Why such partial attitude!

इतना भेदभाव क्यों?

Allahabad: बड़े और छोटे शहर में यही अंतर होता है। घटनाओं को लेकर विरोध प्रदर्शन यूं ही नहीं होते। विरोध का स्वरूप जितना व्यापक होगा सरकार और प्रशासनिक ऑफिसर भी मदद के लिए उतना ही आगे बढ़ेंगे। साथ देने वाले कमजोर पड़ गए तो पीडि़त की हाल चाहे जो हो, कोई मदद को सामने नहीं आता। वह मरे चाहे जिए अपनी बला से। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की बी टेक की छात्रा प्रिया (काल्पनिक नाम) का मामला कुछ ऐसा ही है। दिन दहाड़े सिरफिर आशिक द्वारा जला दी गई प्रिया के समर्थन में तीन तक छात्र सड़क पर थे तो ऑफिसर्स को उससे हमदर्दी थी। विरोध की गूंज ठंडी पड़ी और अब उसे उसके हाल पर छोड़ दिया गया है.

घर बेचकर भी नहीं हो सकेगा इलाज
प्रिया इस समय चर्चलेन रोड के एक निजी हॉस्पिटल में एडमिट है। अब तो हॉस्टिपल वाले भी उसे लूटने पर आमादा हैं। घटना के समय उसके इलाज पर कुल नौ लाख रुपए का खर्च आना बताया था। अब पन्द्रह दिन में ही उसके पिता तो साढ़े पांच लाख का बिल पकड़ा दिया गया है। प्रिया के पिता के मुताबिक जीवनभर की कमाई वह पहले ही तीनों बच्चों की पढ़ाई में लगा चुके हैं। इधर-उधर से बटोरकर डेढ़ लाख रुपए हॉस्पिटल में जमा कर चुके हैं। लेकिन, इलाज का बिल इतना हो चुका है कि घर बेचकर भी इसे जुटा नहीं सकते। इलाज बीच में छोड़कर प्रिया को पटना ले जाना ही उन्हें एकमात्र रास्ता दिखाई देता है.

कहां गई हमदर्दी, छात्रों से लें सबक
घटना के बाद इलाहाबाद यूनिवर्सिटी ने प्रिया के इलाज का खर्च उठाने का वादा किया था। बावजूद इसके अभी तक हॉस्पिटल में किसी ने झांकने की जहमत नहीं उठाई है। इसके उलट यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स ने अनोखी मिसाल पेश की है। अब तक वह प्रिया के फादर को बतौर सहायता 50 हजार रुपए दे चुके हैं और इतनी ही रकम जल्द ही देने का वादा किया है. 

किसने क्या किया
स्टूडेंट्स और डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन से मिली 50-50 हजार रुपए की आर्थिक सहायता इलाज के कुल खर्चे से काफी कम है। पीडि़ता के पिता का कहना है कि समझ नहीं आता कि बाकी के साढ़े सात लाख रुपए कहां से आएंगे। डॉक्टरों का कहना है कि प्रिया 40 फीसदी जल चुकी है और उसके इलाज में 60 दिन का समय लग सकता है। इलाज का खर्च बढ़ जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी. 

कहां गए मदद के हाथ
27 अगस्त को बैंक रोड पर पटना के रहने वाले सिरफिरे आशिक मुन्ना ने प्रिया को पेट्रोल डालकर जला दिया था। इस घटना के बाद यूनिवर्सिटी गल्र्स ने सड़क पर प्रदर्शन करते हुए इंसाफ की मांग की थी। दो-तीन दिन बाद यह आंदोलन थम सा गया तो पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी भी ठंडे पड़ गए। जानकारी के मुताबिक मामले की सुनवाई भी सेशन कोर्ट में होगी। यानी इस केस को पूरी तरह से कैजुअल ट्रीटमेंट दिया जाएगा। शायद ऑफिसर्स को इसमें कुछ बड़ा नजर नहीं आता.

एक बार dressing का खर्च बीस हजार
प्रिया के पिता कहते हैं कि बेटी की एक ड्रेसिंग में बीस हजार रुपए खर्च हो रहे हैं। उसकी पीठ, गला और दोनों हाथ लगभग जल चुके हैं। बावजूद इसके उन्होंने हिम्मत नहीं हारी है। वह उसे पढ़ा लिखाकर पैरों पर खड़ा करना चाहते हैं। उन्हें अब भी उम्मीद है कि निर्भया की तरह सोसायटी और एडमिनिस्ट्रेशन उनकी सहायता के लिए भी आगे जरूर आएगा. 



इलाहाबाद यूनिवर्सिटी ने इलाज के लिए डेढ़ लाख रुपए की सहायता देने का वादा किया था। हॉस्पिटल की ओर से खर्च का बिल लगाए जाने के बाद इस रकम का भुगतान कर दिया जाएगा.
पीके सिंह, फाइनेंस ऑफिसर, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी


15 दिन में पांच लाख का इलाज?
प्रिया को भर्ती कराए जाने के दौरान संबंधित हॉस्पिटल ने 60 दिनों के इलाज का खर्च 8.30 लाख रुपए बताया था। परिजनों के लिए इतनी ही रकम बहुत ज्यादा थी। अब नई मुसीबत खड़ी हो गई है। हॉस्पिटल ने सिर्फ 15 दिनों के इलाज का खर्च पांच लाख रुपए बता दिया है। इसे लेकर स्टूडेंट के पैरेंट्स टेंशन में हैं। इस बारे में आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने पेशेंट की देखरेख कर रहे डॉक्टर से बात करनी चाही तो उन्होंने कोई जानकारी देने से इंकार करते हुए फोन काट दिया.

