रात में भेजा भारत

रिहाई में भी पाकिस्तान ने नापाक हरकत की. भारतीयों को प्रताड़ित कर मानसिक रूप से विकृत करने की उसकी काली करतूत रात के अंधेरे में खो जाए, इसलिए उसने कैदियों को भारत लौटाने के लिए रात का समय तय किया. अंतरराष्ट्रीय अटारी सड़क सीमा पर पहुंचने पर पाकिस्तान के अधिकारियों ने सीमा सुरक्षा बल के अधिकारियों को इन कैदियों को सौंपा.

साफ झलक रहे थे जुल्मों के निशान

यशपाल सहित रिहा हुए भारतीयों बिहार के रामदास व राजू, महाराष्ट्र की सीता, पश्चिम बंगाल का लतीफ हक, गुजरात का मुहम्मद हनीफ और जालंधर के त्रिलोक चंद पर ढाए गए जुल्मों के निशान उनके चेहरों व चाल से साफ झलक रहे थे. यशपाल से जब बात करने की कोशिश की गई तो वह हंसने लगा. बरेली से आए पिता बाबूराम ने दूर से जब बेटे को देखा तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि वह विक्षिप्त होकर वापस लौट रहा है. यशपाल को देखते ही वह फफक पड़े. थोड़ी देर बाद उसे गले लगाया और सिर पर हाथ फेरा.

कब पाकिस्तान गया पता नहीं

अपनों के स्पर्श का अहसास कर यशपाल भी पिता से लिपट कर जोर- जोर से रोया. इस मौके पर बाबूराम ने बताया- 'मैं तो परिवार का पेट पालने के लिए उसे दिल्ली मजदूरी करने के लिए भेजा था. वह कब पाकिस्तान चला गया, इसकी कोई जानकारी नहीं है. 2010 में उन्हें पाकिस्तान की शाहीवाल जेल से एक पत्र मिला था, जिसमें लिखा था कि यशपाल गलती से सीमा पार करने के आरोप में तीन वर्ष की सजा काट रहा है. पत्र मिलते ही आसपास के लोगों को पढ़ाया. लोगों ने कह दिया कि अब वह कभी वापस नहीं लौटेगा.'

दैनिक जागरण में छपी थी खबर

कोट लखपत जेल में सरबजीत सिंह की मौत के बाद जब दैनिक जागरण में यह खबर प्रकाशित हुई कि बरेली का एक लड़का यशपाल भी पाकिस्तान में सजा काट रहा है तो कुछ समाजसेवी संगठनों के डॉ. प्रदीप कुमार, डॉ. संजय सक्सेना व संजय गुप्ता ने इस पूरे मामले को अपने हाथों में ले लिया. डॉ. प्रदीप कुमार ने दिल्ली स्थित पाकिस्तान दूतावास के अधिकारियों को पत्र लिखा. यशपाल की नागरिकता को प्रमाणित करने के लिए दस्तावेजों को बनाया गया.

30 मई को पूरी हो गई थी सजा

तीन जून को पाकिस्तानी दूतावास के माध्यम से पाकिस्तान सरकार को उसके भारतीय होने के प्रमाण पत्र दिए गए. क्षेत्र की सांसद मेनका गांधी को भी इस पूरे मामले की जानकारी दी गई. उन्होंने केंद्रीय विदेश मंत्रालय को यशपाल को रिहा करवाने के बारे में पत्र लिखे. चार जून को पाकिस्तान दूतावास से एक पत्र आया कि उसे रिहा किया जा रहा है. बरेली के फरीदपुर तहसील के पढ़ेरा गांव में रहने वाला यशपाल की सजा गत 30 मई को पूरी हुई.

दस घंटे का इंतजार दस साल जैसा

इंटीग्रेटिड चेक पोस्ट (आइसीपी) में स्थित एक बड़े हॉल में सुबह दस बजे से बैठे यशपाल के पिता बाबूराम के लिए दस घंटे का इंतजार दस साल के बराबर महसूस हुआ. जब उन्हें पता चला कि बेटा विक्षिप्त हो गया है तो भीतर से टूट से गए. वह बार-बार इमिग्रेशन अधिकारियों से पूछते कि पाकिस्तान कब भारतीयों को रिहा कर रहा है. पहले उन्हें दोपहर बारह बजे, तीन बजे, फिर छह बजे और अंत में आठ बजे यशपाल के आने की सूचना दी गई.

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