- 3500 एड्स पेशेंट्स ने एआरटी सेंटर जाना किया बंद, ढूंढने में यूपी और नेशनल एड्स कंट्रोल सोसाइटी की बढ़ी परेशानी

- 2007 से अबतक 14, 500 एचआईवी संक्रमित मरीज हो चुके हैं रजिस्टर्ड

- जिले में लगभग हर महीने तैयार हो 60 नए एड्स रोगी

- ग्रामीण महिला रोगियों पर नहीं पहुंचती हैं एआरटी सेंटर

GORAKHPUR: एड्स के मरीज लापता हो गए हैं। इसकी वजह से स्वास्थ्य महकमे में हड़कंप मचा गया है। सिर्फ जिले ही नहीं बल्कि इसके लिए यूपी और नेशनल लेवल पर एड्स कंट्रोल करने वाली संस्थाएं परेशान होकर इनकी तलाश में लगी हुई हैं, लेकिन अब तक इनका पता नहीं चल सका है। सोर्सेज की मानें तो जिले में करीब 35 सौ एड्स संक्रमित मरीज लापता हो गए हैं। ये वे पेशेंट्स है जिन्होंने एचआईवी पॉजिटिव रिपोर्ट आने के बाद एआरटी सेंटर जाना बंद कर दिया। जिले के सभी एआरटी सेंटर्स ने इनकी काफी तलाश की, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। 2007 से लेकर अब तक बीआरडी मेडिकल कॉलेज के एआरटी सेंटर में करीब 14,500 एचआईवी संक्रमित मरीज रजिस्टर्ड हो चुके हैं।

चरगावां में सबसे अधिक एड्स पेशेंट्स

जिले में 2007 से शुरू हुए एआरटी सेंटर में अब तक सबसे अधिक पेशेंट्स चरगावां ब्लॉक से रजिस्टर्ड हुए हैं। वहीं गोला, बड़हलगंज और कौड़ीराम से भी बड़ी संख्या में एचआईवी संक्रमित पेशेंट्स का रजिस्ट्रेशन हुआ है। एआरटी सेंटर में रजिस्टर्ड केसेज पर नजर डालें तो एड्स संक्रमण के पीछे जो सबसे बड़ी रीजन सामने आया है वह है बाहर रोजगार। संक्रमित होने के कारणों में 80 परसेंट मरीज रोजगार के लिए बाहर गए थे, जहां से उन्हें यह बीमारी लग गई। जिले में रोजगार न होने के कारण यहां के गरीब दूसरे राज्यों के शहरों में जाते हैं। उनकी आर्थिक हालत तो नहीं सुधरती है, बल्कि उनका मौत से जरूर सामना हो जाता है।

800 एचआईवी पॉजिटिव ने लिया जन्म

एक तरफ जहां एड्स पीडि़तों की तादाद बाहर जाने की वजह से बढ़ी है। वहीं 2007 से अब जिले में करीब 800 एचआईवी पॉजिटिव जन्मे बच्चों ने इस आंकड़े को और भी बढ़ा दिया है। सोर्सेज की मानें तो इसमें से करीब 315 बच्चे अब भी जीवित हैं। इन सभी का जिले के एआरटी सेंटर्स पर इलाज चल रहा है। गौरतलब बात यह है कि एआरटी सेंटर पर करीब 21 एचआईवी पीडि़तों का एचआईवी से पीडि़त से विवाह भी कराया है। जो नियमित दिनचर्या के साथ अपना जीवन यापन कर रहे हैं।

अंधविश्वास में फंसे 20 परसेंट मरीज

जिले के एआरटी सेंटर्स के आसपास कुछ ऐसे शर्तिया इलाज करने वाले सक्रिय हैं, जो संक्रमित पेशेंट्स को लूटने के साथ-साथ उनके जीवन के लिए खतरा बने हुए हैं। बीआरडी मेडिकल कॉलेज के एआरटी सेंटर से जुड़े सूत्रों की मानें तो यहां आए करीब 20 परसेंट एचआइवी संक्रमित पेशेंट्स अंधविश्वास में आकर शर्तिया इलाज कराने के चक्कर में पड़ जाते हैं। जिससे वे धन और तन दोनों से ही हाथ धो बैठते हैं।

सक्रिय है शर्तिया इलाज वाले

सूत्रों की माने तो जिले के गगहा और सहजनवां ब्लॉक में दो ऐसे बाबा मौजूद हैं, जो एड्स संक्रमितों पेशेंट्स का शर्तिया इलाज करने का दावा करते हैं। इस बदले वह पेशेंट्स से अच्छी खासी रकम भी ऐंठते हैं। ये अपना काम इतनी सफाई से करते हैं कि एड्स कंट्रोल के लिए काम करने वाली यूनिट्स अब तक इनका बाल भी बांका नहीं कर सकी है, लेकिन भोले-भाले मरीज इनके चक्कर में फंसकर न सिर्फ अपनी परेशानी बढ़ा रहे है, बल्कि लगातार मौत के करीब जा रहे हैं। कुछ ऐसे इलाज करने वाले संतकबीर नगर में भी सक्रिय हैं।

आंकड़े एक नजर में

अब तक कुल रजिस्टर्ड 14,500

जिले में पेशेंट्स की तादाद 10,521

एआरटी सेंटर पहुंच रहे पेशेंट्स 3,400

एआरटी सेंटर न पहुंचने वाले पेशेंट्स 3050

इयर वाइज एड्स डेटा

वर्ष रजिस्टर्ड पेशेंट्स

2008 708

2009 570

2010 670

2011 600

2012 650

2013 650

2014 705

2015 701 अब तक

क्या है एड्स पेशेंट्स बढ़ने के रीजंस -

- एचआइवी एड्स जिस वर्ग के लोगों में बढ़ रहा है, वह एड को या पढ़ते नहीं या फिर समझ नहीं पाते।

- ज्यादातर सरकारी एड शहरों में है, जबकि गांवों से पलायन करने वाले मजदूर वर्ग में यह बीमारी ज्यादा फैल रही है।

- सरकारें योजना बनाकर काम नहीं कर रही हैं। ग्रामीण महिलाओं और शहर कमाने जाने वालों को चिन्हित कर जांच कराने जरूरत है।

- रूरल और अर्बन एरियाज के कॉलेजेज में अवेयरनेस के लिए सेमीनार ऑर्गनाइज होने चाहिए, जिससे नई जनरेशन अवेयर होकर आसपास के लोगों को भी अवेयर कर सके।

इनसे नहीं फैलता है एड्स

दोस्ती करने से

साथ खाना खाने से

इनफेक्टेड कपड़े पहनने से

इनफेक्टेड शौचालय का यूज करने से

मच्छर काटने से

बीमारी के रीजंस को लेकर लोगों को अवेयर करने की जरूरत है। हाल के वर्षो में एड्स पीडि़तों की तादाद काफी तेजी से बढ़ी है, जिसे कंट्रोल के लिए अवेयरनेस प्रोग्राम चलाए जाने चाहिए।

- डॉ। एसके मल्ल, एसएमओ

शर्तिया इलाज करने वाले साधुओं और तांत्रिकों को पकड़ने के लिए समय समय पर प्रयास किया जाता है। इन पेशेंट्स को बाद में दी जाने वाली मेडिसिंस पहले ही दे देते हैं। जिससे केस काफी बिगड़ जाता है।

डॉ। संजय राय, चिकित्सक, एआरटी सेंटर, बीआरडी मेडिकल कॉलेज