Cancer को हराना है
युवराज ने कैंसर को हराना अपनी जिंदगी का मकसद बना लिया है। कैंसर पर अपनी जीत के बाद युवराज ने अपनी पूरी ताकत इसके प्रति अवेयरनेस फैलाने में लगा दी है। कैंसर के खिलाफ लड़ाई के साथ-साथ क्रिकेट के प्रति जुनून और समर्पण भी इन्हें दूसरों से जुदा करता है। रांची में ट्यूज्डे को होटल रैडिशन ब्लू में कैंसर डिटेक्शन सेंटर की लांचिंग के बाद युवराज ने इससे लडऩे का अपना जज्बा जाहिर किया।

लड़ सकते हैं जंग
युवी के नाम से मशहूर क्रिकेटर युवराज सिंह ने कहा कि कैंसर होने के बाद अधिकांश लोग जीने का हौसला छोड़ देते हैं। उन्हें लगता है कि अब उन्हें मरने से कोई नहीं बचा सकता, लेकिन यह सच नहीं है। अगर हौसला मजबूत हो, तो कैंसर से लड़ाई लड़ी जा सकती है। यूवीकैन फाउंडेशन और अपोलो ग्लेनइगल्स ने रांची में कैंसर डिटेक्शन सेंटर खोला है।

Early stge में हो detection
युवराज ने कहा कि अर्ली स्टेज में कैंसर डिटेक्शन इससे लडऩे का सबसे अच्छा तरीका है। रांची में कैंसर डिटेक्शन सेंटर खुलने से अब यहां वे लोग भी कैंसर डिटेक्शन अफोर्ड कर पाएंगे, जो पैसे की कमी की वजह से ऐसा नहीं कर पाते थे। युवी ने कहा कि कैंसर का अर्ली डिटेक्शन इससे बचने का सबसे बढिय़ा तरीका है। अभी हमारा मकसद इसका अर्ली डिटेक्शन उपलब्ध कराना है। बाद में अगर किसी को इलाज में हेल्प की जरूरत होगी, तो उसकी मदद भी की जाएगी।

जब नहीं हारी हिम्मत
अपनी किताब द टेस्ट ऑफ माई लाइफ में युवराज सिंह लिखते हैैं -  जब मुझे कैंसर के बारे में पता चला, तो मुझे थोड़ी घबराहट हुई थी। लेकिन मैंने अपने मन को समझाया और हिम्मत के साथ स्वीकार किया कि मुझे कैंसर है। जब मैंने कैंसर को जंग में हरा दिया, तो मुझे हमेशा इस बात की चिंता सताती थी कि क्या मैं कभी दोबारा क्रिकेट खेल पाऊंगा? ऐसे समय में मशहूर साइक्लिस्ट लांस आर्मस्ट्रांग की किताब इट्स नॉट अबाउट ने मुझे मोटिवेशन मिला। मैंने सोच लिया कि मैं अंतिम दम तक अपना हौसला बनाए रखूंगा। मैंने अपना मनोबल हमेशा ऊंचा बनाए रखा। जिस कारण मैं कैंसर जैसी बीमारी को हरा पाया।

Cancer से करिए मुकाबला
युवराज ने अपनी किताब में लिखा है कि जब आप बीमार होते हैैं, तो आप पूरी तरह निराश होने लगते हैैं। कुछ सवाल भयावह सपने की तरह बार-बार आपको सता भी सकते हैैं। लेकिन आपको सीना ठोंक कर खड़ा होना चाहिए और मुश्किल सवालों का सामना करना चाहिए। इस देश में करीब 50 लाख कैंसर के पेशेंट्स हैैंं, लेकिन जहां तक किसी सेलिब्रिटी का सवाल है, तो मुझे नरगिस का नाम याद आता है।

Google से पूछता था सवाल
युवी लिखते हैं - वह जून का महीना था, जब अपने वतन से दूर अमेरिका में लंबे समय के लिए मेरा इलाज शुरू हुआ। मैं कभी-कभी अपनी लैपी ऑन करता और मिस्टर गूगल से पूछता-व्हाट इज कैंसर? मुझे मेरे सवाल के 175 मिलियन जवाब मिल जाते और मैं खीझ कर अपनी लैपी बंद कर देता। उस वक्त मैं रोज 50 टैब्लेट ले रहा था। हर तीसरे हफ्ते मैं बुखार से जूझता और दर्द से पूरा बदन टूटने लगता। लेकिन उस वक्त भी जब मैैंं खुद को हताश देखता, तो खुद को और दूसरों को यह बताता कि यह एक सामान्य ट्यूमर है। खत्म हो जाएगा और मैं जल्द ही ठीक हो जाऊंगा।

सेमिनोमा के शिकार थे युवराज
युवराज दुर्लभ कैंसर सेमीनोमा के शिकार थे। उन्हें एक डॉक्टर ने भारतीय अंदाज में समझाया कि आपका ट्यूमर शायद सचिन तेंदुलकर न हो, लेकिन वह विराट कोहली जरूर है। वह भी खतरनाक हो सकता है और कुल मिलाकर इसे आपको आउट करना है। युवी के पिता योगराज पंजाब क्रिकेट सर्किल में भी पॉपुलर नहीं थे, पर इसका भी युवी को फायदा मिला। युवी लिखते हैैं- चंडीगढ़ में हर कोई जानता था कि वह क्या थे, कोई भी मुझसे पंगा नहीं लेना चाहता था, क्योंकि कोई भी मेरे पिता से बहस में नहीं पडऩा चाहता था। ठीक उसी दौरान जिन लोगों को उनसे प्रॉब्लम थी, उन्होंने अपने व्यवहार से मुझे काफी दुख दिया। लेकिन युवराज सिंह को अनुशासनप्रिय पिता के सख्त रवैए का रिजल्ट भी मिला। 40 टेस्ट, 282 ओडीआई और 33 टवेंटी-टवेंटी इंटरनेशनल मैच और कैंसर के खिलाफ जीत।

दर्द बन गई दवा
अज्ञेय की प्रसिद्ध काव्य पंक्ति है- दुख सबको मांजता है, स्वयं चाहे मुक्ति देना वह न जाने, किन्तु जिनको मांजता है, उनको यह सीख देता है कि सबको इससे मुक्त रखे। कैंसर के दुख ने युवराज को मांजा और उनका दर्द दूसरों के लिए दवा बन गई। कैंसर से जीत के बाद युवी की कठिन यात्रा सार्वजनिक क्षेत्र की ओर मुड़ चली। दुनिया को कैंसर के साथ अपनी जंग के बारे में बताकर वह अब दूसरों को भी कैंसर से फाइट करने के लिए मोटिवेट कर रहे हैैं। ये काम वह अपनी चैरिटी यूवीकैन के जरिए कर रहे हैं।