MATHURA (27 April): केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने मथुरा में स्थापित औद्योगिक इकाइयों को राज्य सरकार का विषय बताते हुए पल्ला झाड़ लिया है। यमुना प्रदूषण के लिए औद्योगिक कचरे को जिम्मेदार बताने वाली राष्ट्रीय हरित अधिकरण में दायर याचिका को उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने गैर जरूरी बता दिया है। एनजीटी से इसे खारिज करने की अपील की है। अब 25 मई को अंतिम सुनवाई होगी।

आदेशों का अनुपालन नहीं

इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर करीब 18 साल पहले लागू हुई यमुना कार्ययोजना में जिला प्रशासन और उसके अधिकारियों द्वारा आदेशों का अनुपालन नहीं किया जा रहा है। यमुना प्रदूषण में लगातार बढ़ोतरी से तंग आकर यमुना कार्ययोजना के याची गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी ने एनजीटी में याचिका दायर की हुई है। उन्होंने औद्योगिक कचरे को यमुना प्रदूषण के लिए जिम्मेदार बताया है। एनजीटी ने फरवरी माह में याचिका स्वीकार करते हुए उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, जिलाधिकारी और शासन के मुख्य सचिव को नोटिस देकर जवाब मांगा हुआ है।

हाईकोर्ट में पहले से लंबित

एनजीटी की कोर्ट संख्या-दो में बुधवार को जस्टिस यूडी साल्वी के नेतृत्व में पांच जजों की पूर्ण पीठ ने सुनवाई की। इससे पहले उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपने जवाब दाखिल कर दिए। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिवक्ता ने एनजीटी में कहा कि औद्योगिक इकाइयों का संचालन कराना अथवा उन्हें शहर बाहर करना राज्य सरकार का विषय है। इसमें उसकी ज्यादा भूमिका नहीं है। सीपीसीबी ने मामले से अपना पल्ला झाड़ लिया तो उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एक कदम आगे बढ़ते हुए इस याचिका को ही खारिज करने की अपील कर डाली। यूपी पीसीबी ने तर्क दिया कि यमुना प्रदूषण संबंधी एक याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट में पहले से ही लंबित है, लिहाजा याची को डबल बेनीफिट नहीं दिया जाना चाहिए।

यमुना में गिर रहे थे नाले

इस पर याची के अधिवक्ता राहुल कुमार ने जोरदार बहस करते हुए कहा कि दोनों याचिकाओं के विषय अलग हैं। जब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जिला प्रशासन के नोडल अधिकारी यमुना कार्ययोजना के आदेशों की अवहेलना कर रहे हैं, इसीलिए उन्हें एनजीटी का दरवाजा खटखटाना पड़ा है। उन्होंने कहा कि औद्योगिक कचरा सीधा नाले में जा रहा है और सरकारी मशीनरी इकाइयों से लेकर एसटीपी तक पहुंचने में सफाई की कोई कार्रवाई नहीं कर रही है।

नहीं दाखिल किया जवाब

इस मध्य अदालत में अभी तक जिलाधिकारी और शासन के मुख्य सचिव की ओर से नोटिस के सापेक्ष कोई जवाब दाखिल नहीं किया गया। अदालत अब अंतिम सुनवाई आगामी 25 मई को करेगी। तभी फैसला होगा कि यमुना प्रदूषण के लिए औद्योगिक इकाइयों की भूमिका पर याचिका आगे बढ़ेगी अथवा नहीं। याची गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी ने बताया है कि स्टेट और सेंटर के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के जवाबों के सापेक्ष वह रिज्वाइंडर एक सप्ताह के अंदर दाखिल कर देंगे।