-पटना लिटरेचर फेस्टिवल : नज्म, शेरो, शायरी से यादगार रहा आखिरी दिन

PATNA: साहित्यकारों के जमघट, सामाजिक सरोकारों पर नई बानगी और फिंजा में जादूई अहसास के छोड़ने के साथ पटना लिटरेचर फेस्टिवल रविवार को संपन्न हो गया। फिर तो एक उदासी सी थी। यह उदासी साहित्य उत्सव से बिछड़ने की थी। बस रह गई थी दिल-ओ-दिमाग में वह रोशनी जिसने तीन दिनों तक पटना को अपने रंग में रंगे रखा। कला, संस्कृति एवं युवा विभाग और नवरस स्कूल ऑफ परफॉर्मिग आ‌र्ट्स के द्वारा दैनिक जागरण के सहयोग से आयोजित तीन दिवसीय महोत्सव की आखिरी शाम शेर-ओ-शायरी की सजी।

चंद-लम्हे कोई तो सुस्ता ले

इस खास मौके पर अजमेर से आए मशहूर शायर शीन काफ निजाम ने पढ़ा- 'मेरे अल्फाज में असर रख दे। सीपियां हैं तो फिर गुहर रख दे। मंजिलें भर दे आंख में उस की। उस के पैरों में फिर सफर रख दे। चंद-लम्हे कोई तो सुस्ता ले। राह में एक दो शजर रख दे। शकील जमाली ने पढ़ा- 'दिल को जब तक हो बहलाया जा सकता है। जहर तो मरते वक्त ही खाया जा सकता है। सबसे पहले दिल के खालीपन को भरना। पैसा तो सारी उम्र कमाया जा सकता है। पटना के कासिम खुर्शीद ने पढ़ा- 'मुझे फूलों से, बादल से, हवा से चोट लगती है। अजब आलम है

आखिरी दिन हुए 13 सत्र

इसके पहले रविवार को कुल 13 सत्र हुए। 'प्रकृति आज क्षुब्ध है, तो कल क्रुद्ध होगी' विषयक विमर्श में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के अपर मुख्य सचिव त्रिपुरारी शरण ने कहा कि औद्योगिक क्रांति को कभी वरदान माना गया मगर आज वही अभिशाप के रूप में सामने आ रही है।