घर बेचकर भी नहीं हो सकेगा इलाज

प्रिया इस समय चर्चलेन रोड के एक निजी हॉस्पिटल में एडमिट है। अब तो हॉस्टिपल वाले भी उसे लूटने पर आमादा हैं। घटना के समय उसके इलाज पर कुल नौ लाख रुपए का खर्च आना बताया था। अब पन्द्रह दिन में ही उसके पिता तो साढ़े पांच लाख का बिल पकड़ा दिया गया है। प्रिया के पिता के मुताबिक जीवनभर की कमाई वह पहले ही तीनों बच्चों की पढ़ाई में लगा चुके हैं। इधर-उधर से बटोरकर डेढ़ लाख रुपए हॉस्पिटल में जमा कर चुके हैं। लेकिन, इलाज का बिल इतना हो चुका है कि घर बेचकर भी इसे जुटा नहीं सकते। इलाज बीच में छोड़कर प्रिया को पटना ले जाना ही उन्हें एकमात्र रास्ता दिखाई देता है।

कहां गई हमदर्दी, छात्रों से लें सबक

घटना के बाद इलाहाबाद यूनिवर्सिटी ने प्रिया के इलाज का खर्च उठाने का वादा किया था। बावजूद इसके अभी तक हॉस्पिटल में किसी ने झांकने की जहमत नहीं उठाई है। इसके उलट यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स ने अनोखी मिसाल पेश की है। अब तक वह प्रिया के फादर को बतौर सहायता 50 हजार रुपए दे चुके हैं और इतनी ही रकम जल्द ही देने का वादा किया है. 

किसने क्या किया

स्टूडेंट्स और डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन से मिली 50-50 हजार रुपए की आर्थिक सहायता इलाज के कुल खर्चे से काफी कम है। पीडि़ता के पिता का कहना है कि समझ नहीं आता कि बाकी के साढ़े सात लाख रुपए कहां से आएंगे। डॉक्टरों का कहना है कि प्रिया 40 फीसदी जल चुकी है और उसके इलाज में 60 दिन का समय लग सकता है। इलाज का खर्च बढ़ जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी. 

कहां गए मदद के हाथ

27 अगस्त को बैंक रोड पर पटना के रहने वाले सिरफिरे आशिक मुन्ना ने प्रिया को पेट्रोल डालकर जला दिया था। इस घटना के बाद यूनिवर्सिटी गल्र्स ने सड़क पर प्रदर्शन करते हुए इंसाफ की मांग की थी। दो-तीन दिन बाद यह आंदोलन थम सा गया तो पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी भी ठंडे पड़ गए। जानकारी के मुताबिक मामले की सुनवाई भी सेशन कोर्ट में होगी। यानी इस केस को पूरी तरह से कैजुअल ट्रीटमेंट दिया जाएगा। शायद ऑफिसर्स को इसमें कुछ बड़ा नजर नहीं आता।

एक बार dressing का खर्च बीस हजार

प्रिया के पिता कहते हैं कि बेटी की एक ड्रेसिंग में बीस हजार रुपए खर्च हो रहे हैं। उसकी पीठ, गला और दोनों हाथ लगभग जल चुके हैं। बावजूद इसके उन्होंने हिम्मत नहीं हारी है। वह उसे पढ़ा लिखाकर पैरों पर खड़ा करना चाहते हैं। उन्हें अब भी उम्मीद है कि निर्भया की तरह सोसायटी और एडमिनिस्ट्रेशन उनकी सहायता के लिए भी आगे जरूर आएगा. 

15 दिन में पांच लाख का इलाज?

प्रिया को भर्ती कराए जाने के दौरान संबंधित हॉस्पिटल ने 60 दिनों के इलाज का खर्च 8.30 लाख रुपए बताया था। परिजनों के लिए इतनी ही रकम बहुत ज्यादा थी। अब नई मुसीबत खड़ी हो गई है। हॉस्पिटल ने सिर्फ 15 दिनों के इलाज का खर्च पांच लाख रुपए बता दिया है। इसे लेकर स्टूडेंट के पैरेंट्स टेंशन में हैं। इस बारे में आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने पेशेंट की देखरेख कर रहे डॉक्टर से बात करनी चाही तो उन्होंने कोई जानकारी देने से इंकार करते हुए फोन काट दिया।

 

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी ने इलाज के लिए डेढ़ लाख रुपए की सहायता देने का वादा किया था। हॉस्पिटल की ओर से खर्च का बिल लगाए जाने के बाद इस रकम का भुगतान कर दिया जाएगा।

पीके सिंह, फाइनेंस ऑफिसर, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी