जब नवाज़ शरीफ प्रधानमंत्री बने थे उस वक़्त लोगों को लग रहा था कि वो पाकिस्तान को बड़ी मुश्किलों से निजात दिलाएंगे. ये मुश्किलें थीं बेकाबू चरमपंथ, चौतरफा संकट, गिरती हुई अर्थव्यवस्था, बिजली की कमी और कमजोर विदेश नीति.

इसके बजाय जोर पकड़ते चरमपंथ को लेकर लोगों की बढ़ती नाराज़गी के बोझ तले नवाज़ शरीफ बुरी तरह से लड़खड़ा गए हैं. मुल्क की आर्थिक हालत खस्ता है और उनकी सरकार लाचार दिख रही है.

यहाँ तक कि नौकरशाही के वरिष्ठ पद खाली हैं. सार्वजनिक निगमों के प्रमुखों की नियुक्ति नहीं की गई है और अमरीका और ब्रिटेन जैसे महत्वपूर्ण देशों में राजदूतों की तैनाती का इंतजार किया जा रहा है.

हालांकि सेना और चुनी हुई सरकार की साझीदारी को लेकर चल रही बातचीत के बहुत कम नतीजे सामने आए हैं. पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार इस बातचीत से सेना और चुनी हुई सरकार के एक ही जुबान में बात करने की उम्मीद की जा रही थी.

पाकिस्तान के राजनेताओं, विशेषज्ञों और सेना से हफ्तों तक चले लंबे सलाह मशविरे के बाद नवाज शरीफ ने नौ सितम्बर को पाकिस्तानी तालिबान की चुनौती से निपटने की रणनीति की घोषणा की.

इस नीति का पाकिस्तान के सभी राजनीतिक दलों ने समर्थन भी किया लेकिन ज्यादातर विशेषज्ञों और सेना ने इसे खारिज कर दिया.

शरीफ की सरकार ने तालिबान को चरमपंथी संगठन घोषित करने के बजाय साझीदार घोषित कर कहा कि तालिबान से बिना शर्त बातचीत के दरवाजे खोले जाएंगे. सरकार की ओर से बुलाई गई एक सर्वदलीय बैठक में भी अमरीका और नैटो को पाकिस्तान में चरमपंथ के लिए जिम्मेदार ठहराया गया.

तालिबान से बातचीत

इस पर तालिबान ने 30 से ज्यादा माँगों की अपनी सूची पेश की जिसमें पाकिस्तान में इस्लामी शरिया कानून लागू करना और देश के कबाइली इलाके से सेना वापस बुलाने जैसी माँगें भी शामिल थीं.

15 सितंबर को देश के सुदूर उत्तर-पश्चिमी इलाके में हुए जानलेवा बम धमाके में मेजर जनरल सनाउल्लाह खान नियाजी और एक कर्नल की मौत हो गई. तालिबान ने इन हमलों की जिम्मेदारी ली और ठीक इसी दिन चार अलग अलग हमलों में सात सैनिक मारे गए.

पाकः आखिर शरीफ से क्या गलती हुई?

इससे पहले सेना प्रमुख जनरल परवेज़ कयानी ने नवाज़ शरीफ को आत्मसमर्पण करने वाली रणनीति न अपनाने के लिए चेताया था. अब उन्होंने सार्वजनिक तौर पर कहा है कि सेना तालिबान को शांति की शर्तें तय करने की इजाजत नहीं देगी. कयानी ने कहा, "किसी को इस बात पर संदेह नहीं होना चाहिए कि हम चरमपंथियों को इस बात का मौका देंगे कि वे हमें अपनी शर्तों पर मजबूर करें."

इसके बाद रविवार को पेशावर के एक चर्च में धमाका हुआ जिसमें 80 लोग मारे गए और तकरीबन 130 लोग घायल हो गए. इस हमले ने भी शरीफ की कोशिशों को पलीता लगा दिया.

पश्चिमी देशों को अपनी योजना से प्रभावित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र की बैठक में जाते वक्त नवाज़ शरीफ को कुछ बड़े बदलाव करने थे.

लंदन पहुँचते ही उन्होंने पहली बार कहा कि मुमकिन है तालिबान के साथ बातचीत का विचार सभी लोगों को पसंद न आए. लेकिन इसके बाद उनका अगला कदम क्या होगा ये उनके करीबी सहयोगी भी नहीं कह सकते हैं.

विशेषज्ञों ने उन्हें बताया था कि चरमपंथ से मुकाबले के लिए व्यापक रणनीति में बातचीत का सुनियोजित विकल्प, ताकत का इस्तेमाल, आर्थिक विकास और दूसरे उपायों में शामिल किया जा सकता है.

अब इस बात की उम्मीद की जा रही है कि तालिबान अपने हमलों में इजाफा करेंगे क्योंकि उन्हें लगता है कि सरकार कमजोर है, मछली की तरह छटपटा रही है और डरी हुई है.

बलूचिस्तान प्रांत में अलगाववादियों के साथ बातचीत शुरू करने के मसले पर भी इसी दिशाहीनता और धीमी रफ्तार ने नवाज़ शरीफ को अपना वादा पूरा करने से रोक रखा है.

कराची का हाल भी कुछ कुछ ऐसा ही है. इस बंदरगाह शहर को सशस्त्र गुटों ने बेहाल कर रखा है. हालांकि उनसे निपटने की सुरक्षा बलों की कार्रवाई चल रही है लेकिन इसके नतीजे आने अभी बाकी हैं.

भारत से रिश्ते

भारत के साथ रिश्ते सुधारने को लेकर सेना और नवाज़ शरीफ के बीच भी कोई सहमति नहीं दिखाई देती है कि इसे कितनी तेजी से आगे बढ़ाया जाए.

नवाज़ शरीफ ने जून में ही भारत से संपर्क करने की कोशिश की थी लेकिन भारत की ओर से कहा गया कि उन्हें कुछ मुद्दे सुलझाने होंगे.

इनमें भारत के लिए 'सर्वाधिक वरीयता वाले देश' के दर्जे की माँग, मुंबई हमलों में कथित तौर पर शामिल लश्कर-ए-तैयबा के सात चरमपंथियों की जल्द सुनवाई और हाफिज़ सईद पर लगाम लगाने की माँग शामिल हैं.

भारत ने पाकिस्तान को पहले ही 'सर्वाधिक वरीयता वाले देश' का दर्जा दे रखा है.

पाकः आखिर शरीफ से क्या गलती हुई?

भारत की सशर्त बातचीत की पेशकश को पाकिस्तान की सेना ज्यादा तवज्जो नहीं देती. सेना का कहना है कि भारत कश्मीर जैसे विवादास्पद मुद्दों सहित बाकी तमाम मसलों पर समग्र बातचीत की शुरुआत करे. सेना ने नवाज़ शरीफ से कहा है कि वो जरूरत से ज्यादा तेजी से भारत को लेकर आगे बढ़ रहे हैं.

हालांकि 10 साल के अंतराल के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर गोली-बारी का सिलसिला जारी है. इस साल, ऐसी झड़पों में दोनों देशों के दर्जनों सिपाही और आम लोग मारे गए हैं.

हाफिज सईद पर खुफिया एजेंसियों का तगड़ा नियंत्रण है और सितंबर की शुरुआत में उन्हें राजधानी इस्लामाबाद में भारत विरोधी एक बड़ी रैली करने की इजाजत दी गई.

इस बीच लंबी हिचकिचाहट के बाद भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने न्यूयॉर्क में चल रही संयुक्त राष्ट्र की बैठक के दौरान नवाज शरीफ से मिलने पर सहमत हो गए हैं लेकिन भारतीय विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा है कि "हमें कुछ नतीजे चाहिए."

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