- संघर्ष के दम पर बनाई राजनीति में जगह

- हर चुनाव में निभाती हैं अहम रोल

- महिलाओं के हक के लिए लड़ने का है जुनून

GORAKHPUR : सदियों की गुलामी के बाद जब हम आजाद हुए तो संविधान ने सबको बराबरी का दर्जा दिया। आजादी की लडा़ई?में न तो पुरुष पीछे रहे, न ही महिलाएं, मगर सालों संघर्ष करने के बाद भी महिलाओं को बराबरी का वो हक नहीं मिल सका, जो उन्हें मिलना चाहिए था। पुरुष प्रधान समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाने के लिए महिलाओं को एक लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी है। पूर्वाचल का एरिया उत्तर प्रदेश के सबसे पिछड़े इलाकों में से एक है, यहां का समाज अभी भी कई रूढि़यों में जकड़ा हुआ है। जिस वजह से यहां की महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व काफी कम है। कुछ महिलाओं ने जब राजनीति में शामिल हो क्रांति की अलख जगाने की कोशिश की तो उन्हें काफी संघर्षो का सामना करना पड़ा, मगर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपनी इच्छाशक्ति की बदौलत महिलाओं को राजनीति में एक मुकाम दिलाने मे कामयाब रहीं। आइए रूबरू होते हैं सिटी और आसपास की ऐसी ही कुछ महिला राजनेताओं से जो लोकसभा चुनावों में महिलाओं की आवाज बुलंद करने को तैयार हैं।

डॉ। सत्या पांडेय- भाजपा

मेयर, फ्फ् वर्ष से राजनीति में सक्रिय

मेरा मानना है कि महिलाओं को नकार कर कोई भी राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में सफल नहीं हो सकता है। मैं राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रेरित होकर राजनीति में आयी और उसी समय भाजपा से जुड़ गई। सामाजिक कार्यो में रुचि होने के कारण इस फील्ड में लगातार कार्य करती रही जिसकी वजह से मेरी पहचान आज भी सामाजिक कार्यकर्ता की बनी हुई है। मेरा मानना है कि इस समय समाज में महिलाओं की स्थिति पहले से बेहतर हुई है। महिलाओं को लेकर समाज का नजरिया भी बदला है जिसका लाभ महिलाओं के साथ ही साथ समाज को भी मिल रहा है। इस लोकसभा चुनाव में महिलाओं की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण होगी। अगर कोई पार्टी महिलाओं को नकारेगी, तो उसका पतन जरूर होगा।

राजमति निषाद- सपा

विधायक व लोक सभा प्रत्याशी, फ् साल से राजनाति में सक्रिय

राजनीति में आने के पहले भी महिलाओं के मुद्दों को लेकर सेंसिटिव रही हूं। आज भी अगर कोई महिला फरियाद लेकर आती है तो सबसे पहले उसका काम होता है। सरकार ने भी लगातार महिलाओं को लेकर महत्वपूर्ण कदम उठाने का काम किया है। इससे समाज में महिलाओं का मजबूत स्थान मिलने के साथ ही साथ समाज के स्वरूप में भी बदलाव आ रहा है। मेरा मानना है कि एक महिला जिस तरह मजबूत परिवार का निर्माण करती है, उसी तरह अगर उसको समाज की जिम्मेदारी मिल जाए तो वह एक अच्छा समाज बना सकती है। इस लोक सभा चुनाव में सभी पॉलिटिकल पार्टीज महिलाओं को लेकर सोच रही हैं। मेरा मानना है कि इस बार के चुनाव में महिला मतदाता महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।

अंजू चौधरी- भाजपा

पूर्व मेयर, क्ब् साल से राजनीति में सक्रिय

पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के लिए अपनी जगह बनाने में बहुत ही कठिनाई आती है। कई बार तो महिलाओं के साथ अल्पसंख्यक जैसा व्यवहार होने लगता है। मैं खुद समाज सेवा से जुड़ी रही, राजनीति में आने के बाद भी समाज सेवा हमारी प्राथमिकता में रहता है। कोई भी पार्टी महिलाओं को लेकर गंभीर नहीं रही है। पुरुष प्रत्याशियों के नाम की घोषणा पहले कर दी जाती है, जबकि महिलाओं के नाम की घोषणा सीट आरक्षित होने के बाद की जाती है। इस पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को स्वयं संघर्ष करना पड़ता है। महिलाओं को सीधे तौर पर इग्नोर कर को कोई भी दल या नेता मंजिल नहीं पा सकता है, लेकिन पार्टियां लोक लुभावन वादे कर अपना हित साधती हैं।

