क्यों होती है परेशानी

आर्थराइटिस एक ऐसी डिजीज है जो किसी को भी उम्र के किसी भी पड़ाव पर हो सकती है। बदलती लाइफ स्टाइल के चलते इसका दायरा भी तेजी से बढ़ता जा रहा है। यंगस्टर्स भी अब इसकी चपेट में आ रहे हैं। समर में जहां ऐसे पेशेंट्स रिलीफ फील करते हैं वहीं विंटर शुरू होते ही उनकी परेशानियां बढऩे लगती हैं। मांसपेशियों के टाइट हो जाने की वजह से ज्वाइंट्स की फ्लैक्सिबिलिटी कम हो जाती है और पेन बढऩे लगता है। एक समय ऐसा आता है जब पेशेंट का हिलना-डुलना भी मुश्किल हो जाता है।

ओपीडी में बढऩे लगा रश

डॉक्टर्स के मुताबिक एक बार पेन होने पर पेशेंट विंटर में ऐहतियात बरतने के बजाय लेजी होने लगते हैं। यह सिचुएशन उनके लिए काफी खतरनाक साबित हो सकती है। मेल के मुकाबले इस डिजीज के फीमेल में होने के चांसेज 60 फीसदी ज्यादा होते हैं। यही रीजन है कि विंटर शुरू होते ही ओपीडी में ऐसे पेशेंट्स की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। डॉक्टर्स उन्हें सावधानी बरतने की हिदायत दे रहे हैं। हर साल आर्थराइटिस के 70 से 80 फीसदी पेशेंट्स विंटर में दर्द से परेशान होते हैं।

ये हैं बचाव के तरीके

-आर्थराइटिस के पेशेंट विंटर में अधिक से अधिक गर्म कपड़े पहनें। घर से बाहर निकलते समय पूरी तरह से खुद को ढंककर रखें।

-लेजी होने से अच्छा है कि वॉकिंग की हैबिट को स्ट्रांग करें। बॉंडी में जितना मूवमेंट होगा, आर्थराइटिस का इफेक्ट उतना कम होगा।

-डेली मॉर्निंग में दस मिनट स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज, योगा या स्वीमिंग आपको रिलैक्स कर सकती है।

-आर्थराइटिस के पेशेंट्स को कैफीन, निकोटीन और एल्कोहल को अवॉयड करना चाहिए।

-विंटर में अपने डॉक्टर से लगातार टच में रहें। मेडिसिंस को रेगुलर लेते रहें।

विंटर में आर्थराइटिस के पेशेंट्स का परेशान होना आम बात है। लापरवाही के चलते उनको दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। शुरू से ही होशियारी बरती जाए तो बोन ज्वाइंट्स पेन से छुटकारा पाया जा सकता है।

डॉ। अजय सी जौहरी,

आर्थोपेडिक सर्जन