'पूजा के टाइम टोका मत करो'

नाश्ता बनाते हुए पत्नी ने किचन से ही आवाज लगाई, 'आज फिर भूल मत जाना. मुन्ने की वो बुक लेते आना. यहां दुकान पर नहीं मिल रही है.' पूजा पर बैठा पति झल्लाते हुए बोला, 'कितनी बार बोला है पूजा पर बैठा रहूं तो मुझे टोका मत करो.' पत्नी बाहर निकल आई और गुस्से से बोली, 'सुबह पूजा, शाम को पूजा. अरे कहूं भी तो कब? खुद उसकी डायरी देख लिया करो, रोज स्कूल से नोट लिख कर आता है.' बस फिर क्या था पति-पत्नी में खटपट शुरू और पति को आज फिर बिना नाश्ता किए ऑफिस के लिए निकलना पड़ा.

गुरुजी सब ठीक कर देंगे

लंच के टाइम शर्मा जी ने राकेश को टोका, 'चलो बाबू. लंच कर लिया जाए.' राकेश ने कहा, 'नहीं यार, आज बहुत काम है. तुम चलो.' शर्मा जी ने कहा, 'लगता है आज फिर घर में भाभी से...' राकेश बीच में ही बोला, 'क्या करूं यार... उसका तो धर्म-कर्म में विश्वास ही नहीं...' शर्मा जी ने कहा, 'छोड़ यार आज ऑफिस के बाद गुरुजी के यहां चलते हैं. वो तेरी पत्नी को रास्ते पर लाने की व्यवस्था कर देंगे.' राकेश तैयार हो गया. शाम को जल्दी काम खत्म करने के बाद दोनों दोस्त गुरुजी के आश्रम की ओर निकल पड़े. गुरुजी ने राकेश से कहा कि वे रविवार को उनके घर आएंगे और पत्नी को समझा देंगे.

बैठे पूजा पर खयाल स्कूल में झगड़े का

रविवार की सुबह गुरुजी राकेश के घर पहुंचे, पत्नी ने दरवाजा खोला तो गुरुजी ने पूछा, 'राकेश घर पर है?' वो बोली, 'नहीं, वो मुन्ने के स्कूल में झगड़ रहे हैं.' तभी राकेश पूजा से उठकर भागते हुए आया और गुरुजी के पैर छूकर बोला, 'झूठ क्यों बोल रही हो. मैं तो पूजा पर बैठा था. तुम जानती नहीं क्या?' इस पर वो बोली, 'तुम पूजा पर बैठे जरूर थे लेकिन तुम्हारा ध्यान तो मुन्ना के स्कूल पर ही था कि वो रोजाना उसके डायरी में किताब के लिए क्यों लिख देते हैं. वो स्कूल में खुद ही बुक क्यों नहीं मंगा लेते. वे ऐसे प्रकाशकों की बुक क्यों चलाते हैं जो आसानी से मार्केट में नहीं मिलती.' गुरुजी ने राकेश की ओर देखा. राकेश ने सिर झुकाकर बोला, 'जी गुरुजी, यह ठीक कह रही है. मैं रोजाना मुन्ना की बुक लाना भूल जाता हूं. आज पूजा पर बैठा मन में यही खयाल आ रहा था कि सुबह स्कूल जाकर उन लोगों को खरी-खोटी सुनाउंगा.'

घर-गृहस्थी का काम भी तो पूजा ही है

अब बारी राकेश की पत्नी की थी. वह बोली, 'इन्हें बस सुबह-शाम पूजा का ही खयाल रहता है. घर में क्या सामान है क्या नहीं. कई बार बताने पर भी वे कान नहीं देते. घर का सारा काम, राशन-पानी से लेकर स्कूल सबकुछ मैं ही देखती हूं. ऐसे में मैं इनकी तरह सत्संग और पूजा करूं तो चल चुका घर. ये सब काम पूजा और धर्म-कर्म से कम है क्या?' गुरुजी बात समझ गए कि राकेश के साथ-साथ उन्हें भी लपेटा जा रहा है. उन्होंने कहा, 'बेटी, तुम ठीक कह रही हो. दैनिक कार्य मन लगाकर निपटाना ही पूजा है. ईश्वर तो हमारे अंदर होता है जिसे हम याद करके उस कार्य को करने की हिम्मत जुटाते हैं. पूजा पर बैठे व्यक्ति का मन भटके तो क्या फायदा? जो भी कार्य करो उसी में खो जाओ, विचार शून्य होकर ही आप ईश्वर में ध्यान लगा सकते हैं. मन लगाकर कार्य करने से इसका अभ्यास होता है इसिलिए कर्म को पूजा कहा गया है.'