मनुष्य अपनी बुद्धि के द्वारा जानता है कि उसे पशुओं से अपनी रक्षा किस तरह करनी है, लेकिन वह यह नहीं जानता है कि उसे अपनी बुरी आदतों और गलत आचरणों से अपनी रक्षा कैसे करनी है। मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु वह स्वयं है। मनुष्य जब गलत है, तो उसे किसी दूसरों से डरने की बजाय अपने आप से डरना चाहिए।

बुरी आदतों से पराजित हो जाना स्वयं को अपना शत्रु बनाने के समान है। जीवन के इस साहसिक कार्य में सफल होने के लिए सबसे उत्तम तरीका है अपना मित्र बनना। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, 'स्वयं (आत्मा) रूपांतरित स्वयं (अहम) का मित्र है, लेकिन पुनरुद्धार से वंचित मन और इंद्रियों पर विजय न पाया हुआ स्वयं का शत्रु है। जंगल रूपी जीवन से सुरक्षित गुजरने के लिए आप अपने को उचित शस्त्रों यानी अच्छे गुणों से लैस रखें।

आपको एक भली-भांति प्रशिक्षित सिपाही बनना है। सामान्य व्यक्ति जो अपनी रक्षा करना नहीं जानता शीघ्र ही परास्त हो जाता है। एक बुद्धिमान व्यक्ति जो हर प्रकार के युद्ध के विरुद्ध शस्त्र-सज्जित रहता है-जैसे रोग के विरुद्ध, भाग्य और कर्मो के विरुद्ध, सभी बुरे विचारों और आदतों के विरुद्ध-वह इस साहसिक कार्य में विजयी हो जाता है। इसके लिए सतर्कता और कुछ विशेष विधियों द्वारा हम अपने शत्रुओं पर विजय पा सकते हैं। इसे ही अपनाने की आवश्यकता है।

ईश्वर ने हमें सुरक्षा का अद्भुत उपकरण दिया है-जो किसी भी औषधि से शक्तिशाली है। वह है मन। इस मन को ही शक्तिशाली बनाना चाहिए। मन उन सभी के प्रभाव को नियंत्रित करता है। जीवन के साहसिक कार्य का एक महत्वपूर्ण भाग है मन को नियंत्रित रखना। एक सफल जीवन का यही सार है।

सफल जीवन आत्मविश्लेषण से भी पाया जा सकता है। ज्यादातर लोग अपना विश्लेषण कभी नहीं करते हैं। आत्मविश्लेषण की उपेक्षा करके लोग अपने परिवेश से बंध कर यंत्रमानव रोबोट बने रहते हैं। सच्चा आत्म विश्लेषण उन्नति की महानतम कला है। प्रत्येक व्यक्ति को अपना विश्लेषण निष्पक्ष भाव से करना सीखना चाहिए।

परमहंस योगानंद

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