- देश के लिए हितकारी है 52 साल बाद आया है योग

- ज्योतिष व पंडित बता रहे हैं इसे महायोग

Meerut । इस बार जन्माष्टमी दो दिन मनाई जाएगी। वैष्णव सम्प्रदाय 25 को जबकि शैव सम्प्रदाय 24 की रात को ही जन्माष्टमी उत्सव मनाएगा। इसलिए विद्धान भी शैव व वैष्णव मत के अनुसार अलग-अलग मुहूर्त बता रहे हैं। उनके अनुसार इस बार ऐसी जन्माष्टमी 52 साल बाद आई है जो पूरे देश के लिए अति फलदायी है।

दोनों ही महत्वपूर्ण योग

ज्योतिष विशेषज्ञों के मुताबिक इस बार 24 व 25 की मध्यरात्रि को जन्माष्टमी मनाई जाएगी। 25 को अष्टमी व वृषभ का चंद्रमा रहेगा, जो भगवान कृष्ण के जन्म के समय था। रोहिणी नक्षत्र 12.5 बजे लगेगा, अत: जन्माष्टमी 25 को ही मनाना शास्त्र सम्मत है। पं। हरिशंकर जोशी ने बताया कि शास्त्रों के मुताबिक भाद्रपद कृष्ण पक्ष की सायान्हवयापिनी अष्टमी रात्रि 12 बजे है, उस दिन रोहिणी नक्षत्र में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। 24 की रात्रि 10.18 तक अष्टमी तिथि लगेगी, जो दूसरे दिन अर्थात् 25 की रात्रि आठ बजे तक रहेगी। पं। अरविंद कुमार कहते हैं कि श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की विधि अनुसार तिथि का ही सबसे ज्यादा महत्व होता है। वहीं पं। अरूण शास्त्री ने कहा कि इस वर्ष रात्रिकालीन अष्टमी तिथि 24 को मिल रही है। अत: शैव मत वाले 24 को वैष्णव मत वाले 25 को जन्माष्टमी धूमधाम से मनाएंगे।

52 साल बाद आ रहा अनूठा संयोग

इस बार श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का पर्व 52 साल बाद अनूठा संयोग लेकर आ रहा है। जब माह, तिथिवार व चंद्रमा की स्थिति वैसी ही बनी है, जैसी कृष्ण जन्म के दौरान थी। श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि, बुधवार, रोहिणी नक्षत्र व वृषभ के चंद्रमा की स्थिति में हुआ था। ज्योतिष भारत ज्ञान भूषण के अनुसार। इससे पहले ऐसा योग 1958 में बना था। 52 साल बाद ऐसा संयोग दोबारा आया है। पंडितों के मुताबिक, कृतिका नक्षत्र का काल क्रम 9 घंटे 32 मिनट का होता है। मान्यता है कि भगवान कृष्ण का जन्म अष्टमी की रात्रि रोहिणी नक्षत्र के आरंभ काल के संयोग में हुआ था।