लड़ाई आज भी जारी है
78 साल की हैं अंजली बोस। सोसायटी के प्रति सर्विस एटीट्यूटड ने इनकी उम्र को एनर्जी पर हावी नहीं होने दिया है। वीमेन रिलेटेड इश्यूज हों तो रात के 12 बजे भी अंजली बोस को वहां देखा जा सकता है। पिता ने बेटों को तो पढ़ाया पर अंजली की स्कूल भेजने के बजाय शादी करवा दी। बाद में पति ने उनकी पढ़ाई पूरी तो कराई पर अफसोस भी हुआ कि नहीं पढ़ती तो हमेशा दूसरों के बारे में न सोचती और न ही लड़ाई के लिए सडक़ पर उतरती।

ताकि उन्हें फायदा हो
अंजली बोस ने कई डिकेड्स से एक लड़ाई जारी रखी है। पानी, महिला कोषांग, महिला थाना या फिर फैमिली कोर्ट, सबके लिए लड़ी हैं। अंजली बोस द्वारा संचालित महिला कल्याण समिति नाम से महिलाओं के 32 ग्रुप्स जुड़े हैं। इस ग्रुप से जुड़ी सैकड़ों महिलाओं की जिंदगी पहले से काफी बदली है। अंजली बोस सुंदरनगर स्थित अपने घर के ही नीचे महिलाओं को सिलाई और कढ़ाई की ट्रेनिंग दिलाती हैं और बाद में उनके सामान की मार्केटिंग भी करती हैं ताकि उन्हें फायदा हो।

Why did we choose her?

क्योंकि  उन्होंने अपनी लाइफ जरूरतमंद महिलाओं की हेल्प के लिए समर्पित कर दिया। इस एज में भी दूसरों की हेल्प के लिए तैयार रहती हैं।
क्योंकि आज सिटी में स्थित महिला कोषांग, महिला थाना और फैमिली कोर्ट के लिए उन्होंने लंबी लड़ाई है।

हमेशा आगे बढ़ो और सोसाइटी में खुद की अलग पहचान बनाओ

वैसे तो पूर्णिमा महतो को ज्यादातर लोग वल्र्ड की नंबर टू आर्चर दीपिका की कोच के रूप में जानते हैं पर इनका खुद का भी अचीवमेंट कम नहीं। आर्चरी में कई नेशनल और इंटरनेशनल अवार्ड अपने नाम कर चुकी पूर्णिमा टाटा स्पोट्र्स में जॉब करती हैं। वह कहती हैं वीमेन को खुद आगे आना होगा और अपनी अलग पहचान बनानी होगी। इंजीनियर हसबैंड के  घर किसी का भी स्पोट्र्स से लगाव नहीं फिर भी पूर्णिमा ने कभी पीछे मुडक़र नहीं देखा।
गल्र्स ज्यादा बेहतर करके दिखा सकती हैं
चोरी छिपे आर्चरी सीखने वाली पूर्णिमा को उनके पिता ने काफी सपोर्ट किया। वह कहती हैं कि किसी भी काम को लड़कियां किसी लडक़े से ज्यादा अच्छे से कर सकती हैं। इस मुकाम तक पहुंचने में पूर्णिमा का सेक्रिफाइज भी कम नहीं। छोटे से बेटे को छोडक़र 6 महीने तक उन्हें बाहर रहना पड़ता था।

Why did we choose her?
क्योंकि उनकी मेहनत और टिप्स ने दीपिका कुमारी को वल्र्ड आर्चरी में टॉप पर पहुंचाया। क्योंकि वे टाटा आर्चरी एकेडमी में ट्रेनिंग के लिए आने वाली गल्र्स को आर्चरी के साथ ही सेल्फ डिफेंस के बारे में भी बताती हैं।

चट्टान की तरह मजबूत हैं इनके इरादे
65 साल की उम्र में इनके इरादे चïट्टान की तरह मजबूत हैं। एक ऐसे फैमिली में पैदा होकर जहां लडक़े और लड़कियों के बीच का भेदभाव इतना गहरा था कि लड़कियों के लिए लाइफ की बेसिक सुविधाएं भी किसी सपने से कम नहीं थीं। उन्होंने ना सिर्फ खुद को काबिल बनाया साथ ही सोसाइटी की दूसरी महिलाओं की भी एक मजबूत आवाज बनकर खड़ी हुई। हम बात का रहे हैं सिटी की फेमस सोशल वर्कर अल्पना भïट्टाचार्य की। 44 मेंबर्स वाले एक ज्वाइंट फैमिली मे अल्पना ने अपने अपने लाइफ की शुरूआत एक आम घरेलू महिला की तरह की थी। पर अल्पना ने कभी भी महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचार को सहज रुप से स्वीकार करने से इंकार किया। परिवार में लड़कियों को पढऩे की इजाजत नहीं थी पर अपनी मां और चाची के सहयोग से उन्होंने हायर स्टडीज कंप्लीट की। अपने जैसी दूसरी महिलाओं को भी सशक्त बनाने के लिए वो पति के ऐतराज के बावजूद मजबूत इरादों के साथ जंग मे कूद पड़ीं।

