शेक्सपियर ने गलत नहीं कहा है, नाम में क्या रखा है। हमारा दिमाग भी ऐसा ही सोचता है। यह हम नहीं कह रहे साइंटिफिक रिसर्च के मुताबिक जब कोई हमें अपना नाम बताता है तो दिमाग को यह जानकारी गैरजरूरी लगती है। फिर उसे याद रखने की जहमत वह क्यों उठाये। यकीन मानिये हम बिल्कुल ठीक कह रहे हैं। चलिये इसी बात को एक उदाहरण के जरिये समझते हैं।
मान लीजिये दिन भर में आपकी राम, श्याम या गीता जैसे नाम वाले कई लोगों से मुलाकात होती है। दिमाग इतने नाम याद नहीं रखना चाहता। मिलते-जुलते नामों के साथ यह अकसर होता है। उसे लगता है कि इस जानकारी को स्टोर करने से कोई फायदा नहीं है। जब तक कि आप ऐसे किसी व्यक्ति से कई बार नहीं मिलते दिमाग उसकी तस्वीर और नाम को एक साथ लंबे समय के लिये स्टोर करने को तैयार नहीं होता।
सारा खेल शार्ट टर्म व लांग टर्म मेमोरी का है। अगर आप 10 दिनों के लिये केरल घूमने जाते हैं तो दिमाग इस जानकारी को लंबे समय के लिये स्टोर करके रखेगा। ऐसा इसलिये क्योंकि उस यात्रा से जुड़ी ढेर सारी यादें दिमाग के तंत्रिका तंत्र से होकर गुजरती हैं। बहरहाल भविष्य में यह याद रखना मुश्किल होगा कि केरल के किसी रेस्त्रां में सुबह नाश्ते में आपने क्या खाया था। दिमाग इस जानकारी को शार्ट टर्म के लिये स्टोर करता है। जानकारी जिसे गैरजरूरी मानकर वह हटाता चलता है।
अगर आप किसी सामाजिक समारोह में हिस्सा ले रहे हैं तो वह मिलने वाले ढेर सारे लोगों में से कुछ को ही याद रख पाते हैं। ऐसा इसलिये क्योंकि हम उनसे बातचीत को नाम से आगे शायद ही बढ़ाते हैं। हमारा दिमाग किसी कंप्यूटर से अलग नहीं है। आप फोल्डर का नाम कुछ भी रख सकते हैं लेकिन काम तो उसके अंदर स्टोर जानकारी ही आती है। अब तो समझ ही गये होंगे कि आपको सामने वाले का नाम याद क्यों नहीं आ रहा है। जस्ट चिल।Interesting News inextlive from Interesting News Desk
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