फिल्म का टाइटल बदलने से एक चीज तो सही हुई कि फिल्म का टाइटल फिल्म से मैच कर गया। सवाल सही है, ? फिल्म का पॉइंट क्या है, राइटर क्या क्या कहना चाहता है, हीरो कौन है, और क्या ये फिल्म क्राइम का ग्लोरिफिकेशन नहीं है, बॉलीवुड में ये कुछ नया नहीं है, विलेन्स को हीरो बनाने की प्रथा पुरानी है

कहानी
90 के दशक में नकल के माफिया की कहानी है।

रेटिंग : ढाई स्टार

why cheat india review: बड़े पर्दे पर यूं सफेद किया शिक्षा का काला कारोबार

समीक्षा
अगर मोरालिटी को साइड में रख दें तो फिल्म बुरी नहीं है, डायलॉग एंटेरटेनिंग है और ओवरआल बड़ा एंजोयबल टाइम है, पर फिल्म खत्म होने के बाद दिमाग मे कंफ्यूज़न भर जाता है, मुद्दे मिलकर स्मूथी बन जाते है जो स्मूथी होने के बावजूद गले से नीचे नहीं उतरते। चीटिंग के बिजनेस को इतना ग्लोरीफाई किया गया है कि वो अधिकतर फिल्म का हीरो ही करता है। यही पर फिल्म अपने मेन मुद्दे से भटक जाती है और उस पॉइंट से उसका वापस आना बेहद मुश्किल हो जाता है। फिल्म का आर्ट डायरेक्शन बहुत ही बढ़िया और फिल्म शूट बहुत अच्छी हुई है। संगीत अच्छा है रोमांटिक गीत छोड़ के।

क्या है कमी
फिल्म की मेसेजिंग क्लियर नहीं है। सेकंड हाफ तितर बितर हो रखा है। फिल्म के सारे प्लॉट सेकंड हाफ में आकर पार्लियामेंट के बवाल की तरह कंफ्यूजिंग हो जाते हैं। फिज़ूल के प्रेमगीत आपका ध्यान भटकाते हैं।

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अदाकारी
इमरान बहुत ही बढ़िया काम करते हैं। स्क्रिप्ट के झोल को भी वो आसानी से डील कर लेते हैं, बाकी कास्टिंग ठीक है

वर्डिक्ट
ठीक ठाक सी फिल्म है, कोई ऐसा तिलिस्म नहीं है जो जन्नत में था, पर फिर भी इमरान हाशमी के लिए एक बार देख सकते हैं।

Review by : Yohaann Bhaargava
Twitter : @yohaannn

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