11वीं-12वीं शताब्दी की पाल शैली में बनी है मूर्ति

दोनों मूर्तियां बेसाल्ट (काले पत्थर) की बनी हुई हैं। इतिहासकारों की मानें तो दोनों मूर्तियां 11-12वीं शती की है। उस दौरान देश में पाल वंश का शासन था। दोनों मूर्तियों में पाल शैली की छाप नजर आती है। इसके पाल शासन के दौरान होने की पुष्टि इस बात से भी होती है कि उस काल में सभी मूर्तियां काले पत्थर यानी बेसाल्ट की बनी होती थी। व्हीपार्क की दोनों मूर्तियां भी बेसाल्ट की है। एक मूर्ति का आकार 137*91 सेमी है तो दूसरी मूर्ति का आकार 350*145 सेमी है। इनमें से एक मूर्ति खंडित हो चुकी है। उसका एक पैर और एक हाथ टूट चुका है। दूसरी मूर्ति का हाथ और उसमेंं बनी छोटी मूर्तियां टूट चुकी हैं। इन दोनों मूर्तियों का निर्माण किसने करवाया, इसकी कोई पुष्ट जानकारी नहीं मिलती है। हालांकि राजबली पांडेय ने अपनी किताब 'गोरखपुर का इतिहासÓ में इन दोनों मूर्तियों की चर्चा की है।

शास्त्रीय परंपरा आधारित है मूर्ति

इन दोनों मूर्तियों में भगवान विष्णु के हाथ में गदा, चक्र, कमल और शस्त्र होने के साथ एक तरफ लक्ष्मी और दूसरी ओर सरस्वती की मूर्ति है। इतिहासकारों का मानना है कि यह मूर्ति शास्त्रीय परंपरा पर आधारित है। शास्त्रों में भी भगवान विष्णु की कल्पना इसी रूप में की गई है। दोनों मूर्तियों के देखकर तो यही लगता है कि सालों से इसकी देखरेख नहीं की गई। इन मूर्तियों की मरम्मत का कई बार प्रयास किया गया, स्थानीय स्तर पर इसके आर्टिस्ट न मिलने से हर बार असफलता ही हाथ?लगी।

इसके अलावा पार्क में आने वाले लोग भी मूर्तियों को हाथ लगाते हैं और इसके पास खड़े होकर फोटो खिंचवाते हैं। इसी क्रम में कुछ लोग मूर्ति पर अनर्गल बातें लिख देते हैं। उन्हें न कोई रोकने वाला है न कोई टोकने वाला। ऐसे में 1000 साल पुरानी मूर्तियों की क्या दशा होगी इसका अंदाजा लगाना किसी के लिए भी मुश्किल नहीं है।

खंडित होने से मंदिर में नहीं रखी गई मूर्ति

खंडित मूर्तियां न तो मंदिर में स्थापित की जाती है और न घर में, इसे अशुभ माना जाता है। यही वजह है कि इन दोनों मूर्तियों को मंदिर मेंंनहींरखा गया है। अब ऐसे में सवाल है कि जब ऐसी मूर्तियों को मंदिर में नहींरखा जा सकता तो इसे पुरातत्व विभाग को क्यों नहींसौंपा गया। दूसरी तरफ व्ही पार्क के जिम्मेदार पुरातत्व विभाग पर आरोप लगाते हैं कि वे उनकी सुनते ही नहींहैं। गोरखपुर के इतिहासकारों का भी यही कहना है कि पुरातत्व विभाग को मूर्तियों को संग्रहालय में रखवा देना चाहिए ताकि इनकी देख रेख सही तरीके से हो सके।

कहां से आयी मूर्ति?

यह मूर्ति व्हीपार्क कैसे पहुंची? इसको लेकर इतिहासकारों में मतभेद है। व्हीपार्क के निदेशक सत्येंद्र सिंह का कहना है कि यह मूर्ति देवरिया के रूद्रपुर स्थित दुग्धेश्वरधाम मंदिर के पीछे हुई पुरातत्विक खुदाई से निकली है। इसको उस समय किसी अफसर ने यहां रखवा दिया था। वहीं गोरखपुर के इतिहासकारों का कहना है कि मेडिकल रोड पर स्थिति विष्णु मंदिर के पीछे पोखरे में थी। बाद में प्रशासन ने पोखरे से मूर्तियां निकलवाकर व्हीपार्क में रखवा दिया।

पुरातत्व विभाग की लापरवाही

पार्क के अफसरों का कहना है कि मूर्ति के रखरखाव के लिए पार्क के पास अलग से कोई फंड नहीं है। यही वजह है कि पार्क प्रबंधन ने दो बार पुरातत्व विभाग को पत्र लिखकर इसके संरक्षण के लिए मदद मांगी थी। सितंबर 2012 में पुरातत्व विभाग, इलाहाबाद से लेखाकार आए और मूर्ति को देखा। उस समय पुरातत्व विभाग के पास जितना बजट था, उससे एक मूर्ति के चारों तरफ लोहे का खंभा लगवा दिया और कहा कि अप्रैल 2013 में जब नया बजट आएगा तो विभाग शेड लगाएगा। साल 2013 भी बीत गया, लेकिन अभी तक मूर्ति के ऊपर शेड नहीं लगा। पार्क प्रबंधन ने पुरातत्व विभाग को नवंबर 2013 में पत्र लिखकर शेड की मांग भी की, लेकिन अभी तक पुरातत्व विभाग से न कोई अफसर आया न ही पत्र का जवाब।

पुरातत्व विभाग को तीन बार मूर्ति के संरक्षण के लिए पत्र लिखा गया है। वहां से आये अफसर ने आश्वासन दिया था कि अप्रैल 2013 में मूर्तियों पर शेड लगाया जाएगा, लेकिन अभी तक शेड नहीं लगा है।

- सत्येंद्र सिंह,

डायरेक्टर, राजकीय उद्यान व्हीपार्क

दोनों मूर्तियां 11वीं-12वीं शताब्दी की भगवान विष्णु की हंै। मूर्ति टूटी होने के कारण मंदिर में नहीं रखी जा सकती, लेकिन ऐसी मूर्तियां संग्रहालय में रखी जानी चाहिए। यूनिवर्सिटी ने कई बार अपने संग्रहालय में रखने के लिए पार्क और पुरातत्व विभाग से मूर्ति की मांग की, लेकिन कोई भी रूचि नहीं ले रहा है।

डॉ। विपुला दूबे,

हेड ऑफ डिपार्टमेंट एंशिएंट डिपार्टमेंट