-नेशनल स्पो‌र्ट्स डे पर जुनूनी खिलाडि़यों का हुआ सम्मान, अब मिलेगी नौकरी

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क्कन्ञ्जहृन्: बुधवार को पाटलिपुत्र स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स में हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की जयंती के मौके पर आयोजित खेल सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। कला संस्कृति एवं युवा विभाग की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने कहा कि हमारे खिलाडि़यों को काफी लंबी दूरी तय करनी है। खेल और खिलाडि़यों के विकास के लिए पैसों की कोई कमी नहीं होने दी जाएगी। खेल कोटा से बहाली का रास्ता भी साफ हो रहा है। इस मौके पर 32 खेलों के 410 खिलाडि़यों को सम्मानित किया गया। इस मौके पर खेल मंत्री कृष्ण कुमार ऋषि, बिहार राज्य खेल महानिदेशक अरविंद पांडेय, निदेशक सह सचिव आशीष सिन्हा व अन्य उपस्थित थे।

खिलाडि़यों को मिलेगी नौकरी

खेल सम्मान समारोह के पहले से ही खेल कोटा से सरकारी बहाली लंबित होने का मामला गर्म था। इस मामले पर डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने कहा कि खेल के जरिए प्रदेश और देश का नाम ऊंचा करने वाले खिलाडि़यों को राज्य की सरकारी सेवाओं में भरपूर मौका दिया जाएगा। अब तक 155 खिलाडि़यों को नौकरी दी जा चुकी है जबकि 258 की नौकरी के लिए प्रक्रिया चल रही है। उन्होंने कहा 3 महीने में टास्क फोर्स की रिपोर्ट आने के बाद खेल एवं खिलाडि़यों के विकास की विशेष कार्य योजना बनाई जाएगी।

कॉम्प्लेक्स के पास स्टेडियम

डिप्टी सीएम ने कहा कि पिछले वर्ष इसी समारोह में उन्होंने घोषणा की थी कि पाटलिपुत्र स्पोटर््स कॉम्प्लेक्स के बगल में एक नए स्टेडियम का निर्माण किया जाएगा। इस घोषणा को पूरा करने का वक्त आ गया है। नए स्टेडियम के निर्माण के लिए साढ़े तीन एकड़ जमीन की व्यवस्था हो गई है और इसका हस्तांतरण भी किया जा चुका है। इसके अलावा गर्दनीबाग में सरकारी क्वार्टरों को तोड़कर नए निर्माण होने हैं। यहां भी सरकार एक खेल परिसर विकसित करेगी।

जिद कर मिली बड़ी पहचान

पटना जिला, बाढ़ की रहने वाली 18 वर्षीय स्वीटी कुमारी ने एशियन गेम्स, 2017 में रग्बी में स्वर्ण पदक जीतकर पूरे प्रदेश का नाम रोशन किया है। एक बेहद साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाली स्वीटी कहती है कि मेरे परिवार वाले कभी नहीं चाहते थे कि मैं रग्बी खेलूं। इसमें चोट लगने और महंगे खेल होने के कारण उनका कभी समर्थन नहीं किया। मैं पहले एथलेटिक्स खेलती थी। तभी बिहार रग्बी एसोसिएशन के सेक्रेटरी मिले। उन्होंने मुझे मौका दिया। मैं 2 बार इंडिया टीम का हिस्सा भी रही।

विजय की शमां जलाई

शमा परवीन ने नवम्बर, 2017 में ईरान में हुए एशियन गेम चैम्पियनशिप में कबड्डी में गोल्ड मेडल जीता। शमा कहती है कि मेरे जैसे मुस्लिम एवं रूढि़वादी समाज से आने के बावजूद आज यहां हूं तो यह मेरे लिए बहुत बड़ी सफलता है। पर्दा प्रथा और लड़कियों को मौका नहीं मिलने के कारण आज भी कई प्रतिभाशाली लड़कियां खेल के मैदान से दूर है। पिता मो। इलियास एक प्राइवेट नौकरी करते हैं। उन्होंने ही मुझे बहुत सर्पोट किया। मैं कई बार हार का सामना की लेकिन मैनें हार नहीं माना।

अमरजीत सिंह का पैर टूटा पर हौसला कभी नहीं

कहते हैं कि यदि मन में खुद पर विश्वास हो तो हर बाधा दूर हो सकती है। कुछ ऐसा ही उदाहरण हैं भोजपुर, आरा के ग्राम सोहरा निवासी एवं अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग तैराक 35 वर्षीय अमरजीत सिंह का। अमरजीत ने कहा कि मैं बचपन से ही एक अच्छा तैराक रहा हूं। मैंने कई नेशनल मेडल भी जीते हैं। लेकिन वर्ष 2008 में एक ट्रेन हादसे के बाद मेरा पैर कट गया और मैं व्हीलचेयर पर आ गया। लेकिन तब भी मेरा हौसला नहीं टूटा। मैंने गंगा नदी में हमेशा की भांति अभ्यास जारी रखा। मेरी इसी जिद की वजह से मैंने कॉमनवेल्थ गेम्स में दिव्यांग फ्री स्टाइल तैराकी में गोल्ड मेडल प्राप्त किया।