सिर्फ मोहसिना किदवई ही दो बार चुकी हैं महिलाओं की नुमाइंदगी

संसद में महिला की नुमाइंदगी के लिए तरसती रही क्रांतिधरा

Meerut. देश में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को लेकर कई दावे किए जाते हैं, लेकिन मेरठ की लोकसभा सीट पर आजादी के बाद हुए लोकसभा चुनावों में महज दो बार ही महिलाओं को नुमाइंदगी का मौका मिला है. जी हां, मेरठ लोकसभा सीट का यही सच है. इसके बाद महिलाओं ने हर बार चुनाव तो लड़ा लेकिन जनता के दिलों में जगह बनाने में नाकामयाब रहीं. जिस कारण आज भी ये सीट महिलाओं की नुमाइंदगी के तरस रही है. मोहसिना किदवई को छोड़ दें तो इसके बाद कई बार महिलाएं चुनाव मैदान में भाग्य आजमाने उतरीं तो लेकिन उनकी जमानत जब्त हो गई. हालांकि, 2019 के आम चुनाव में मेरठ लोकसभा सीट पर 11 प्रत्याशियों में से दो ही महिला प्रत्याशी हैं. इनमें शिव सेना से आरती अग्रवाल एवं क‌र्त्तव्य समाज पार्टी से किरण जाटव चुनावी मैदान में हैं.

सिर्फ मोहसिना किदवई का परचम

दरअसल, 80 के दशक में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस नेता मोहसिना किदवई ने ही इस लोकसभा सीट पर राजनीति में महिलाओं का परचम लहराया था. साल 1980 और 1984 के दौरान हुए लोकसभा आम चुनाव में जीत दर्जकर महिलाओं की नुमाइंदगी की थी. मेरठ लोकसभा सीट से कांग्रेस नेता मोहसिना किदवई दो बार संसद की दहलीज तक पहुंचने वाली पहली और आखिरी महिला नेता साबित हुई. 1980 के आम चुनाव में मोहसिना किदवई अकेली महिला प्रत्याशी थी और इस दौरान उन्होंने 42.15 फीसदी वोट पाकर पहली बार जीत दर्ज की थी. इसके बाद 1984 के आम चुनाव में कांग्रेस से मोहसिना किदवई और निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में अंबिका सोनी और नाहिद मलिक चुनाव मैदान में उतरीं थी. इस चुनाव में मोहसिना किदवई तकरीबन 50.15 फीसदी वोट पाकर दोबार मेरठ लोकसभा सीट से सांसद चुनीं गई थी.

पहले चुनाव में एक महिला प्रत्याशी

आजादी के बाद पहले आम चुनाव 1951 में हुए थे. इसमें मेरठ डिस्ट्रिक साउथ सीट से सरोजनी देवी पहली बार लोकसभा चुनाव में उतरी थीं. इसके बाद साल 1957, 1962, 1967 और 1971 और 1977 में हुए आम चुनाव में एक भी महिला प्रत्याशी लोकसभा चुनाव में नहीं उतरी थीं.

जनता ने नकारा

साल 1980 और 1984 में मोहसिना किदवई की जीत को छोड़ दें तो इसके बाद हुए आम चुनाव में जितनी बार भी महिला उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरीं, लेकिन वे जनता के दिलों में जगह नहीं बना पाई. जिसका असर यह रहा कि उनकी जमानत तक जब्त हो गई.

नहीं मिला प्रतिनिधित्व

साल 1989 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर मोहसिना किदवई चुनाव मैदान में उतरीं लेकिन 35.36 फीसदी वोट मिल सके. वहीं निर्दलीय प्रत्याशी नाहिदा मलिक को महज 0.23 फीसदी ही वोट मिले. इसके बाद 1991 और 1992 के दौरान हुए चुनाव में महिलाओं का चुनाव में कोई खास असर नहीं रहा.

चुनाव तो लड़ी, पर जमानत जब्त

मोहसिना किदवई के बाद कोई भी महिला प्रत्याशी मेरठ लोकसभा सीट की जनता का विश्वास नहीं जीत सकी. साल 1996 के आम चुनाव में तस्लीम रिजवी को 0.36 फीसदी, पाकीजा बेगम को 0.19 फीसदी और मायावती को 0.05 फीसदी वोट मिले. तीनों महिला प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई. इसके बाद 1998 के चुनाव में मोहसिना किदवई को 5.21 फीसदी, शाहीन परवेज को 0.19 फीसदी और रमा देवी को 0.07 फीसदी वोट मिले. वहीं, 1999 के चुनाव में कोई भी महिला प्रत्याशी चुनाव मैदान में नहीं उतरीं. इसके बाद 2004 के चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी सरिता सागर को 0.18 फीसदी वोट मिले और उनकी जमानत जब्त हो गई. इसके 2009 के चुनाव में आरडीएमपी पार्टी से संतोष आहलूवालिया चुनाव मैदान में उतरीं लेकिन 0.06 फीसदी ही वोट पा सकीं. इसके बाद 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी फिल्म अभिनेत्री नगमा को सिर्फ 3.87 फीसदी ही वोट मिले. और निर्दलीय महिला प्रत्याशी इकरा चौधरी 0.07 फीसदी वोट ही हासिल कर सकीं.

क्या कहती हैं महिला प्रत्याशी

अक्सर ऐसा होता हैं लोग चुनाव में महिलाओं को केवल सिंबल के रुप में प्रयोग करते हैं, जबकि जीतने का बाद पीछे कोई और राजनीति करता है, एक बात ये भी है कि मेरठ में माहौल के चलते महिलाएं खुद को ज्यादा सुरक्षित महसूस नहीं करती है, लेकिन अगर में आती हूं तो मैं आधे से ज्यादा महिलाओं को ही रखना पसंद करुंगी.

किरण जाटव, लोकसभा प्रत्याशी

संसद में 33 प्रतिशत महिलाओं का आरक्षण है, लेकिन ये मुद्दा पूरा नहीं उठा है, महिलाओं को सीट कम मिलती है, इसके चलते महिलाएं कम होती है.

आरती अग्रवाल, लोकसभा प्रत्याशी

क्या कहती है महिलाएं

महिलाएं खुद को ज्यादा सुरक्षित महसूस नहीं करती है, इसलिए वो राजनीति में आगे आने से कतराती है.

गीता मनोज

माहौल के चलते महिलाएं खुद को शहर में सुरक्षित नहीं समझती, वहीं पुरुषवादी सोच के चलते भी महिलाएं पीछे रह जाती है.

गीता सचदेवा

अक्सर महिलाएं खुद को सुरक्षित कम महसूस करती है, दूसरा सीट भी नहीं मिल पाती जिसके चलते ऐसा होता है.

रीना सिंघल

महिलाओं को सीटें मिलती हैं तो वो जरुर सामने आती है, महिलाओं को सीटें ही कम मिलती हैं जिसके चलते वो नहीं लड़ पाती.

मोनिका जैन