-केजीएमयू में पीजी सीटों को बढ़ाने का मामला

-आर्थोपेडिक, आप्थैल्मिक और ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग को झटका

LUCKNOW :

मानक विपरीत फैकल्टी की भर्ती, फैकल्टी की कमी और मरीजों की गिरती संख्या केजीएमयू पर भारी पड़ गई। इन्हीं कारणों से मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने हड्डी रोग, नेत्र रोग और ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग में पीजी की सीटें बढ़ाने से इंकार कर दिया है। 21 अगस्त को एमसीआई की पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन कमेटी के मिनट्स जारी होने पर केजीएमयू की पोल खुल गई।

फैकल्टी की कमी

आप्थैल्मोलॉजी विभाग की ओर से एमएस कोर्स की सीटें बढ़ाने का प्रस्ताव था। एमसीआई के इंस्पेक्शन के दौरान वहां पांच फैकल्टी मेंबर मौजूद नहीं थे। पीजी यूनिट में भी फैकल्टी की कमी मिली थीं। जिससे एमसीआई ने उसे यूनिट ही नहीं माना। एमसीआई ने कहा कि विभाग में उपलब्ध बेड की संख्या के सापेक्ष केवल 22 फीसद मरीज ही भर्ती हैं। भर्ती मरीजों की संख्या बढ़ने की जगह कम हो गई है। साल 2015 में 3334 मरीजों को भर्ती कर इलाज दिया गया था। वहीं 2017 में सिर्फ 3260 मरीज ही भर्ती किए गए। मेजर सर्जरी की संख्या भी 2015 में 3051 से घटकर 2017 में 2868 रह गई। विभाग में न तो जर्नल हैं और न ही तीन वर्ष से डे केयर की सुविधा। इस कारण एमसीआई ने विभाग को एमएस की सीटें बढ़ाने की अनुमति नहीं दी।

आर्थोपेडिक विभाग

आर्थोपेडिक विभाग ने भी एमएस की सीटें बढ़ाने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन एमसीआई ने इसकी अनुमति भी नहीं दी। एमसीआई की रिपोर्ट के अनुसार विभाग में खामियां मिली हैं। पीजी यूनिटों में फैकल्टी पर्याप्त नहीं थी। मरीजों की कम होती संख्या भी सीटे न बढ़ने का कारण बनी।

और कम हो गए मरीज

हड्डी रोग विभाग में पिछले तीन वर्षो में मरीजों की संख्या लगातार कम हो गई। ओपीडी में मरीजों की संख्या 69644 से घटकर 34102 रह गई। जबकि भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या 2899 से घटकर 1223 प्रति वर्ष पहुंच गई। साथ ही छोटे ऑपरेशन की संख्या भी 4022 से कम होकर 509 रह गई। विभागीय लाइब्रेरी में तीन साल के दौरान एक भी किताब नहीं खरीदी गई।

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डॉक्टर की तैनाती पर सवाल

एमसीआई ने हड्डी रोग विभाग में तैनात डॉ। मयंक महिंद्रा की नियुक्ति सवाल खड़े कर दिए हैं और कहा है कि डॉ। मयंक ने नान टीचिंग अस्पताल से डीएनबी कोर्स किया है। उनके पास टीचिंग इंस्टीट्यूट से जूनियर रेजीडेंट के रूप में तीन वर्ष का एक्सपीरियंस नहीं है। उन्हें सीधे सीनियर रेजीडेंट और उसके बाद एसोसिएट प्रोफेसर पर तैनाती कैसे दे दी गई। जबकि नियम है कि पहले तीन वर्ष जूनियर रेजीडेंट और फिर तीन वर्ष सीनियर रेजीडेंट के रूप में काम करने के बाद ही असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर नियुक्ति हो सकती है।

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कमी पड़ी भारी

केजीएमयू के ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग में इम्युनोहीमैटोलॉजी एंड ब्लड ट्रॉसफ्यूजन पर एमडी कोर्स शुरू होने की अनुमति मांगी गई थी। एमसीआई ने विभागीय खामियों के कारण परमीशन नहीं दी। एमसीआई ने कहा है कि विभाग की प्रो। तूलिका चंद्रा और एसोसिएट प्रो। डॉ। आशुतोष सिंह के पास आईएचबीटी का दो वर्ष का एक्सपीरियंस नहीं है।

कोट

एमसीआई इंस्पेक्शन के बाद छोटी मोटी आपत्तियां आ जाती हैं जिनका निराकरण निर्धारित समय में भेज दिया जाता है और आपत्तियां एमसीआई द्वारा निस्तारित कर दी जाती हैं।

डॉ। संतोष कुमार, प्रवक्ता, केजीएमयू