपे गंगा मैदान तो कम होगा लोकल लेवल पर इफेक्ट

vikash.gupta@inext.co.in

ALLAHABAD: अमेरिकी साइंटिस्ट समेत भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने इस बार देश में अल नीनो इफेक्ट की संभावना जता दी है। जिसमें देश में साठ फीसदी से कम वर्षा की चेतावनी ने सूखे के संकेत दिए हैं। इससे गंगा यमुना के मध्यवर्तीय भाग में बसी संगम नगरी भी अछूती नहीं होगी। फ्यूचर में अगर मौसम विभाग की भविष्यवाणी सच साबित हुई तो खासकर पूर्वी उत्तर प्रदेश (जिसमें इलाहाबाद भी आता है) को दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। क्योंकि पहले ही बंगाल की खाड़ी में बदली मौसमी दशाओं ने यहां मानसून को काफी हद तक प्रभावित कर रखा है।

हिंद महासागर में गर्म धाराओं का पहुंचना है जारी

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में ज्योग्राफी डिपार्टमेंट के प्रो। बीएन मिश्रा ने बताया कि प्रशांत महासागर में पेरु के तट पर समुद्रीय धाराओं का तापमान पांच से सात डिग्री तक बढ़ गया है। अमेरिकन साइंटिस्ट ने भी इसकी पुष्टि कर दी है। उन्होंने कहा कि यदि एल नीनो इफेक्ट यूं ही प्रभावी बना रहा तो कुछ समय के अन्तराल के बाद गर्म समुद्रीय धाराओं का आस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया होते हुए हिंद महासागर के दक्षिण में पहुंचना जारी रहेगा। जिससे हिंद महासागर का भी तापमान तकरीबन पन्द्रह डिग्री तक बढ़ेगा और इससे देश में सूखे की संभावना बलवती होगी।

IMD ने भी कर दी है पुष्टि

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में एटमासफेरिक एंड ओसियन साइंस डिपार्टमेंट के डॉ। सुनीत द्विवेदी ने भी प्रो। मिश्रा की बात से सहमति जताते हुए कहा कि इंडियन मेट्रोलाजिकल डिपार्टमेंट ने भी इसकी पुष्टि कर दी है। उन्होंने बताया कि अल नीनो का इफेक्ट तीन से सात साल के क्रम में देखने को मिलता है। उन्होंने बताया कि अल नीनो इफेक्ट से भारत की ओर आने वाली हवाओं पर असर पड़़ता है और वे बारिश करने के बजाय हल्की पड़ती जाती हैं। इससे पहले वर्ष ख्0क्ख् में औसत से कम बारिश होने के कारण राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र, चंडीगढ़ जैसी जगहों पर सूखा पड़ा था।

गंगा का मैदान तपे तो कम होगा इफेक्ट

बता दें कि प्री मानसून की संभावना ख्0 मई के बाद बननी शुरू हो जाती है। एक जून को मानसून केरल के तट पर पहुंच जाता है और फिर धीरे-धीरे उत्तर भारत की ओर बढ़ना शुरू होता है। क्भ् जून तक यह पूरी तरह से छा जाता है। लेकिन अभी तक केरल के तट पर ऐसी कोई सुगबुगाहट नहीं है। इस बाबत इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में ज्योग्राफी डिपार्टमेंट के डॉ। एसएस ओझा बताते हैं कि प्री मानसून के कोई संकेत फिलहाल तो नहीं मिल रहे। उन्होंने कहा कि यदि गंगा का मैदानी इलाका लगातार पन्द्रह दिन तक खूब तपे तो इससे लोकल लेवल पर इसका प्रभाव काफी कम हो जाएगा।

तो इसलिए पड़ेगी दोहरी मार

एक ओर जहां अल नीनो के इफेक्ट ने सभी को सकते में डाल रखा है। वहीं इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में ज्योग्राफी डिपार्टमेंट के एक्स हेड ऑफ डिपार्टमेंट और कन्ट्री के जाने माने वेदर एक्सपर्ट प्रो। सवीन्द्र सिंह ने खास बातचीत में बताया कि पहले बंगाल की खाड़ी के उत्तरी हिस्से में चक्रवात बनता था। जिससे पश्चिम बंगाल, मेघालय, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार के इलाके आते हैं, वहां अच्छी बरसात होती थी। ख्क्वीं सदी की शुरुआत से ही चक्रवात बनने का केन्द्र मध्य बंगाली की खाड़ी तक पहुंच गया। इससे पहले ही उपरोक्त जगहों पर अच्छी वर्षा नहीं हो पा रही है। ऐसे में अल नीनो प्रभाव का गहरा जाना दोहरी चिंता का विषय बन गया है।