यूथ के नजरिए में 5 Es education, enthusiasm, emotions, economy और entertainment क्या है। एजुकेशन को वह किस रूप में देखता है। अपने सपनों को लेकर उसमें कितना इंथुजियाज्म है और आज के युवाओं के लिए एंटरटेनमेंट क्या है। इसे जानने के लिए पूरे हिंदुस्तान के युवाओं की नब्ज टटोलनी होगी। जो एक-दो दिनों में तो संभव नहीं। इसलिए हमने एक ऐसे स्थान का सेलेक्शन किया, जहां मिनी हिंदुस्तान की झलक दिखती है। आईआईटी पटना का कैंपस। यहां पांच स्टेट के युवाओं को सैंपल के तौर पर आगे रख कर पांच सवाल किए गए। जवाब देश के युवाओं की राय को ही सामने रखता है।

सोशली साउंड जरूरी है

इंडिया में एक ऐसा समय भी आया, जब लोगों ने एकेडमिक एजुकेशन को ही सबकुछ मान लिया। लोगों के लिए यह रोजी-रोटी का एकमात्र साधन बन कर रह गया। पढ़ाई रोजी-रोटी के लिए ही की जाने लगी। लेकिन आज इसके मायने बदल गए हैं। आईआईटी, पटना में पढ़ाई कर रहे राजस्थान के प्रवीण का कहना है कि सोशली साउंड होना ही एजुकेशन के वास्तविक मायने हैं। वहीं बिहार के अमित का कहना है कि एजुकेशन एक टॉर्च है, जो लाइफ को इनलाइटेन करता है। जबकि मध्यप्रदेश के गौरव के अनुसार एजुकेशन वैसी विधा है, जो सोसायटी को लाभ पहुंचा सके। यूपी के कैलाश का कहना है कि सोशल मैनर्स ही एजुकेशन है। क्योंकि एकेडमिक एजुकेशन तो केवल प्रोफेशनल बनाती है। वहीं गुजरात के निशांत का मानना है कि एजुकेशन एक स्किल है, जो एक स्किल्ड मैन को एक ले मैन से जोड़ कर रखती है।

इंथुजियाज्म के मामले में भी चूजी

विवेकानंद के जमाने में लोगों को भले गीता, कुराण, और रामायण जैसे ग्रंथों के पात्र उनके लिए उत्साह वर्धन का काम करते हों, लेकिन आज यह मानक भी बदल गया है। किसी का इंथुजियाज्म अपने कॉलेज के डायरेक्टर सर को देखकर बढ़ता है, तो किसी को रतन टाटा इंस्पायर करते हैं। पढ़ाई भले ही वे इंजीनियरिंग की कर रहे हों, लेकिन सचिन तेंदुलकर, नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी जैसे लोगों की जीवनी उन्हें इंस्पायर कर रही है।

कमोडिटी से भी इमोशनली अटैच्ड

आज के यूथ भले ही अपने रिलेटिव्स के साथ इमोशनली अटैच्ड हों या नहीं हों, उन्हें अपनी कमोडिटी के साथ इमोशनल लगाव हो गया है। गौरव का कहना है कि इंसान हो या कमोडिटी, सबों के साथ लगाव हो सकता है। हालांकि कैलाश का कहना है कि हर लिविंग थिंग के साथ इमोशनल अटैचमेंट हो सकता है। जबकि अमित का कहना है कि ब्लड रिलेशन के साथ ही इमोशंस इंवॉल्व हो सकते हैं बाकियों के साथ तो सिर्फ इमोशनल अत्याचार होता है। वहीं प्रवीण का कहना है कि डे-टू-डे लाइफ में जो भी चीज साथ में है, उसके साथ इमोशनल अटैचमेंट हो सकता है।

इकॉनमी इन्हीं के बूते

जिस देश की 45 परसेंट से अधिक आबादी युवाओं की हो, जिस देश की इकॉनमी इन्हीं की आबादी के ऊपर निर्भर करती है, उसी वर्ग को आज इकॉनमी के मायने समझ में नहीं आ रहे हैं। आईआईटी के जिन भी युवाओं से हमने बात की, कोई भी इस बारे में संतुष्टि के लायक अपनी बातें नहीं रख सका। सतही जवाब ही सामने आया। जिन पांच आईआईटीयंस से बात की, उसमें से केवल एक ने बताया कि उन्हें मॉल कल्चर पसंद है। इससे अधिक वो इस पर कुछ नहीं कह सकते।

इंटरटेनमेंट के बिना अधूरी लाइफ

जी हां, वर्क हार्ड एंड पार्टी हार्डर की थ्योरी पर यकीन करने वाले इस तबके के लिए इंटरटेनमेंट के बिना तो लाइफ ही अधूरी है। पहले इसकी पूर्ति गुली-डंडे या फुटबॉल के सहारे हो जाती थी। लेकिन आज इसका स्थान मूवीज और म्यूजिक ने ले लिया है। आज के अधिकतर यूथ के लिए मूवी ही इंटरटेनमेंट का जरिया है। तभी तो आज इंटरटेनमेंट भी एक बड़ी इंडस्ट्री के रूप में उभर कर सामने आ गया है। इसके अलावा दोस्तों के साथ हैंगआउट करना तो इनके लिए मस्ट है।

Report by : Ujjwal