मजबूत इरादा है जरुरी
अल्पना ने महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव को समाज के हर लेवल पर देखा है। उन्होंने बताया कि खुद के सभ्य कहने वाले सोसाइटी के ऊंचे तबके में भी महिलाओं के साथ अत्याचार अपने चरम पर है। उन्होंने कहा कि मिडिल क्लास और अपर मिडिल क्लास की महिलाएं भी उतनी ही पीडि़त हैैं जितना गरीब घरों की महिलाएं। उन्होंने इस अत्याचार को खत्म करने के लिए महिलाओं को मजबूत इरादे के साथ लडऩे की जरूरत बताई।

Why did we choose her?

क्योंकि इन्होंने ना सिर्फ खुद के हक को समझा बल्कि दूसरों के अधिकारों के लिए भी लड़ाई लड़ी। क्योंकि 65 साल की उम्र में भी बिना थके वूमेन इंपावरमेंट के लक्ष्य को पूरा करने के लिए कदम बढ़ा रही हैं।

सिर्फ इसी दिन वीमेंस डे क्यों सेलिबे्रट किया जाए?

केरला समाजम मॉडल स्कूल की प्रिंसिपल नंदिनी शुक्ला और उनकी दो और बहनों ने बचपन में ही कुछ अलग करने का सोचा था। यही वजह है कि इनकी दो बहनों में एक डॉक्टर और एक किसी प्राइवेट फर्म में मैनेजर के पोस्ट पर हैं। प्राचीन काल से ही महिलाओं को बराबरी का दर्जा नहीं मिलने की वजह से वे दुखी होकर कहती हैं महिलाओं की स्थिति को देखते हुए साल में किसी एक दिन नहीं बल्कि हर दिन को वीमेंस डे के रूप में सेलिब्रेट करना चाहिए।

पापा ने कहा था हेल्थ पर ध्यान रखना, मैं भी सभी से यही कहती हूं
नंदिनी कहती हैं कि उनके पापा ने हमेशा हेल्थ पर ध्यान रखने और फिट रहने को कहा था। वह बताती हैं कि महिलाओं की सामाजिक स्थिति और हाल के दिनों में हुए लगातार वायलेशन को देखते हुए उनका फिट रहना जरूरी है। किसी भी लेडी के लिए टाइम मैनेजमेंट सबसे बड़ा एसेट्स होता है। वह कहती हैं कि प्लानिंग के साथ काम करें तो महिलाएं हर एरिया में सक्सेस हो सकती हैं।

Why did we choose her?

क्योंकि वे घर की जिम्मेदारियों और प्रिंसिपल के रोल को निभाते हुए सोशल वर्क में आगे हैं। क्योंकि वे स्टूडेंट्स को फिट रहने की सलाह देती हैं। वे मानती हैं कि एक मां फिट रहेगी तभी फैमिली फिट रहेगी।

प्रॉब्लम को चैलेंज की तरह लें
उन्होंने हमेशा प्रॉब्लम को एक चैलेंज के रूप में लिया। दो डिफरेंट कल्चर और सोच वाली फैमिली के बीच ना सिर्फ खुद को एडजस्ट किया बल्कि एक अच्छी बेटी, पत्नी, बहू और मां बनकर दिखाया। रीना अनिल वेदाग्री ना सिर्फ अपने बच्चों और घर को संभालती हैं बल्कि पति के बिजनेस में भी बखूबी हाथ बटाते हुए सोशल वर्क से भी जुड़ी रहती हैं। सोसायटी को कुछ देने की ही चाहत ने ही उन्हें जमशेदपुर वीमेंस क्लब स्थापित करने को प्रेरित किया।

कांफिडेंट रहेंगी वीमेन तो कोई कुछ नहीं कर पाएगा
रीना कहती हैं कि वायलेशन अगेंस्ट वीमेन के केसेस इसलिए बढ़ रही हैं क्योंकि कहीं न कहीं वीमेन में कांफिडेंस की कमी है। वह कहती हैं कि सच को एक्सेप्ट करना और गलत को ना कहने की हिम्मत उनमें होनी चाहिए। उनका साफ मानना था कि कोई लडक़ी अगर कांफिडेंट हो तो कोई उसे हाथ नहीं लगा सकता।

Why did we choose her?