सुभावती पासवान- भाजपा

पूर्व सांसद, पूर्व विधायक, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष, क्8 साल से राजनीति में सक्रिय

महिला चुनौतियों को स्वीकार करती है। जिम्मेदारी आने पर वह भागती नहीं। मैं पूर्ण रूप से गृहणी थी, अचानक ही जिम्मेदारियों का बोझ आ गया। जनभावनाओं की कद्र करते हुए मैं रसोई से निकलकर राजनीति में एक्टिव हो गई। सामाजिक जिम्मेदारियों का दायरा बढ़ता चला गया। इस दौरान यह पता लगा कि कहीं न कहीं महिलाओं को उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है। बावजूद इसके अपने हक की लड़ाई जारी रखी। पहले सांसद, फिर जरूरत पड़ने पर विधायक, जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी संभाली। महिलाओं की स्थिति पहले से बेहतर हुई है। वे अपने अधिकारों को लेकर अलर्ट हुई हैं। महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए काम करने वाले ही कामयाब हो सकेंगे। महिलाओं को नजरअंदाज करना भारी पड़ सकता है।

डॉ। सुरहिता करीम- कांग्रेस

पूर्व मेयर प्रत्याशी, ब् साल से राजनीति में सक्रिय

महिलाएं एक बेहतर प्रशासक होती हैं। इसलिए वह परिवार चलाने की जिम्मेदारी बखूबी निभाने का काम करती हैं। ऐसे में उनको अगर देश चलाने के लिए हिस्सेदारी मिल जाए तो देश की तस्वीर बदल सकती है। मेरे हसबैंड राजनीति में थे तो राजनीति को बहुत नजदीक से देखने का मौका मिला। ख्0क्क् में जब सक्रिय राजनीति शुरू की तो राजनीति को समझने का मौका मिला। कहीं न कहीं महिलाओं को दूसरे नजरिए से देखा जाता है। हालांकि अब एक नया संघर्ष शुरू हुआ है कि जिसका परिणाम है कि आरक्षण की लड़ाई इस स्तर तक पहुंची है। लोक सभा चुनाव में यह लड़ाई अपना रंग दिखाएगी।

निर्मला पासवान- कांग्रेस

जिला पंचायत सदस्य, 9 साल से राजनीति में सक्रिय

एनजीओ चलाते-चलाते राजनीति में आई हूं। दो-दो बार सरकारी नौकरी लगने के बावजूद परिवार के दबाव के कारण नौकरी नहीं कर पायी। महिलाओं के पिछड़ेपन ने राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया। जब प्रधान बनी तो संघर्ष की शुरुआत हुई, लेकिन हार नहीं मानी। आज उसी की देन है कि जिला पंचायत सदस्य के चुनाव में विजय मिली। आज भी महिलाओं के हित के लिए संघर्ष कर रही हूं। इस बार के लोकसभा चुनाव में महिलाएं बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।

शकुन मिश्रा- सपा

पार्षद, क्8 साल से राजनीति में सक्रिय

जनता राजनीति में लेकर आई है और मुझे बहुत महत्वपूर्ण भूमिका सौंपी है जिसको निभाने के लिए लगातार संघर्ष कर रही हूं। समाज में महिलाओं को अपना स्थान बनाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है। मुझे जनता अपना मानती थी, उसके बाद भी इतना संघर्ष करना पड़ा कि जिसको बयां करना मुश्किल है। इस लोक सभा चुनाव में बहुत कुछ बदलने वाला है क्योंकि अब हालात ऐसे बनने लगे हैं कि महिलाओं ने खुद निर्णय लेना शुरू कर दिया है। अब वो दूसरों के कहने पर नहीं, अपनी इच्छा से मतदान करती हैं। यही परिवर्तन महिलाओं को मजबूत बनाने का काम करेगा।

राजकुमारी देवी- सपा

पूर्व पार्षद व विधान सभा प्रत्याशी, ख्भ् साल से राजनीति में सक्रिय

शुरू से ही समाज में महिलाओं को दूसरा दर्जा मिला है। ऐसी सिचुएशन में जिन महिलाओं ने अपना एक मुकाम बनाया है, वे अपने जीवन में काफी संघर्ष करते हुए यहां तक पहुंची हैं। इस वक्त महिलाओं और पुरुषों के बीच संघर्ष चरम पर है। महिलाएं अपने आरक्षण की मांग के लिए लड़ाई लड़ रही हैं तो पुरुष इस आरक्षण को लागू नहीं होने देना चाहते। इस चुनाव में महिलाएं अपना मतदान प्रतिशत बढ़ाकर यह साबित करेंगी कि अब महिलाओं को नजरअंदाज कर कोई भी अपनी नैया पार नहीं करा सकता है।