हो सकती है अलार्मिंग स्टेज

 फोर्थ की स्टूडेंट मिनमिन के क्लासमेट उसकी टिफिन के दीवाने हैं। उसके पैरेंट्स डेली फास्ट फूड के डिफरेंट आइटम्स जो उसमें रखकर भेजते हैं। यह मिनमिन को भी बहुत पसंद है। हो सकता है आप भी अपने बच्चे के टिफिन के साथ भी कुछ ऐसा ही बर्ताव करते हों। बट, यह उसके लिए अलार्मिंग स्टेज हो सकती है। इलाहाबाद में पिछले दिनों एक रिसर्च स्कॉलर द्वारा डिफरेंट स्कूलों में किए गए सर्वे में पाया गया था कि 9 से 16 वर्ष के 18 परसेंट बच्चे मोटापे का शिकार हैं। जिसका सबसे बड़ा रीजन फास्ट फूड है और यह मोटापा डायबिटीज जैसी घातक बीमारी की पहली सीढ़ी होती है। इसलिए अभी भी वक्त है, उसके टिफिन को रेस्टोरेंट मत बनाइए।

तेजी से बढ़ रहे हैं पेसेंट्स

बच्चों में डायबिटीज के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। जो बच्चे जन्म से डायबिटिक होते हैं उन्हें ताउम्र इंसुलिन लेना होता है। कई बार लक्षणों की पहचान न हो पाने से बच्चे की  मौत, डायाबिटिक कोमा में हो जाती है। इसी तरह लेजी लाइफ स्टाइल और हाई कैलोरी युक्त फास्ट फूड की वजह से बच्चों में मोटापे की प्रवृत्ति बहुत तेजी से बढ़ रही है। जो उन्हें सीधे तौर पर डायबिटीज का पेशेंट बनाने के लिए काफी है। इंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ। सरिता बजाज कहती हैं कि मोटापे की वजह से बच्चों में डायबिटीज के पेशेंट तेजी से बढ़े हैं। बच्चों के टिफिन में समोसा, पकौड़ा की जगह पौष्टिक चीजें रखी जानी चाहिए। साथ ही स्कूलों में भी खेलकूद को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

क्या कहता है सर्वे

सिटी के डिपरेंट स्कूलों में किए गए सर्वे में वाकई चौंकाने वाले तथ्य  सामने आए हैं। एक रिसर्च स्कॉलर द्वारा किए गए सर्वे में पता चला कि 9 से 16 साल की उम्र के 18 फीसदी बच्चे मोटापेे के शिकार हैं। इन बच्चों में फास्ट फूड के प्रति बढ़ती रुचि और वर्कआउट में जबरदस्त कमी होना इसका मेन रीजन था। कई बच्चों ने बातचीत में बताया कि उनका अधिकतर समय टीवी और कम्प्यूटर पर बीतता है। गेम्स भी वह इनडोर ही लाइक करते हैं। उनके पैरेंट्स भी उन्हें आसानी से मनपसंद फूड आइटम्स अवेलेबल करा रहे हैं। फिजीशियन डॉ। ओपी त्रिपाठी कहते हैं कि अब समय आ गया है जब पैरेंट्स को अवेयर होना होगा, वरना ऐसे बच्चों का फ्यूचर काफी खतरनाक हो सकता है।

ये सावधानियां बरतनी जरूरी हैं

-समय-समय पर ब्लड की जांच कराते रहें।

-नियमित शुगर स्तर की जांच कराएं।

-आपको किसी भी प्रकार का घाव हो, तो उसे खुला ना छोड़ें।

-फलों का रस लेने के बजाय, फल खाएं।

-व्यायाम करें और वजन नियंत्रित रखें।

-ग्लूकोज, चीनी, जैम, गुड़, मिठाईयां, तले हुए आहार, अल्कोहल का सेवन, सूखे मेवे, बादाम, मूँगफली, आलू, शकरकंद, मटर, सेम जैसी सब्जियाँ, केला, शरीफा, चीकू, अन्जीर, खजूर जैसे फल से परहेज करेंं।

   -सलाद, कच्ची सब्जियां, सब्जिय़ों के सूप, चाय, काफी या नीबू पानी पर्याप्त मात्रा में ले सकते हैं।

देश का भविष्य हैं बच्चे

वल्र्ड डायबिटीज डे की पूर्व संध्या पर क्रास्थवेट इंटर कॉलेज में ऑर्गनाइज एक प्रोग्राम के दौरान सीडीओ अटल कुमार राय ने कहा कि बच्चों को खेलकूद के प्रति एक्टिव होना चाहिए। बेहतर खानपान की आदत डालें ताकि वह मोटापे और डायबिटीज से बचें। ऐसा करके हम देश के भविष्य को संवार सकते हैं। इस दौरान एमएलएन मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ। एसपी सिंह ने कहा कि डायबिटीज ऐसा रोग है बॉडी के सभी आर्गंस को इफेक्टेड कर देता है। सीनियर इंडोक्राइनोलाजिस्ट डॉ। सरिता बजाज ने फास्ट फूड के बढ़ते चलन को रोकने की बात कही। डायबिटीज एजूेशन फाउंडेशन की चीफ कोआर्डिनेटर व मधुमेहिका मैगजीन की एडिटर डॉ। शांति चौधरी ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

1991 से मनाया जाता है  वर्ड डायबिटीज डे

वल्र्ड डायबिटीज डे मनाने के लिए इंटरनेशनल डायबिटीज एसोसिएशन और वल्र्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन ने 14 नवंबर का चयन 1991 में किया था। 14 नवंबर के दिन का चयन फ्र्रेडरिक बैटिंग का जन्म दिन होने के चलते किया गया था। एक्चुअली डायबिटीज के कारण एवं इसके विभिन्न पहलुओं को समझने के लिए फ्र्रेडरिक बैटिंग एवं चाल्र्स बेस्ट की जोड़ी ने पैंक्रियाज ग्लैंड द्वारा रिलीज्ड हार्मोन की रसायनिक संरचना को अलग करके अक्टूबर, 1921 में प्रदर्शित किया कि यह तत्व शरीर में ग्लूकोज़ का निस्तारण करने में अहम भूमिका निभाता है। इसकी कमी होने से मधुमेह रोग हो जाता है। इसे इंसुलिन का नाम दिया गया। इसकी खोज मधुमेह के इतिहास में एक मील का पत्थर है। इसके लिए इन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। प्रत्येक वर्ष इसके लिए अलग थीम निर्धारित की जाती है। इंटरनेशनल डायबिटीज ऑर्गेनाइजेशन के सतत प्रयास के फलस्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ ने मधुमेह की चुनौती को स्वीकारा और दिसम्बर, 2006 में इसे अपने स्वास्थ कार्यक्रमों की सूची में शामिल किया। 2007 से यह संयुक्त राष्ट्र के कार्यक्रम के रूप में मनाया जाता है। यूएनओ द्वारा इस दिवस को अंगीकार करने के बाद इस का प्रतीक चिह्न नीला छल्ला चुना गया है।

भारत में मधुमेह

भारत को मधुमेह की राजधानी कहा जाता है। लाइफ स्टाइल में चेंज और शारीरिक श्रम की कमी के कारण भारत में इसका सबसे विकृत स्वरूप उभरा है जो भयावह संकेत है। एक दशक पहले भारत में डायबिटीज होने की औसत उम्र चालीस साल की थी जो अब घट कर 25 से 30 साल हो चुकी है। 15 साल के बाद ही बड़ी संख्या में लोगों को मधुमेह का रोग होने लगा है।