भारत के कई गांवों की ही तरह गुजरात के इन इलाक़ों में सिंचाई के पुख़्ता इंतज़ाम नहीं है और नहरें नहीं बनाई गई हैं, इसलिए अच्छी फ़सल के लिए किसान बारिश पर ही निर्भर हैं.

कम बारिश की भरपाई के लिए कुंआ खोदकर पानी निकाला जा सकता है लेकिन अगर सरकारी बिजली कनेक्शन न हो तो ये किसान के ख़र्चे को कई गुना बढ़ा देता है.

सूत्रापाड़ा गांव के दिलीप भाई का कुंआ 30 फीट गहरा है. खेत में बिजली नहीं आती तो डीज़ल इंजन के ज़रिए पानी निकालकर सिंचाई करते हैं.

वो कहते हैं, "रोज़ाना क़रीब 600 रुपए का डीज़ल लग जाता है, बिजली का कनेक्शन होता तो पूरे साल के 5,000 रुपए ही लगते, पर चार साल पहले आवेदन देने के बाद भी अब तक कनेक्शन मिला नहीं है."

साल 2012 में ठीक से बारिश नहीं हुई. एक के बाद एक दो बार फ़सल ख़राब हो जाने पर दिलीप के पिता पर 80,000 रुपए का क़र्ज़ हो गया था, और एक दिन जब दिलीप सुबह अपने खेत गए तो अपने पिता के शरीर को एक पेड़ से झूलते पाया.

क़र्ज़ की फांस

गुजरात के किसान क्यों कर रहे हैं आत्महत्या?

उकाभाई रणमल भाई बराद 65 साल के थे. बढ़ते क़र्ज़ का तनाव अपने बेटों से नहीं बांटते थे. उनकी मौत के बाद पुलिस ने जांच की और अपनी रिपोर्ट में आत्महत्या की वजह फ़सल का ख़राब होना लिखा.

कृषि कारणों से की गई आत्महत्या पर आर्थिक या अन्य सहायता देने की गुजरात सरकार की फ़िलहाल कोई नीति नहीं है.

हालांकि दुर्घटना से या अकस्मात हुई मृत्यु पर किसान के परिवार को एक लाख रुपए मुआवज़ा मिलता है.

दिलीप भाई पर क़र्ज़ अब भी है. पिछले साल फ़सल कुछ बेहतर हुई तो वो थोड़े पैसे चुका पाए. पर अभी भी बहुत बकाया बाक़ी है और बैंक के नोटिस नियमित रूप से आते रहते हैं.

उनकी उम्मीदें सरकार पर ही टिकी हैं. वो कहते हैं, "हम क्या, आसपास के कितने ही गांवों में उस साल बारिश नहीं हुई, सरकार इन्हें सूखाग्रस्त घोषित कर देती तो कुछ क़र्ज़ माफ़ हो जाता और फिर पिता जी ये क़दम न उठाते."

बिजली बहुत देर से आई

गुजरात के किसान क्यों कर रहे हैं आत्महत्या?

उकाभाई रणमल भाई बराद से डेढ़ महीना पहले उसी साल उसी गांव के एक और किसान ने पेड़ पर फांसी लगाकर अपनी जान ले ली थी.

32 साल के रणजीत सिंह की मौत के बाद उनकी पत्नी रसीला पर एक लाख रुपए क़र्ज़ और दो बच्चों की ज़िम्मेदारी थी.

दो बार फ़सल ख़राब होने का बोझ रणजीत तो सह नहीं पाए, उनकी मौत के बाद रसीला ने बैंक का क़र्ज़ चुकाने के लिए अपने गहने बेच दिए.

अपने पति को याद कर रसीला रुंआसी हो जाती हैं. वो बताती हैं कि विधवा पेंशन के लिए अर्ज़ी दी है पर अभी तक मिलनी शुरू नहीं हुई है.

