दरअसल, लोगों का ये मानना रहा है कि महिलाएँ बुरी ड्राइवर हैं और वो खराब गाड़ियाँ चलाती हैं। इस बारे में एक संस्था ने सर्वेक्षण किया था। जब दिल्ली पुलिस के विचार जानने वो उनके पास पहुँचे, तो दिल्ली पुलिस ने भी पिछले तीन वर्ष के आंकड़ों को इकट्ठा करने का फ़ैसला किया।

दिल्ली पुलिस की सोच थी कि अगर महिलाएँ ख़राब गाड़ी चलाती हैं तो फिर दुर्घटनाएँ भी करती होंगी और उन्हें इस बारे में गिरफ़्तार भी किया होगा।

दिल्ली ट्रैफ़िक पुलिस के संयुक्त आयुक्त सत्येंद्र गर्ग ने बीबीसी से कहा, “जब हमने इस बात का विश्लेषण किया तो हमें देखने को मिला कि दुर्घटनाओं में महिलाओं की ज़िम्मेदारी बेहद कम है.” वर्ष 2009 में घातक दुर्घटनाओं के मामले में 1,244 लोगों को गिरफ़्तार किया गया था जिनमें मात्र आठ महिलाएँ थीं।

वर्ष 2010 में 1139 पुरुषों और आठ महिलाओं को घातक दुर्घटनाओं के मामलों में गिरफ़्तार किया गया था। हालाँकि कम महिलाएँ दुपहिया और तिपहिया वाहन चलाती हैं मगर कार चलाने वाली महिलाओं की संख्या अच्छी ख़ासी है।

गर्ग के मुताबिक जो महिलाएँ गाड़ियाँ चलाती हैं, उनमें ईमानदारी ज़्यादा होती हैं और उनमें पुरुषों के मुकाबले दुस्साहसी होने की भावना कम होती है। गर्ग ने कहा, “जिस ग़ैर-ज़िम्मेदाराना ढंग से पुरुष गाड़ियाँ और दुपहिया वाहन चलाते हैं, उसमें सुधार की बहुत आवश्यकता है.”

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