- शहर में लगभग पांच सौ आरा मशीनें मौजूद

- सिर्फ 28 दुकानों का ही सही है लाइसेंस

- एक जुलाई से शुरू होने जा रहा है वन महोत्सव

LUCKNOW: कुर्सी रोड हो या फिर ऐशबाग माल गोदाम रोड, जानकीपुरम हो या फिर रकाबगंज, शहर के तमाम इलाकों में अवैध आरा मशीनें धड़ल्ले से चल रही हैं। इन आरा मशीनों में रोजाना लाखों की लकडि़यों कीं कटाई-छटाई हो रही है। रात के अंधेरे में यह धंधा खूब चमक रहा है। लखनऊ में ही रोजाना सुबह लाखों की लकडि़यां जंगली इलाकों से लाकर यहां बेची जा रही है। राजधानी का यह हाल तब है कि जबकि प्रदेश में एक जुलाई से वन महोत्सव मनाया जाएगा। मगर बेसिक लेवल पर इसे रोकने के लिए वन विभाग कभी एक्शन लेता नजर नहीं आता।

रात में चलता है काम

वन विभाग के अधिकारियों की मानें तो इस समय शहर में लगभग पांच सौ आरा मशीनें मौजूद हैं। जबकि इनमें से सिर्फ ख्8 दुकानों का ही लाइसेंस है। ये लाइसेंस भी यहां से जारी नहीं हुए हैं। इनमें वे लोग शामिल हैं, जो अन्य जगहों से ट्रांसफर होकर यहां आए हैं। उन्हें लाइसेंस किसी अन्य जिले से मिला है, लेकिन वे यहां पर शिफ्ट कर गए हैं। अवैध आरा मशीनें दिन भर तो बंद रहती हैं, जबकि रात में यह आरा मशीनें धड़ल्ले से चलती हैं।

सुबह होता है सारा खेल

लकड़ी के कारोबार से जुड़े व्यवसाइयों की मानें तो ऐशबाग चौराहे के पास रोज सुबह कई टन लकड़ी ट्रकों में लाकर बेची जाती है। यह बात वन विभाग को बखूबी मालूम है। फिर भी उनकी टीम ने कभी यहां आकर जांच तक नहीं की है। सुबह आठ बजे से पहले ही टनो लकडि़यों का सौदा तय हो जाता है। यहां पर यूपी के जंगलों से लकडि़यां लाई जाती है।

ख्009 में लिया था एक्शन

ऐशबाग के माल गोदाम रोड पर आरा मशीनों का काम करने वाले सर्वेश ने बताया कि आरा मशीनें दिन में चल ही नहीं सकती हैं। दिन में लोड ना होने के कारण ये मशीनें फंक्शन नहीं करती हैं। अवैध आरा मशीनों के बारे में उन्होंने बताया कि ख्009 में वन विभाग ने इनके खिलाफ ड्राइव चलाई थी। ऐसे में सिर्फ ना केवल लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई थी, बल्कि आरा मशीनों को क्रेन से उखाड़ा भी गया था। लेकिन तब से आज तक किसी के खिलाफ एक्शन नहीं लिया गया। इस फाईनेंशियल ईयर में अवैध लकड़ी के मामलों में प्रदेश भर में 7ख्ख् चालान किये गए हैं।

लखनऊ में अवैध आरा मशीनों के खिलाफ अभियान बंद नहीं हुआ है। जब भी कहीं से शिकायत आती है तो तुरंत एक्शन लिया जाता है।

- सुरेश चंद यादव

डीएफओ अवध