'शादी की जगह आईएएस बनने का ख्वाब देखा'

रूवैदा सलाम शायद ऐसी पहली कश्मीरी मुस्लिम लड़की हैं जिन्होंने क्लिक करें भारतीय सिविल सेवा परीक्षा पास की है, लेकिन ये क़ामयाबी उन्हें आसानी से हासिल नहीं हुई.

जब रूवैदा ने डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी की तो उनके रिश्तेदार बहुत खुश थे और उन पर लगातार शादी के लिए दबाव बना रहे थे. लेकिन सीमावर्ती कुपवाड़ा ज़िले की रहने वाली इस लड़की की नज़र, शादी करके एक आम ज़िंदगी बिताने की बजाय सिर्फ भारतीय प्रशासनिक सेवा पर थी.

वो कहती हैं "मेरी शादी मेरे रिश्तेदारों के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता थी, लेकिन मैंने हर तरह के दबाव का विरोध किया.

रूवैदा भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर की उन तीन लड़कियों में से हैं जिन्होंने इस साल सिविल सेवा परीक्षा पास की है. अन्य दो लड़कियां राज्य के जम्मू क्षेत्र से हैं.

तीन साल पहले तक,कश्मीर घाटी या कहें कि पूरे जम्मू-कश्मीर का नाम शायद ही कभी सिविल सेवा को लेकर चर्चा में आया था, लेकिन नया मोड़ उस वक़्त आया जब घाटी के सीमावर्ती ज़िले कुपवाड़ा के निवासी शाह फैसल साल 2010 में आईएएस की परीक्षा में टॉपर बने.

शाह फैसल की सफलता ने बड़ी संख्या में कश्मीरी लड़के-लड़कियों को प्रेरित किया. अब हर साल जम्मू-कश्मीर से कुछ उम्मीदवार भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में सफल होते हैं.

इस साल 11 उम्मीदवारों ने यह परीक्षा पास की है जो कि सिविल सेवा में राज्य की अब तक की सबसे बड़ी सफलता है.

सहरिश बनीं आईएएस

जम्मू क्षेत्र के सीमावर्ती जिले किश्तवाड़ की रहने वाली सैय्यद सहरिश असगर राज्य स्तर पर अव्वल आई हैं. इस साल सिविल सेवा के 998 सफल उम्मीदवारों में सहरिश की रैंक 23वीं है.

इस परीक्षा में रूवैदा की रैंक 820वीं और जम्मू की अंचिता पंडोह की रैंक 446वीं है.

राज्य भर में अव्वल आने वाली सहरिश कहती हैं कि जम्मू-कश्मीर में दो दशकों तक सशस्त्र संघर्ष के बाद अब शान्ति आई है, जिससे अधिक से अधिक युवाओं में इस एलिट सेवा में शामिल होने की ख्वाहिश जगी है.

संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा को लेकर राज्य के युवाओं में आए बदलाव के पीछे एक आईपीएस अधिकारी अब्दुल गनी मीर का प्रयास है.

1994 बैच के आईपीएस अधिकारी अब्दुल गनी मीर को झारखंड राज्य में तैनात किया गया था.

2006 में कश्मीर लौटने के बाद उन्होंने पाया कि राज्य के युवा भारतीय सिविल सेवा के बारे में बहुत कम जानते हैं.

अब्दुल गनी मीर का प्रयास

उसके बाद उन्होंने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर घाटी भर के कॉलेजों में सेमिनार आयोजित करना शुरू किया.

उन्होंने कश्मीरी लड़के और लड़कियों को यह आश्वासन दिया कि अखिल भारतीय सिविल सेवा पास करना कोई बड़ी बात नहीं है.

वो बताते हैं, “युवाओं में बहुत तरह के संकोच थे. मैंने उनसे कहा कि अगर मैं कर सकता हूं तो तुम लोग क्यों नहीं कर सकते."

उसके बाद उन्होंने ‘इनिशिएटिव फॉर कॉम्पिटीशन प्रमोशन इन जम्मू कश्मीर’ नाम की एक संस्था बनाई जिसका काम कश्मीरी युवाओं में आईएएस की परीक्षा के प्रति रुचि और जागरुकता बढ़ाना है.

रूवैदा सलाम भी कहती हैं कि मीर साहब ने उन्हें बहुत प्रोत्साहित किया.

वो कहती हैं, “कई लड़कियां आईएएस की परीक्षा में शामिल होने से इसलिए हिचकती थीं कि उन्हें लगता था कि उन्हें गृह राज्य के बाहर तैनात किया जाएगा. लेकिन उनकी सोच 2011 में बदल गई जब राज्य के लद्दाख क्षेत्र से एक मुस्लिम महिला उवैसा इकबाल ने सिविल सेवा में कामयाबी हासिल की.”

सिविल सेवा में सफल होने के बाद रूवैदा सलाम कहती हैं कि आईएएस बनने के बाद अब उनकी पहली प्राथमिकता महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए काम करना है.

“मैं जहां भी तैनात होऊंगी, वहाँ में महिलाओं के साथ सहानुभूति रखूंगी और उनकी मदद करने की कोशिश करूंगी. “

उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार भारतीय समाज के सामने एक बड़ी समस्या है और इसे जड़ से उखाड़ना बहुत मुश्किल है. लेकिन वो अपने स्तर पर प्रयास करेंगी.

 

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