PRAYAGRAJ: लोकसभा चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज हो गई है. नेताओं का दौरा शुरू हुआ तो फिर पब्लिक ने मुद्दों को उठाना शुरू कर दिया है. लोगों के बैठते ही बस चुनाव पर चर्चा शुरू हो जा रही है. महागठबंधन की सरकार बनेगी या फिर भाजपा की मोदी सरकार दुबारा रिपीट होगी, ये तो 23 मई को ही पता चलेगा. लेकिन इतना तो तय है इस बार लोकसभा चुनाव में नेताओं का नहीं, बल्कि वोटर्स का मुद्दा तय है. दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट के मिलेनियल्स स्पीक में सोमवार को कटघर चौराहे पर हुई चर्चा में कुछ इसी तरह की बातें निकल कर सामने आई.

सरकार किसी की हो, विकास हो

चर्चा में शामिल लोगों ने कहा सरकार किसी की भी आए, हमें तो केवल विकास से मतलब है. किसी भी सरकार के नेतृत्व में देश का, समाज का, क्षेत्र का और लोगों का विकास होना चाहिए. लेकिन फिलहाल अभी तक चहुंमुखी विकास कहीं नहीं दिख रहा है. किसी भी देश के विकास के लिए शिक्षा में सुधार सबसे ज्यादा जरूरी है. वहीं अपने देश की बात करें तो यहां शिक्षा सबसे ज्यादा महंगी है और दु‌र्व्यवस्था का शिकार है. प्राइवेट स्कूल और प्राइवेट हॉस्पिटलों में मनमानी आज भी हावी है. इस पर रोक क्यों नहीं लग पा रही है.

गरीबी नहीं, गरीबों को हटा रही हैं सरकारें

लोगों ने कहा कि नेता जब आते हैं, तो कहते हैं कि उनकी सरकार आने पर गरीबी हटा दी जाएगी. लेकिन गरीबी दूर नहीं होती, बल्कि गरीबों को ही हटा दिया जाता है. लोगों को रोजगार नहीं मिलता है. लोगों ने कहा कि शिक्षा सबसे बड़ा मुद्दा है. एडमिशन के नाम पर लूट हो रही है. 25 हजार से 30 हजार रुपए एडमिशन के नाम पर लिया जा रहा है. किताबों को बदल दिया जा रहा है हर साल. एक आम आदमी की पहुंच से बहुत ज्यादा फीस लिया जा रहा है. एडमिशन के नाम पर लूट हो रही है. गरीब आदमी अपने बच्चे को नहीं पढ़ा पा रहा है.

कॉलिंग

जब एक बार एडमिशन ले लिया तो फिर उसी बच्चे का दूसरे क्लास में एडमिशन के नाम पर एडमिशन फीस क्यों? डेवलपमेंट क्यों? एक आम आदमी या तो अपने घर में रखे या फिर कर्ज लेकर पढ़ाई कराए.

सतीश केसरवानी

एजुकेशन और हेल्थ पर काम होना चाहिए. करप्शन खत्म होना चाहिए. इनमें पहले से कुछ बदलाव भी देखने को मिल रहा है. लोगों को खुद को भी बदलना पड़ेगा.

अंकित

आतंकवाद को जड़ से मिटाने वाली गवर्नमेंट चाहिए. डेवलपमेंट हर सरकार में कुछ न कुछ किया जाता है. लेकिन डेवलपमेंट वही सही होता है, जिसका असर इंटरनेशनल लेवल पर दिखे.

जीतेंद्र केसरवानी

जब केंद्र में सरकार बनी थी तो रोजगार देने के कई वायदे किए गए थे. लेकिन धरातल पर कुछ नजर नहीं आया. आज भी बेरोजगारी वैसी की वैसी ही है. शिक्षा व्यवस्था को लेकर भी सरकार गंभीर नहीं है.

मनीष कुमार श्रीवास्तव

हमें अपने वोट की ताकत को समझना चाहिए. वोट से ही सरकार को जवाब दिया जा सकता है. अगर हम शहर, राज्य और देश से बेरोजगारी दूर करना चाहते हैं तो हमें जागना पड़ेगा और एक प्रबल जनप्रतिनिधि चुनना पड़ेगा.

शिवबाबू

अब तक की सरकारों ने ठोस नीतियों पर काम नहीं किया. इसकी वजह से शिक्षा और चिकित्सा व्यवस्था लगातार भ्रष्टाचार का शिकार है. प्राइवेट स्कूलों की मनमानी जारी है. वहीं प्राइवेट हॉस्पीटल वाले गरीबों का खून चूस रहे हैं.

सोनू

सतमोला- पचाया क्या?

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछले वर्ष प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाने का आदेश जारी किया था. उन्होंने कहा था कि कोई भी स्कूल हर साल फीस नहीं बढ़ाएंगे. लेकिन आज स्थिति यह है कि सभी स्कूलों ने फीस बढ़ा दी है और लोग जमा कर रहे हैं. आखिर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आदेश का क्या हुआ?