-राज्य में ढाई हजार मेगावाट का बिजली संकट

-राजधानी और रामपुर में सबसे अधिक लाइन लॉस

Meerut: महानगर में बिजली संकट ने एकबार फिर विकराल रूप धारण कर लिया है। शहर में इमरजेंसी रोस्टिंग के नाम पर धड़ल्ले से बिजली कटौती की जा रही है। सबसे बुरा हाल तो पीक आवर्स का है। सुबह और शाम में होने वाली कई घंटे की बत्ती गुल ने लोगों की मुसीबत ला दी है, हालांकि विभाग इसको इमरजेंसी रोस्टिंग बताता है, लेकिन समस्या की यदि तह में जाया जाए तो माजरा कुछ और ही निकल कर आता है। दरअसल, मेरठ ही नहीं बल्कि समूचे प्रदेश में बिजली का भारी संकट है। यही कारण है लंबे समय से चली आ रही बिजली समस्या का कोई स्थायी समाधान नहीं हो पा रहा है।

यूपी में ख्भ्00 मेगावाट की कमी

दरअसल, बिजली की जो परेशानी हम अपने शहर में भुगत रहे हैं, उसकी जड़ें राज्य की राजधानी लखनऊ तक फैली हैं। प्रदेश में इस समय ढाई हजार मेगावाट बिजली की भारी किल्लत है। डिमांड और सप्लाई को देखते हुए प्रदेश में इस समय क्भ्000 हजार मेगावाट बिजली की परम आवश्यक्ता है, जिसके सापेक्ष राज्य को केवल क्ख्भ्00 मेगावाट बिजली ही उपलब्ध है। इसका सीधा प्रभाव प्रदेश के प्रत्येक जिले में भी साफ दिखाई देता है। बिजली की इस कमी को जिलेवार विभाजित कर दिया जाता है। यही कारण है कि हमे हर बार बिजली की समस्या से दो चार होना पड़ता है।

मेरठ में ब्00 मेगावाट की कमी

राज्य में बिजली की किल्लत का परिणाम यह है कि मेरठ को ब्00 मेगावाट बिजली की किल्लत भुगतनी पड़ रही है। मौजूदा समय के हिसाब से शहर को इस समय सात सौ से आठ सौ मेगावाट बिजली की दरकार हो, जबकि इसके सापेक्ष शहर को केवल चार सौ मेगावाट बिजली ही मुहैया कराई जा रही है। हालांकि विभागीय अफसर बिजली व्यवस्था को दुरुस्त करने के लाख दावे करते नजर आते हैं, लेकिन सच्चाई उससे कोसो दूर है।

समस्या बना ट्रांसमिशन नेटवर्क

असल में, बिजली की कमी का सबसे बड़ा कारण ट्रांसमिशन नेटवर्क का फेल्योर है। पिछले कई सालों से ट्रांसमिशन नेटवर्क का विस्तार नहीं किया गया है, जिसके चलते फ्फ् केवीए के उपकेन्द्रों का निर्माण नहीं किया जा सका है। इसके अलावा डिस्ट्रीब्यूशन लाइनों का भी सही से मेंटीनेंस नहीं किया जा सका है। नतीजतन बिजली की उपलब्धता होने के बावजूद भी बिजली की भारी किल्लत बनी हुई है।

उधार की बैसाखी पर विभाग

गर्मी के सीजन को ध्यान में रखते हुए यूपीपीसीएल ने डिमांड और सप्लाई के हिसाब से अन्य राज्यों से बिजली खरीद को लेकर बातचीत की है। लेकिन विभाग की स्थिति इतनी बदतर है कि इस समय यूपीपीसीएल उधार की बिजली जलाने की भी स्थिति में नहीं है। समस्या की वजह है ट्रांसमीशन नेटवर्क का कमजोर होना। ट्रांसमीशन नेटवर्क कमजोर होने की वजह से अन्य राज्यों से बिजली प्रदेश में लाने में विभाग को नाको चने चबाने पड़ते हैं।

लखनऊ और रामपुर में अधिक लाइन लॉस

बिजली के लाइन लॉस पर यदि बात की जाए तो परिणाम चौंकाने वाले आते हैं। असल में सबसे ज्यादा बिजली लाइन लॉस सूबे की राजधानी लखनऊ और यूपी सरकार के सबसे कद्दावर मंत्री आजम खां के शहर रामपुर में ही है। वैसे ये दोनों शहर तो बस एक बानगी भर है लाइन लॉस की बीमारी पूरे प्रदेश को भीतर ही भीतर खाए जा रही है।

धराशायी हुई योजनाएं

बिजली व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए यूं तो उत्तर प्रदेश कार्पोरेशन की ओर से तमाम योजनाएं और अभियान शुरू किए गए, लेकिन जमीनी हकीकत पर सारी की सारी खेत रही। फीडर सेपरेशन, ट्रांसमिशन बिजली घर व उपकेन्द्रों का निर्माण, मिशन अक्टूबर ख्0क्म् के अनुरूप कार्य का न होना इसके अलावा आरजीजीवाई, आरएपीडीआरपी व स्काडा जैसी योजनाएं भी असफलता का शिकार होकर रह गई।

निजीकरण पर नाराजगी

दो साल पूर्व शासन ने मेरठ, गाजियाबाद और वाराणसी तीन जिलों की शहरी बिजली को प्राइवेट हाथों में सौंपने का निर्णय लिया था। इसके लिए बकायदा कंसल्टेंट कंपनी मकॉन को सर्वे कार्य में लगाया गया था, लेकिन निजीकरण को लेकर अफसरों और कर्मचारियों के आक्रोश के आगे फिलहाल निजीकरण का जिन ठंडे बस्ते में चला गया। हालांकि अधिकारिक रूप से अफसर शासन के निर्णय के अनुसार काम करने की हामी भरते हैं, लेकिन जब निजीकरण की बात आती है तो उनका विरोध भी उजागर हो उठता है। इसी का नतीजा है कि पिछले दिनों पीवीवीएनलएल एमडी से बात करने आए कंसल्टेंट कंपनी के तीन अफसरों के साथ उत्तेजित कर्मचारियों ने मारपीट तक कर दी।

बिजली किल्लत के नाम पर जनता को बेवकूफ बनाया जाता है। यदि कोई वीआईपी शहर में आ जाए तो विभाग बत्ती गुल करना ही भूल जाता है। बिल भरने के बाद भी पूरी नहीं बिजली नहीं मिलती।

बच्चन, रौनकपुरा

हर माह बिल के रूप में जमा होने वाला पैसा कहां जाता है। मोटे रूप में जमा होने वाले इस पैसे से ट्रांसमिशन लाइनों को दुरुस्त किया जा सकता है। यह विभाग की समस्या है इसे हम पर क्यों थोपा जा रहा है।

जितेन्द्र, रेलवे रोड

वीआईपी शहरों को बिजली आपूर्ति देने के कारण साधारण शहरों की बिजली पर कैंची चला दी जाती है। इसी का नतीजा है कि रामपुर, एटा और लखनऊ जैसे शहरों में चौबीस घंटे बिजली की उपलब्धता रहती है।

सचिन, घंटाघर

गर्मी आते ही बिजली की समस्या खड़ी हो जाती है, लेकिन सरकार और विभाग स्तर पर इसका कोई स्थायी समाधान नहीं किया जाता।

ईश्वर, शेखपुरा

नेता और अफसर तो दिन रात एयर कंडीशनर कमरों में ऐश करते हैं, लेकिन आम जनता को गर्मी में मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। आम जनता की किसी को कोई फिक्र नहीं है।

वीरमति, टीपीनगर

अफसरों के वर्जन-

कॉर्पोरेशन और सरकार के स्तर पर कई तरह योजनाएं चलाई जा रही हैं। इन योजनाओं के अंतर्गत ट्रांसमिशन नेटवर्क और डिस्ट्रीब्यूशन पर काफी काम किया जाना है। हालांकि इन योजनाओं के परिणाम निकट भविष्य में दिखाई देंगे।

अनिल मित्तल, निदेशक तकनीकि पीवीवीएनएल

प्राइवेटाइजेशन को लेकर कंसल्टेंट कंपनी सर्वे कर रही है। यह निर्णय शासन स्तर पर लिया जाना है। शासन के निर्णय के अनुसार काम किया जाएगा।

विजय विश्वास पंत, एमडी पीवीवीएनएल

शहर में कुछ बिजली घरों की शुरुआत की गई है। हालांकि उनको बनने में अभी एक साल से अधिक का समय लग जाएगा। गर्मी के सीजन के लिए बिजली घर स्तर पर पूरी तैयारी की जा रही है।

एके कोहली, चीफ इंजीनियर, मेरठ जोन