लोर्गाट विश्व क्रिकेट की संचालक संस्था अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रह चुके हैं.

वह इस पद पर चार साल तक रहे. उनके इसी कार्यकाल के दौरान भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) और मज़बूत हुआ.

हालांकि इस दौरान कई ऐसे मौक़े भी आए जब बीसीसीआई को लोर्गाट की कार्यशैली पंसद नहीं आई.

बीसीसीआई और लोर्गाट के बीच सबसे बड़ा विवाद तब हुआ, जब उन्होंने लॉर्ड वूल्फ़ कमेटी का गठन करके तमाम देशों के क्रिकेट बोर्डों के लिए आचार संहिता और प्रशासन के मानदंड बनाने की कोशिश की.

वूल्फ़ कमेटी

इस कमेटी ने जो सिफ़ारिशें दीं, वो भी बीसीसीआई को नागवार गुज़रीं क्योंकि वूल्फ़ कमेटी ने भारतीय बोर्ड को भी प्रशासन के तौर-तरीक़े बदलने की नसीहत देते हुए बोर्ड की कार्यशैली पर सवाल उठाए थे.

जब आईसीसी ने यह कमेटी गठित की, तभी बीसीसीआई ने इस पर अपना विरोध ज़ाहिर कर दिया था.

इसके बावजूद न केवल यह कमेटी बनी बल्कि उसकी रिपोर्ट भी सार्वजनिक हुई. हरियाणा और पंजाब के सेवानिवृत मुख्य न्यायाधीश मुकुल मुद्गल भी इस समिति के सदस्य थे.

लोर्गाट से क्यों नाराज़ है बीसीसीआई?

अगर इस कमेटी के सुझाव लागू होते तो बीसीसीआई और कई देशों के क्रिकेट बोर्डों का आमूलचूल ढांचा ही बदल जाता.

समिति की सिफ़ारिशों में एक सुझाव राजनीतिज्ञों को क्रिकेट बोर्डों से दूर रखने का था.

हालांकि लोर्गाट के  आईसीसी से हटते ही इस समिति की रिपोर्ट ठंडे बस्ते में चली गई.

डीआरएस पर भी नाराजगी

इसी तरह बीसीसीआई के न चाहने के बाद भी  अंपायर फ़ैसला समीक्षा प्रणाली (डीआरएस) को क्रिकेट में लागू किया गया.

हालांकि बीसीसीआई ने इसे लागू करने से साफ़ मना कर दिया.

लोर्गाट आईसीसी में अपने कार्यकाल का विस्तार भी चाहते थे, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया.

क्रिकेट विशेषज्ञ मानते हैं कि लोर्गाट ने कई बार संकेतों में बीसीसीआई को कठघरे में खड़ा किया.

2011 में जब भारत में विश्व कप का आयोजन हुआ तब भी लोर्गाट की कई टिप्पणियां बीसीसीआई को नाख़ुश करने वाली थीं.

आईसीसी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी पद से हटने के बाद लोर्गाट श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड से भी जुड़ना चाहते थे.

कुछ समय के लिए वह श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड से सलाहकार के रूप में भी जुड़े. मीडिया में तब ये ख़बरें आईं थीं कि बीसीसीआई की नापसंदगी के चलते उन्हें इस पद से हटना पड़ा.

सीएसए के सीईओ

लोर्गाट से क्यों नाराज़ है बीसीसीआई?क्रिकेट साउथ अफ्रीका (सीएसए) में उनके सीईओ बनने से पहले भी बीसीसीआई ने सार्वजनिक तौर पर उनके नाम पर नाख़ुशी ज़ाहिर की थी. तब सीएसए ने बीसीसीआई की परवाह न करते हुए उन्हें सीईओ बनाया.

सीएसए के सीईओ बनने के बाद  लोर्गाट ने कई बार बीसीसीआई से मतभेद दूर करने की बात की. बात बनी नहीं. वह नाराज़ बीसीसीआई को मना नहीं पाए.

नतीजन, बीसीसीआई ने दक्षिण अफ्रीका के भारतीय टीम के दौरे को ख़त्म करने का मन बना लिया था.

अब ये दौरा इस शर्त पर हो रहा है कि लोर्गाट टीम इंडिया के दौरे से न केवल अलग रहेंगे बल्कि बीसीसीआई के साथ किसी भी बातचीत में उन्हें शामिल नहीं किया जाएगा.

लोर्गाट भारतीय मूल के हैं. उनका परिवार काफ़ी पहले गुजरात से दक्षिण अफ्रीका चला गया था. उन्होंने वहीं पढ़ाई की. वहां उन्होंने प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेली. तत्कालीन दक्षिण अफ्रीका सरकार की नस्लवाद नीतियों के कारण वह राष्ट्रीय टीम में नहीं आ पाए.

लोर्गाट पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं और दक्षिण अफ्रीका में एक निवेश कंपनी भी चलाते हैं.

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