सबसे बड़ी राहत यह है कि पिता और भाई ने मदद की तो पिछले साल खेत में बिजली का कनेक्शन लग गया.

पर मुश्किलें बरक़रार हैं, रसीला कहती हैं, "कनेक्शन तो लग गया पर पानी आए तो काम हो, खेती का काम अब मैं ही देखती हूं, आठ दिन पानी दिन में आता है और आठ दिन रात में, आधी रात में मैं सिंचाई का काम कैसे कर सकती हूं."

कितनी आत्महत्याएं?

गुजरात के किसान क्यों कर रहे हैं आत्महत्या?

गुजरात में साल 2003 से 2012 के बीच कितने किसानों ने आत्महत्या की है, इसका साफ़ आंकड़ों, बयानों और दावों के बीच कहीं छिपा है. आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल 5,874 कहते हैं तो गुजरात सरकार 'एक'.

दरअसल अरविंद केजरीवाल का आंकड़ा नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो से लिया गया है जो आत्महत्या करने वालों को व्यवसाय के मुताबिक़ बांटती है, पर आत्महत्या की वजह नहीं बताती.

गुजरात सरकार ये तो मानती है कि किसान आत्महत्या कर रहे हैं पर दावा करती है कि उसकी वजह कृषि से जुड़ी नहीं, बल्कि पारिवारिक और अन्य परेशानियां हैं. यानी किसानों को खेती से जुड़ी इतनी परेशानियां नहीं हैं कि वो अपनी जान ले लें.

सूचना के अधिकार के ज़रिए गुजरात सरकार से आत्महत्या के आंकड़े मांगने वाले आंदोलनकारी भरत सिंह झाला कहते हैं कि सरकार ग़लत कह रही है.

वो बताते हैं कि उनकी अलग-अलग आरटीआई के जवाब में अलग-अलग आंकड़े सामने आते रहे हैं, और ये इस बात का सूचक है कि सच्चाई छिपाई जा रही है.

गुजरात पुलिस ने उन्हें इस दस साल की अवधि में 692 आत्महत्याओं की जानकारी दी जिनमें से भरत सिंह झाला ने जब 150 मामलों में एफ़आईआर की प्रति निकलवाई तो पाया कि आत्महत्या की वजह ख़राब फ़सल लिखी गई थी.

पर उनकी आरटीआई के जवाब में जब केन्द्रीय कृषि मंत्रालय ने गुजरात सरकार से आंकड़ा मांगा तो 668 दिया गया और कहा कि आत्महत्या की वजहें कृषि से जुड़ी नहीं थीं.

आत्महत्या की वजह नहीं बताई

गुजरात के किसान क्यों कर रहे हैं आत्महत्या?

वहीं उन्हीं की दरख़्वास्त पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने जब कृषि मंत्रालय से आंकड़ा मांगा तो यह संख्या 2,492 निकली. इस जवाब में आत्महत्या की वजह का उल्लेख नहीं था.

भरत सिंह का अनुमान है कि गुजरात में किसानों की आत्महत्या के मामले इससे भी कहीं ज़्यादा हैं, "कई मामलों में आत्महत्या की सही वजह दर्ज ही नहीं की जाती, किसान कीटनाशक पी कर जान दे देता है, पर लिख दिया जाता है कि कीटनाशक छिड़कते हुए दुर्घटना से मौत हो गई."

सवाल ये पैदा होता है कि आंकड़ों का ये गणित समझना ज़रूरी क्यों है?

शायद इसलिए कि गुजरात में इस व़क्त आत्महत्या करने वाले किसान के परिवार की मदद के लिए कोई सरकारी नीति नहीं है, और नीति बनाने के लिए पहले सरकार को ये मानना पड़ेगा कि प्रदेश में खेती से जुड़ी परेशानियों के चलते किसान आत्महत्या करने को विवश हो रहे हैं.

International News inextlive from World News Desk