'लड़कियों को तालीम से नहीं रोकता मजहब'

- व‌र्ल्ड मुस्लिमा अवार्ड-2014 की रनर अप नाजरीन से बातचीत

दिल से बात निकलती है, लबों पर आकर ठहरती है,

कहना चाहती हूं जो, कह नहीं पाती हूं

शायद, कहने से पहले ही मैं मरवा दी जाती हूं

Meerut : शौकिया कविता लिखने वाली नाजरीन की डायरी में ये पंक्तियां आज से काफी पहले कन्या भ्रूण हत्या से आहत होकर उपजी थीं। शायद उन्हीं पंक्तियों के साथ जन्मी थीं, अपने समय और समाज को प्रभावित करने की जिद। इसी जिद ने नाजरीन को मेरठ के रशीदनगर की तंग गलियों से निकालकर जकार्ता के खुले आसमान तक पहुंचा दिया। मुस्लिम लड़कियों के लिए आयोजित सौंदर्य प्रतियोगिता व‌र्ल्ड मुस्लिमा अवार्ड-ख्0क्ब् में दूसरे स्थान पर रहने वाली नाजरीन का व्यक्तित्व परंपरा और आधुनिक मूल्यों का अनोखा मिश्रण है। नाजरीन मुस्लिम महिलाओं में तालीम को बढ़ावा देने की बात करती हैं और तर्क के साथ समझाती हैं कि मजहब इसमें कहीं आड़े नहीं आता। लेकिन देश के पारंपरिक मुस्लिम समाज के बदलते हुए चेहरे की मेरठी प्रतिनिधि बन चुकीं नाजरीन के लिए आधुनिकता कोई दिखावे की चीज नहीं है। इंडोनेशिया से शनिवार देर रात को ही लौटीं नाजरीन ने जागरण के साथ खास बातचीत में शेयर कीं अपनी फीलिंग्स।

-मेरठ के रशीदनगर की तंग गलियों से निकलकर सीधे जकार्ता की सौंदर्य प्रतियोगिता। ये सफर आसान तो नहीं ही रहा होगा।

सफर बहुत आसान तो नहीं था, लेकिन सारी मुश्किलें मुझ पर ही आ पड़ीं, ऐसा भी नहीं था। तालीम आगे बढ़ाती है, परिवार ने तालीम दिलावाई तो मुस्लिमा अवार्ड तक पहुंची। खुदा का शुक्र है कि मैं सभी राउंड क्लियर करती चली गई और ख्भ् मुल्कों में दूसरे नंबर पर रही। रशीदनगर मेरठ का पिछड़ा इलाका है, जहां नए विचार आसानी से नहीं पहुंचते, लेकिन मुझे कभी ऐसा नहीं लगा। मुझे खुद को लेकर भी कोई विरोध नहीं देखना पड़ा। हां, तालीम की कमी की वजह से लोग तमाम बहलावे-फुसलावे का शिकार हैं।

-व‌र्ल्ड मुस्लिमा अवार्ड के बारे में थोड़ा तफ्सील से बताएं। दूसरे देश की लड़कियों के साथ आपके क्या अनुभव रहे?

व‌र्ल्ड मुस्लिमा अवार्ड, व‌र्ल्ड मुस्लिमा फाउंडेशन की ओर से होने वाली एक विशेष सौंदर्य प्रतियोगिता है। इसमें इस्लामी अदब, कुरान व हदीस की तिलावत, तालीम, आदि चीजों के बारे में सवालात होते हैं। इसका खास मकसद जेहनी और रूहानी खूबसूरती को परखना है, न कि जिस्मानी खूबसूरती परखना। एक चीज मैंने गौर की। एशियन लड़कियां हर समय हिजाब में रहती थीं, मगर यूरोपियन व अमेरिकन लड़कियां हर समय हिजाब में नहीं रहती थीं। हिंदुस्तान में इतने तरह के कल्चर साथ-साथ रहते हैं, इसको लेकर पूरी दुनिया में बड़ा ताज्जुब है।

-मुस्लिम लड़की और सौंदर्य प्रतियोगिता। मजहब के नाम पर विरोध होगा, कभी ऐसा नहीं लगा?

जो लोग दीनी मामलों के जानकार हैं, धर्म की व्याख्या उनका काम है। मुस्लिम समाज की लड़कियों में शिक्षा की कमी है और माना जाता है कि मुसलमान अपनी लड़कियों को नहीं पढ़ाते हैं। ऐसा अगर धर्म के नाम पर कोई करता है तो ये गलत है। मैं पूछती हूं कि आप कुरान पढ़ने को कहते हो, लेकिन कोई अगर पढ़ा लिखा ही नहीं होगा कैसे पढ़ेगा और अगर पढ़ भी लेता है तो उसकी तालीम और दर्शन को कैसे समझेगा। मजहब औरतों की तरक्की की बात करता है, तालीम की बात करता है। अब अगर मोदीजी सफाई अभियान की बात अच्छी नीयत से कहते हैं और कोई उसे किसी गलत नीयत से लेता है तो उसमें प्रधानमंत्री की तो कोई गलती नहीं हो जाती।

-अब आप मुस्लिम महिलाओं के बदलाव का चेहरा हैं। कट्टरपंथ पर आपकी बात को युवा सुनेंगे, ऐसे में इस बारे में आपको स्पष्ट होना होगा।

मैं साफ हूं। इस बात को भी मानती हूं कि कई बार मजहब के नाम पर बेमतलब की बात की जाती हैं। लेकिन हर रोक-टोक को कट्टरपंथ का नाम नहीं देना चाहिए। कई बार हम कुछ गुंजाइश देते हैं और उन्हें ज्यादा पाबंदियां आयद करने का मौका मिल जाता है।

-तलाक का मसला हो या मुस्लिम पर्सनल लॉ और कानून। क्या आपको ये नहीं लगता कि ये कुछ ज्यादा पुरुषवादी हैं?

मुझे लगता है कि इस सवाल का जवाब उसी को देना चाहिए जो इन मसलों पर पूरी काबिलियत रखता हो। हां, व्यवहारिक तौर पर कुछ दिक्कतें जरूर हैं जो वक्त और तालीम के साथ सुधरेंगी, ऐसी उम्मीद है।

-भविष्य की क्या योजना हैं?

मैं मुस्लिम महिलाओं के लिए तालीम पर काम करना चाहती हूं। उनके लिए मदरसा खोलना चाहती हूं। आप कहेंगे कि मदरसा ही क्यों? इसकी वजह है कि मदरसों के नाम पर लड़कियां आसानी से पढ़ने आएंगी। वहां दीनी तालीम के साथ हम दुनियावी तालीम भी देंगे। बदलाव धीरे-धीरे ही आते हैं।