क्योंकि एंवायरमेंट प्रोटेक्शन के लिए उनके द्वारा किए गए काम की वजह से ही इस वीमेंस डे पर उन्हें डीसी ने फेलिसिटेट किया। क्योंकि उन्होंने सोशल वर्क को भी अपनी डेली रूटीन का एक पार्ट बना रखा है। वीमेन रिलेटेड इश्यूज हो तो रीना वहां जरूर होती हैं।

अपने दम पर बनाई पहचान
कोर्ट में दलीलें देना, लोगों की हक की लड़ाई के लिए कानून की हर किताब को खंगालना रंजना श्रीवास्तव का पेशा भी है और जीवन का लक्ष्य भी। एक वक्त था जब इनके हक को पिता और पति दोनों के ही घरों में दबाया गया। अपनी लगन और इच्छाशक्ति के बल पर वूमन लॉयर के रूप में सिटी में अपनी एक पहचान बना चुकी रंजना सभी महिलाओं के लिए एक मिसाल हैैं। गरीबों को न्याय दिलाना इनके जीवन का मकसद बन चुका है।

जब मन में हो विश्वास
चार बहनों और तीन भाइयों वाले परिवार में रंजना के लिए अपने सपनों को पूरा करना काफी मुश्किल था। वो साइंस लेकर पढऩा चाहती थी पर इसमें होने वाले खर्च को देखते हुए उन्हें आर्टस की पढ़ाई के लिए मजबूर किया गया। ट्यूशन पढ़ाकर अपनी पढ़ाई का खर्च खुद मैनेज किया। पर मुश्किलें यहीं खत्म नहीं हुई। शादी के बाद भी उनका स्ट्रगल जारी रहा, पर रंजना ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखते हुए एलएलबी की डिग्र्री हासिल की। इस दौरान भी कई मुश्किलें सामने आई। प्रेग्नेंसी के दौरान एग्जाम में शामिल होना पड़ा। पर इन सभी मुश्किलों का सामना करते हुए रंजना एक सक्सेसफुल एडवोकेट बनीं। आज सिटी में इनकी एक अलग पहचान है। खुद के जीवन को बेहतर बनाने के साथ-साथ दूसरी महिलाओं की सहायता के लिए भी रंजना के हाथ हमेशा आगे रहते हैैं। सच्चाई का साथ देने के लिए वे हमेशा आगे रहती हैं, चाहे इसके लिए इन्हें कुछ भी करना पड़े।

Why did we choose her?

क्योंकि इन्होंने अपने लक्ष्य को अपना जीवन समझा और उसे पाने के लिए हर मुश्किल का सामना किया। क्योंकि इनकी सफलता मिसाल है उन सभी के लिए जो मुश्किलों के आगे हार मान लेते हैैं।

ताकि हो कुछ बदलाव
मेल डोमिनेंट सोसायटी में एक महिला के लिए घर से निकलकर खुद की अलग पहचान बनाना आसान नहीं था। बात उस समय की है जब एक लडक़ी के लिए शादी से इंकार कर देना किसी गुनाह से कम ना था। लेकिन ललिता सरीन ने ऐसा ही किया। जेपीएस की रिटायर्ड प्रिंसिपल, एजुकेशनिस्ट और सोशल वर्कर ललिता सरीन ने सोच लिया था कि अकेले रहकर सोसायटी के लिए वह करेंगी जो खुद की फैमिली होने के बाद शायद नहीं कर पाती। वह कहती हैं कि उनके शादी ना करने के डिसीजन पर काफी ताने सहने पड़े। उन्हें इस बात का दुख भी था कि किसी मेल ने यह डिसीजन लिया होता तो इतने सवाल नहीं उठते।

Security व education है जरूरी
ललिता सरीन कहती हैं कि वीमेन के लिए मेटर्नल हेल्थ केयर, सिक्योरिटी और एजुकेशन बहुत जरूरी है। वे गल्र्स की डे्रस पर सवाल उठाने से दुखी होती हैं। वे गवर्नमेंट की पॉलिसीज पर सवाल उठाती हैं और कहती हैं कि मेल डोमिनेंट सोसायटी को उसी तरह बनाए रखने की कोशिश हमेशा से होती रही है।

Why did we choose her?

क्योंकि ललिता सरीन ने सोसायटी के लिए अपनी फैमिली लाइफ को सेक्रिफाइज कर दिया। शादी नहीं की और अकेले रहकर दूसरों की हेल्प करती रही हैं। क्योंकि वे सोसायटी में वीमेन को भी उतनी ही फ्रीडम देने की वकालत करती हैं जितनी मेल को मिली हुई है।

Report by: amit.choudhary@inext.co.in and abhijit.pandey@inext.co.in