उन्होंंने कहानी सुनाना शुरू किया। जंगल में एक हाथी रहता था। एक दिन वह पेड़ों से पत्तियां तोड़ रहा था। तभी एक मक्खी आई, भन्न की आवाज के साथ उड़ते हुए उसके कान के पास से गुजर गई। हाथी ने अपने लंबे कान जोर से हिलाए। मक्खी वापस लौटी, हाथी ने उसे दूर रखने के लिए एक बार फिर अपने कानों को हिलाया। ऐसा कई बार हुआ। फिर हाथी से रहा नहीं गया। उसने मक्खी  से पूछा कि आखिर तुम इतनी बेचैन क्यों हो।

मक्खीं ने जवाब दिया, मैं जो भी देखती, सुनती या सूंघती हूं उसकी ओर आकर्षित हो जाती हूं। मेरी पांचों इंद्रियां व जो भी मेरे आसपास घट रहा है वह चारों ओर से मुझे अपनी ओर खींचता रहता है। मैं चाहकर भी पीछा नहीं छुड़ा पाती। तुम इतना शांत और स्थिर कैसे बने रहते हो।

हाथी ने सूंड़ जरा ऊपर उठाई और बोलना शुरू किया। मैं कोई भी काम ध्यान लगाकर करता हूं। मेरी इंद्रियों का उस पर कोई वश नहीं होता है। काम में तल्लीन हो जाता हूं, दिमाग एक दिशा में व मन शांत रहता है। उदाहरण के लिए अगर मैं खाना खा रहा हूं तो उसमें डूब जाता हूं। उसका आनंद लेता हूं। इस तरह मैं खाने को न सिर्फ अच्छी तरह से चबाता बल्कि उसमें खुशी भी महसूस करता हूं। मैं अपने ध्यान को भटकने नहीं देता व उस पर काबू रखता हूं जो मुझे शांत बनाए रखता है।

यह सुनकर शिष्य की आंखें खुल गईं। उसके चेहरे पर मुस्कान बिखर गई। उसने अपने गुरु की ओर देखकर कहा कि अब मुझे समझ में आया कि मेरा मन भटकता क्यों रहता है।