बॉलीवुड में पहचाने जाने में उन्हें 13 साल लगे हैं. पलक झपकते ही फिल्म से गायब हो जाने वाले रोल से लेकर हीरो बनने तक का सफर नवाजुद्दीन सिद्दिकी के लिए न सिर्फ लम्बा बल्कि उतार-चढ़ाव भरा भी रहा है. एक के बाद एक फिल्में लाइन-अप होने की वजह से वह 2012 को अपना साल कहते हैं. उनकी लेटेस्ट फिल्म, अनुराग कश्यप की गैंग्स ऑफ वासेपुर इस वीकेंड रिलीज हो चुकी है. फिलहाल, अहमदाबाद में शूटिंग कर रहे हैं और पूरी तरह नो-नेटवर्क जोन में हैं. मगर नेटवर्किंग एक ऐसी चीज है जो उन्हें करने की जरूरत नहीं है. अपने खाते में कई सारी फिल्मों के साथ, उनकी रीसेंट परफॉर्मेंसेस ने खुद उनके लिए बहुत कुछ बोला है:


अचानक एक जाना हुआ नाम बनने के बदलाव से आप कैसे डील कर रहे हैं?


अभी एक दिन मैं अहमदाबाद एयरपोर्ट पर था और लोग लगातार मुझे देख रहे थे. लोग मुझे दोबारा पलटकर देखते हैं और तब उन्हें रियलाइज होता है कि वह नवाजुद्दीन को देख रहे हैं. लोग मुझसे कहते हैं, ‘आप कहानी में सीबीआई इंस्पेक्टर थे ना?’ कहानी के बाद मुझे लोग देखने और टोकने लगे हैं. आमिर खान की फिल्म सरफरोश में मेरा एक छोटा सा रोल था. ये 1999 की बात है. मैं कह सकता हूं कि कहानी के बाद, बतौर एक्टर, मेरी जिंदगी का अगला चैप्टर शुरू हुआ है. कांस फिल्म फेस्टिवल में जाना एक और अच्छी चीज थी.

अनुराग कश्यप के साथ आपकी रैपो काफी अच्छी है?


अनुराग ने कभी भी किसी रोल के लिए मेरा ऑडिशन नहीं लिया. मैं उनकी पिछली फिल्म ब्लैक फ्राइडे और देव डी का भी हिस्सा था. असल में वासेपुर के सेकंड पार्ट में मेरा और भी बड़ा रोल होगा. छोटे-छोटे रोल करने के बाद फिल्म का मेन रोल करना अच्छा लगता है.

मगर आपको छोटे रोल में भी काफी नोटिस किया गया?


मैं कबीर खान की न्यूयॉर्क का हिस्सा था. उसे देखने के बाद सुजॉय घोष को मेरी याद आई और उन्होंने मुझे कहानी के लिए बुलाया. पीपली [लाइव] के बाद भी मुझे नोटिस किया गया. बीते कुछ साल में मैंने कई प्रोजेक्ट्स में कई छोटू रोल किए हैं. अब अगर आप उन्हें देखें तो आप मुझे एक चालीस की लास्ट लोकल जैसी फिल्मों में पहचान पाएंगे.

आपकी अचानक बढ़ी डिमांड की वजह क्या हो सकती है?


फिल्म इंडस्ट्री में सिर्फ खूबसूरत किरदारों की डिमांड धीरे-धीरे बदल रही है. ये मेरे जैसे लोगों को इसका हिस्सा बनने का मौका दे रहा है. लम्बे वक्त तक हीरो के बारे में एक राय रही है. उसे लम्बा, गुड लुकिंग होना ही होता था. मगर अब राइटर्स ऐसी स्क्रिप्ट लिख रहे हैं जिसमें असली कैरेक्टर हों. अब हीरो-हीरोइन के सिवा दूसरों के पास भी करने के लिए कुछ है. असल में, जब मैंने अपनी फैमिली को एक्टर बनने के अपने सपने के बारे में बताया था तो वे हैरान हो गए. मैं एक साइंस स्टूडेंट था और ग्रेजुएशन के बाद मैंने एक जॉब भी की. मगर मैं हमेशा एक एक्टर बनना चाहता था, सो एनएसडी तक पहुंच गया.

आपके जाननेवालों ने आपकी सक्सेस पर कैसे रिएक्ट किया?


मेरी फैमिली बुधाना नाम के एक छोटे से कस्बे में रहती है. ये यूपी के मुजफ्फरनगर जिले में पड़ता है. मेरे कई भाई-बहन हैं. मेरी बीवी और मेरी बेटी भी वहीं रहते हैं. मुम्बई में मेरे भाई शमास नवाब, जो एक डायरेक्टर हैं, के सिवा मेरे साथ कोई भी नहीं रहता. घर के इलाके में कोई थिएटर नहीं है और उन्हें फिल्म देखने के लिए काफी दूर जाना होता है. मेरे घरवाले बहुत सिम्पल हैं और मेरी पहचान का अंदाजा उन्हें अब जाकर हुआ है. लोग मेरी फिल्में देखते हैं और उन्हें बताते हैं कि मैं क्या कर रहा हूं.