अचरज की बात यह है कि लगभग आधा दर्जन से ज़्यादा विधानसभा सीटों पर 80 फ़ीसदी से ज़्यादा वोट पड़े हैं.

सबसे ज़्यादा 83 फ़ीसदी वोट होशंगाबाद और श्योपुर ज़िले में पड़े और सबसे कम 54 फ़ीसदी वोट सतना ज़िले में.

लेकिन असल में ज़्यादा वोटिंग के ज़मीनी मायने क्या हैं.

ज़ाहिर है कि राजनीतिक दलों के लिए मायने उनके नफ़ा-नुक़सान पर आधारित है. इस बार राज्य में युवा मतदाताओं की संख्या ग़ौर करने लायक थी.

युवाओं में उत्साह

मध्य प्रदेश: किसे मिलेगा रिकॉर्ड वोटिंग का फायदाइस बार युवा मतदाता लगभग पचास लाख थे जिनमें वोटिंग को लेकर बुज़ुर्ग या प्रौढ़ लोगों के मुक़ाबले ज़्यादा ललक थी. उनकी इस ललक ने भी मत प्रतिशत में इज़ाफ़ा किया.

इसके अलावा चुनाव आयोग व राजनीतिक दलों द्वारा ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में मतदान की अपीलों का भी असर हुआ है. चुनाव आयोग ने 'पहले मतदान बाद में दूसरा काम' शीर्षक से एक विज्ञापन शृंखला चलाई.

टीवी व मोबाइल के माध्यम से भी जनता को जागरूक करने का प्रयास किया गया. चुनाव के एक दिन पहले राज्य के ज़्यादातर मोबाइल धारक मतदाताओं तक चुनाव आयोग के 'वॉयस मैसेज' पहुंचे.

कुछ अख़बारों की ओर से भी जनहित में वोटिंग के लिए प्रेरित करने वाले विज्ञापन जारी किए गए.

मतदान के प्रतिशत में बढ़ोत्तरी में इन सभी की भूमिका रही है.

किसके हक में मतदान

विभिन्न राजनीतिक दलों की मानें तो यह बढ़ोत्तरी या तो सत्ता परिवर्तन की वाहक है या सरकार की हैट्रिक के लिए जनादेश.

भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा कहते हैं, “अभी तक का यह रिकॉर्ड रहा है कि ज़्यादा वोटिंग सरकार के पक्ष में होती है. यह शिवराज समर्थक वोट है. इससे यह भी साफ़ हो गया कि भाजपा पिछली बार के मुक़ाबले ज़्यादा सीटें लाएगी.”

"मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी लोकतंत्र में नागरिकों के बढ़ते विश्वास का परिणाम है. इसे किसी के खिलाफ या किसी के समर्थन के साथ जोड़ना ग़लत है."

-राजेश चतुर्वेदी, वरिष्ठ पत्रकार

पिछली बार भाजपा को कुल 230 विधानसभा सीटों में से 143 सीटें मिली थीं. पिछली बार मत प्रतिशत 69 फीसदी था. यानी इस बार से महज दो फीसदी कम.

झा कहते हैं, “युवा और महिला वर्ग ने जमकर वोट किया है.”

वहीं कांग्रेस प्रवक्ता भुपेन्द्र गुप्ता इसे व्यवस्था विरोधी वोट मानते हैं जो दस साल पुरानी भाजपा सरकार को उखाड़ फेंकेगा.

गुप्ता कहते हैं, “दो तरह के नौजवानों ने इस बार वोट डाले. एक वो जिसने पहली बार वोट डाला और दूसरे वे जो पहले भी वोट डाल चुके हैं. जो लोग दूसरी बार वोट डाल रहे हैं उनका पूरा का पूरा वोट सरकार के ख़िलाफ़ गया है. यह वह वोट था जिसे पीएमटी, पीईटी, संविदा शिक्षक परीक्षा के माध्यम से सरकार ने ठगा हैं.”

'लोकतंत्र में विश्वास'

मध्य प्रदेश: किसे मिलेगा रिकॉर्ड वोटिंग का फायदागुप्ता एक और तर्क देते हैं. वे कहते हैं, “मध्य प्रदेश में आश्चर्यजनक रूप से 28 प्रतिशत नए मतदाता पंजीकृत हुए, जबकि पूरे देश में इसका औसत आठ से 12 प्रतिशत के बीच रहा था. हमने इसकी जांच की मांग की थी. हमने समय रहते चुनाव आयोग से इसकी शिकायत भी की थी.”

राजनीतिक विश्लेषक गिरिजाशंकर कहते हैं, “वोट प्रतिशत का बढ़ना अप्रत्याशित नहीं है. पहले आमतौर पर 45 से 50 फीसदी तक ही वोटिंग हो पाती थी. ऐसे में यदि कभी मत प्रतिशत का आंकड़ा 60 फीसदी तक हो जाता था तो उसे व्यवस्था विरोधी वोट माना जाता था. अब यह धारणा बदल गई है. अब 70 फीसदी मतदान को सामान्य माना जाता है.”

वे कहते हैं, “बस्तर जैसे आदिवासी और नक्सल प्रभावित क्षेत्र में इस बार 80 फ़ीसदी से ज़्यादा मतदान हुआ. इसे आप क्या मानेंगे.”

स्थानीय पत्रकार राजेश चतुर्वेदी की राय भी कमोबेश ऐसी ही है. वो कहते हैं, “मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी लोकतंत्र में नागरिकों के बढ़ते विश्वास का परिणाम है. इसे किसी के खिलाफ या किसी के समर्थन के साथ जोड़ना ग़लत है.”

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