- दर्जनों इंटरनेशनल प्लेयर्स देने वाले गोरखपुर में अब सिर्फ कुछ लोगों ने जिंदा रखी है हॉकी

- फ्यूचर सिक्योर न होने से नई पौध नहीं रखती कदम

- वहीं जमीन और घास में खेलाकर ओलंपिक में गोल्ड जीतने के सपने देखते हैं जिम्मेदार

GORAKHPUR: देश के नेशनल गेम हॉकी का जो हाल ओलंपिक में हो रहा है, उसके लिए कोई और नहीं बल्कि सरकार ही जिम्मेदार हैं। सुविधाएं देने के नाम पर सिर्फ कोरम पूरा कर नेशनल गेम को जिंदा रखने की कोशिश की जा रही हैं। कागजों में यहां हॉकी काफी फल-फूल भी रही है, लेकिन इसकी हकीकत की ओर निगाह डालें तो यहां बिना हथियार के जंग लड़कर जीतने जैसा माहौल है। नन्हें और नए खिलाड़ी अपनी टीम को जीत दिलाने के लिए मेहनत कर पसीना बहा रहे हैं, लेकिन जब हकीकत से उनका सामना हो रहा है तो सुविधाओं के अभाव में वह दूसरों से कॉम्प्टीट करने में खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं। दर्जनों इंटरनेशनल प्लेयर्स के अलावा ओलंपियन देने वाली गोरखपुर हॉकी की नर्सरी अब सुविधाओं के अभाव में मुरझाने लगी है।

बुनियादी जरूरत ही पूरी नहीं

आज के दौर में स्टेट, नेशनल या इंटरनेशनल लेवल पर जो भी हॉकी के कॉम्प्टीशन होते हैं। वह सिंथेटिक एस्ट्रोटर्फ पर ही होते हैं। मगर सबसे जरूरी और बुनियादी सुविधा होने के बाद भी यहां के खिलाड़ी अब तक इससे वंचित है। मिट्टी और घास के ग्राउंड से शुरुआत करने के बाद जब खिलाड़ी किसी बड़े कॉम्प्टीशन में हिस्सा लेने के लिए पहुंचते हैं तो वह खुद को कॉम्प्टीशन में कहीं खड़ा नहीं पाते। कड़ी मशक्कत के बाद एक-दो मैच जीत लिया तो जीत लिया, वरना बोरिया-बिस्तर पैक कर वापस लौट जाते हैं। जिस तरह की सुविधाएं मिल रही हैं, उससे जिम्मेदार सिर्फ नेशनल में पार्टिसिपेशन से ही संतोष कर लेते हैं।

सिर्फ इंतजार कर रहे खिलाड़ी

प्रदेश सरकार ने जब स्पो‌र्ट्स कॉलेज में एस्ट्रोटर्फ लगने के लिए हरी झंडी दी और इसके लिए बजट जारी किया, तो जाकर हॉकी खिलाड़ी और जिम्मेदारों को कुछ उम्मीद जगी है। मगर पिछले कई साल से इसका इंतजार कर रहे खिलाडि़यों का इंतजार अब भी खत्म नहीं हो सका है। एस्ट्रो टर्फ लगाने का काम शुरू हुआ है। अभी इसमें काफी वक्त लगेगा, तब तक खिलाडि़यों को उसी ग्रास ग्राउंड पर प्रैक्टिस करनी होगी। वहीं शहर के दूसरे खिलाडि़यों को अभी जमाने के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए इंतजार करना होगा।

सिर्फ तीन जगह होती है प्रैक्टिस

गोरखपुर में पहले हॉकी की नर्सरी हुआ करती थी। ज्यादातर स्कूल और कॉलेजेज के साथ ही स्टेडियम, स्पो‌र्ट्स कॉलेज में हॉकी की प्रैक्टिस होती थी। टूर्नामेंट में भी काफी जोरदार लड़ाई और टक्कर देखने को मिलती थी। मगर अब सिर्फ तीन जगह ही हॉकी खेली जाती है। एमएसआई इंटर कॉलेज, जिसने गोरखपुर को दर्जनों इंटरनेशनल प्लेयर्स दिए हैं, वहां अब भी हॉकी को जिंदा रखने की कोशिश जारी है। वहीं स्पो‌र्ट्स कॉलेज और रीजनल स्टेडियम में भी हॉकी का कैंप चलता है, जहां प्रैक्टिस हो रही है। बाकी सभी स्कूल और कॉलेजेज के साथ यूनिवर्सिटी लेवल तक हॉकी खत्म हो चुकी है।

नहीं है कोई जॉब गारंटी

हॉकी से दूर जाने की वजह जब टटोली गई, तो इसमें सबसे टॉप पर जॉब सिक्योरिटी का सवाल सामाने आया। सिर्फ रेलवे के अलावा कोई भी विभाग स्पो‌र्ट्स कोटे के तहत खिलाडि़यों की भर्ती नहीं करता, उसमें भी एक गेम से रेलवे भी कितनी भर्ती कर सकता है। वहीं प्रदेश सरकार के पास दर्जनों विभाग हैं, सबमें स्पो‌र्ट्स कोटा के तहत भर्ती की जा सकती है, लेकिन काफी समय से इसमें कोई भर्ती नहीं की गई। इससे जॉब गारंटी की चांसेज और भी कम हो गई।

सुविधाएं मिलें तो बरसेंगे मेडल

ऐसा नहीं कि गोरखपुराइट्स में टैलेंट की कमी है। एस्ट्रोटर्फ न होने के बाद भी शहर के होनहार बेहतर प्रदर्शन करते हैं। बस अगर उन्हें एस्ट्रोटर्फ के साथ जरूरी सुविधाएं मिलने लगें तो मेडल्स की बरसात हो। यह हम ऐसे ही नहीं कह रहे हैं, बल्कि पिछले साल आए रिजल्ट को देखकर यह कहा जा सकता है। साल 2015 में प्रैक्टिस के बाद जहां 4 स्टूडेंट्स नेशनल खेलने के लिए गए, वहीं करीब चार प्लेयर्स का साई हॉस्टल और स्टेडियम में सेलेक्शन भी हुआ है। अगर इन्हें स्टार्टिग से ही बेहतर सुविधाएं मिलने लगे तो गोरखपुराइट्स मेडल्स की बरसात करेंगे।

इनका हुआ सेलेक्शन -

2016 - ममता गौड़, सांई हॉस्टल भोपाल

2015 -

वर्षा आर्या - केडी सिंह बाबू स्टेडियम

आदित्य तिवारी - सांई हॉस्टल बरेली

रोहित श्रीवास्तव - सांई हॉस्टल बरेली

आतिफ - स्पो‌र्ट्स कॉलेज लखनऊ

शहर में हॉकी के लिए बुनियादी सुविधाएं ही नहीं हैं। जब यहां के खिलाड़ी ग्रास ग्राउंड में खेलने के बाद किसी बड़े इवेंट में पार्टिसिपेट करने के लिए जाते हैं, तो उन्हें सिंथेटिक एस्ट्रोटर्फ का मैदान मिलता है। इसमें उन्हें काफी दिक्कत होती है, जिससे वह कोई कमाल नहीं दिखा पाते। प्राइमरी लेवल पर ही उन्हें यह सुविधा मिलेगी, तो बात बन सकती है।

- प्रेम माया, अर्जुन अवार्डी, इंटरनेशनल हॉकी प्लेयर

गोरखपुर में स्कूलों से हॉकी बिल्कुल खत्म हो गई है। बस इस्लामियां कॉलेज में ही हॉकी के मैच होते हैं। इसमें भी होने वाले टूर्नामेंट में एक्का-दुक्का टीमें ही पार्टिसिपेट करती हैं। इसको बेहतर करने के लिए स्कूल लेवल पर हॉकी को फिर से स्टार्ट करना होगा और उन्हें बेहतर सुविधाएं मुहैया करानी होंगी।

- जिल्लुर्रहमान, इंटरनेशनल हॉकी प्लेयर

स्टेडियम में 2015 से मेरी ज्वाइनिंग हुई है। इसके बाद से अब तक 5 स्टूडेंट्स का स्पो‌र्ट्स हॉस्टल के लिए सेलेक्शन हो चुका है। वहीं 4 प्लेयर्स नेशनल में खेलने के लिए जा चुके हैं। प्रीति दुबे के सेलेक्शन के बाद काफी पेरेंट्स अपने बच्चों को हॉकी की ट्रेनिंग दिलाने के लिए स्टेडियम में ला रही हैं।

- शालिनी विश्वकर्मा, हॉकी कोच, रीजनल स्पो‌र्ट्स स्टेडियम