35-40 परसेंट ज्यादा केसेस

सिटी के प्राइवेट हॉस्पिटल्स व क्लिनिक्स में आने वाले पेशेंट्स की भीड़ में विंटर डायरिया व निमोनिया के केसेज का ग्राफ भी ऊपर चला गया है। शहर के फिजिशियंस व पीडियाट्रिशियंस ने टोटल पेशेंट्स में विंटर डायरिया व निमोनिया के केसेज की तादाद 35-40 परसेंट तक पहुंचने की बात कही। मौसम में ठंड के तेवर कम न होने से इन बीमारियों का असर बरकरार है। डॉक्टर्स ने फरवरी के तीसरे हफ्ते तक विंटर डायरिया व निमोनिया के केसेज में कमी आने की उम्मीद जताई है।

वायरस अटैक को समझ रहे ठंड

विंटर डायरिया के लिए जिम्मेदार रोटा वायरस के अटैक को पŽिलक आमतौर पर ठंड लगना समझ रही है। विंटर डायरिया में पेशेंट को हल्के फीवर के साथ, वोमेटिंग और मरोढ़ के साथ वॉटरी मोशन होने शुरू हो जाते हैं, जो ठंड लगने के सिंपटम्स जैसे ही हैं। ऐसे में कई बार पेशेंट्स सीधे डॉक्टर्स से कंसल्ट करने के बजाए ठंड से बचने का घरेलू इलाज या एंटीबायोटिक लेना शुरू कर देते हैं, जो कोई फायदा नहीं पहुंचाता और इस देरी से कई बार हालत सीवियर हो जाती है।

बच्चें बन रहे आसान शिकार

विंटर डायरिया के शिकार वैसे तो सभी एजग्रुप के लोग हैं, लेकिन इसमें भी बच्चों को इस बीमारी अपनी चपेट में ज्यादा लिया है। 6 महीने तक के बच्चों से लेकर 14 साल तक के टीनएजर्स हायजीन का ध्यान न रखने, ठंड, पुअर न्यूट्रिशियस डाइट और अनअवेयरनेस से इस बीमारी के शिकार बन रहे हैं। डॉक्टर्स ने चेताया कि वोमेटिंग व मोशन की वजह से बच्चों के शरीर में पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स की जबरदस्त कमी पड़ जाती है। वहीं बच्चों का पेट फूलना, होंठ सूखना और आंखों में गड्ढे पडऩा जैसे सिंपटम्स नजर आते हैं। डॉक्टर्स ने कहा कि कई बार हालत ज्यादा खराब होने पर बच्चों की यूरीन बंद हो जाती है। इस सिचुएशन में पेरेंट्स बच्चे को तुरंत हॉस्पिटल में दिखाएं।

गंदगी से ज्यादा ठंड जिम्मेदार

विंटर डायरिया के मामले में गंदगी से ज्यादा ठंड जिम्मेदार होती है। डॉक्टर्स का कहना है कि गर्मियों में जहां बैक्टिरियल और अनहाइजीनिक फूड-पानी डायरिया की वजह है। वहीं ठंड में रोटा वायरस के तेजी से ग्रोथ करने के कारण विंटर डायरिया फैलती है। डॉक्टर्स का कहना है कि 60 परसेंट बच्चों को ठंड की वजह से यह बीमारी होती है। दरअसल रोटा वायरस हाथ, मं़ुह व सांस के जरिए हेल्दी पर्सन को अपनी गिरफ्त में लेता है। ठंड के दौरान रेगुलर साफ सफाई से दूरी इस वायरस को एक से दूसरे इंसान तक पनपने में हेल्प करती है। वहीं इससे बचाव के लिए बनी वैक्सिनेशन का आसानी से अवेलबेल न होना इस बीमारी को और खतरनाक बना रहा है।

 

चेंज ऑफ टेंपरेचर भी वजह

सर्दियों के दौरान टेंपरेचर में फ्रीक्वेंट चेंजेस होने से भी विंटर निमोनिया की आशंका बढ़ जाती है। ठंड में अलाव, हीटर, Žलोअर या अंगीठी से गर्माहट लेने और फिर अचानक बाहर के सर्द माहौल में जाने से सांस की नली में बुरा असर पड़ता है। गर्माहट लेने के लिए अलाव, हीटर, Žलोअर या अंगीठी का यूज करते समय रूम की ऑक्सीजन बर्न हो जाती है, जिससे संास नली में सूजन आती है। वहीं बच्चों की सांस की नली अंदर से डैमेज हो जाती है। डॉक्टर्स का कहना है कि ठंड लगने पर सीने में बाम या ब्रांडी लगाने से इंस्टैंट रिलीफ तो मिलता है, लेकिन रात भर तेज महक की परेशानी निमोनिया की वजह बनती है।

विंटर निमोनिया ने भी पसारे पांव

विंटर डायरिया की ही तरह विंटर निमोनिया ने भी सेहत में सेंध लगाने काम किया है। विंटर निमोनिया को मेडिकल टर्म में एलर्जिक ब्रोंकाइटिस कहा जाता है। इम्यूनिटी कमजोर होने के चलते भी विंटर निमोनिया के चपेट में आने के खतरे बढ़ जाते हैं। इसमें कोल्ड, खांसी, सांस फूलना, लंग्स में सूजन आना और फिर उनमें पानी भर जाने की प्रॉŽलम सामने आती है। बच्चों में विंटर निमोनिया ज्यादा देखने को मिलता है। इस बीमारी में बच्चों के होंठ और नाखूनों में नीलापन आना खतरे की घंटी है। इसमें जरा भी लापरवाही जान पर जोखिम बन सकती है।

'ठंड में रोटा वायरस की ग्रोथ काफी बढ़ जाती है, जो विंटर डायरिया की वजह है। इसमें एंटीबायोटिक फायदा नहीं करती। एटप्रेजेंट 10 में से 4 पेशेंट्स विंटर डायरिया और निमोनिया के हैं। पुअर हायजीन और ठंड से बचे। न्यूट्रिशियस डाइट लें। माएं बच्चे को दूध पिलाते समय हाथ साफ रखें'

- डॉ। जेके भाटिया, फिजिशियन

'करीब 90 परसेंट लोग विंटर डायरिया की वजह गदंगी समझते हैं, जो सही नहीं। यह हाथ और सांस से फैलने वाली बीमारी है। जो पीक विंटर्स में बढ़ जाती है। बच्चों को ठंड से बचाएं पर ओवरकवर न करें। विंटर निमोनिया 4-6 घंटे में सीवियर हो जाता है, इसमें तुरंत डॉक्टर से कंसल्ट करें.'

- डॉ। धर्मेन्द्रनाथ, पीडियाट्रिशियन