चोर को मोहरें और साधु गिरा गड्ढे में

कर्म के सिद्धांत को लेकर एक संशय होने पर नारद मुनी परेशान होकर नारायण के पास पहुंचे. भगवान से उन्होंने कहा, 'प्रभु! यह क्या, एक गाय दलदल में फंसी थी. एक चोर उसे बचाने की बजाए उस पर पैर रखकर दलदल लांघ कर निकल गया. आगे गया तो उसे मोहरों से भरी एक थैली मिली. वहीं थोड़ी देर बाद ही एक साधु वहां आया. उसने गाय को बड़ी मशक्कत के बाद दलदल से निकाला. आगे पहुंचा तो एक गड्ढे में गिर पड़ा. यह आपके कर्म सिद्धांत का कैसा फल? धरती पर पाप बहुत बढ़ गया है आप कुछ करते क्यों नहीं?'

खजाने से वंचित चोर, साधु को जीवन

प्रभु ने नारद मुनी को समझाया, 'नारद ऐसा नहीं है. दरअसल प्रारब्ध के कर्मों के चलते चोर को एक गड़ा हुआ खजाना मिलना था. लेकिन वर्तमान के उसके कर्म ने उसे खजाने से दूर करके सिर्फ चंद मोहरें ही दीं. इससे उसके जीवन में कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला. उसने अपना अच्छे कर्म करना शुरू नहीं किया तो निश्चित ही एक दिन वह पकड़ा जाएगा और अपने कुकर्मों की सजा भी भुगतेगा. दूसरी ओर साधु अपने प्रारब्ध के खराब कर्मों की वजह से काल के गाल में समाने वाला था लेकिन वर्तमान में उसने अच्छे कर्म करने शुरू कर दिए. यही वजह है कि गाय को दलदल से निकालने के बाद उसकी मौत नहीं हुई और उसे थोड़ी सी चोट ही लगी. उसके अच्छे कर्मों का ही फल है कि वह मृत्यु से बचकर आगे एक अच्छा सम्मानित जीवन जीएगा.' अब नारद के मन का संशय मिट चुका था और वे कर्मफल का सिद्धांत समझ चुके थे.