- मुंबई में वीडियो गेम्स के चलते बच्चे की मौत के बाद उठे सवाल

- टीचर्स और मनोवैज्ञानिक बोले कि बच्चों की हर गतिविधि पर रखें नजर

आई कंसर्न

पारुल सिंघल

मेरठ। बदलते दौर में बच्चे कंम्प्यूटर और मोबाइल पर वीडियो गेम्स के आदी हो चुके हैं। पर यही गेम्स कभी कभी बच्चों की जान के दुश्मन तक बन जाते हैं। बीते दिनों मुम्बई में 9वीं क्लास के स्टूडेंट ने सुसाइड कर लिया। माना जा रहा है कि 'ब्लू व्हेल गेम', खेलते हुए उसने अपनी जान दे दी। एक्सपर्ट की मानें तो बच्चे ऐसे गेम्स न खेले इसके लिए जरूरी है कि उन्हें टाइम दिया जाए। शहर भर में स्कूल संचालक मानते हैं कि इनदिनों पैरेंट्स के पास बच्चों के लिए टाइम ही नहीं हैं। ऐसे में बच्चे खुद को गैजेट्स में इंवाल्व कर लेते है।

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वर्जन

आज के परिवेश में पैरेंट्स अपने बच्चों को न नहीं कहते। उनकी डिमांड के अनुसार सब कुछ प्रोवाइड कराया जाता है। दरअसल, बच्चों के लिए एक दायरा जरूरी है। पैरेंट्स बच्चों को सुपरवाइज करें। बच्चे जो भी करें उसके कंटेंट पर नजर रखें। इसके साथ ही उनके गैजेंट्स चेक करते रहे।

राहुल केसरवानी, सहोदय अध्यक्ष व प्रमुख मेरठ सिटी पब्लिक स्कूल

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बिजी पैरेंट्स दे बच्चों को वक्त

ऑरिएंटेशन प्रोग्राम में अक्सर यह देखने में आता हैं कि सीनियर क्लासेज के स्टूडेंट्स के पैरेंट्स बच्चों के लिए टाइम नहीं निकाल पाते। बच्चों को लैपटॉप, स्मार्टफोन दे दिए जाते हैं और बच्चे अकेले में बैठकर ऐसी एक्टिविटीज में इंवाल्व हो जाते है।

प्रेम मेहता, पि्रंसिपल, सिटी वोकेशनल पब्लिक स्कूल

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पैरेंट्स और बच्चों को कम्यूनिकेशन है जरूरी

स्कूल में बच्चों के लिए काउंसलिंग सेशन चलाए जाते हैं। डू एंड डांट्स के बारे में उन्हें जानकारी दी जाती है। पैरेंट्स के लिए भी पीटीएम की जाती हैं ताकि वह अपने बच्चे की रिपोर्ट जान सकें। जरूरी है कि बच्चों को पैंरेंट्स जो स्पेस देते है उसमें उन्हें बिल्कुल अकेला न छोड़ दें। बच्चों की बातों को सीरियसली लें।

अनुपमा सक्सैना , प्रिंसिपल, गार्गी ग‌र्ल्स स्कूल

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तेज रफ्तार जिंदगी में से बच्चों को पीछे न छोड़े

सोशल सिक्योरिटी कर डर और कुछ अलग करने की चाह ने बच्चों को आउटडोर एक्टिविटिज से दूर कर दिया है। अकेले कमरे में बच्चे लैपटॉप और मोबाइल में खो जाते हैं और उन्हें जो एक्साइटिंग लगता है वो करते हैं। स्कूल मैनेजमेंट के साथ ही पैरेंट्स की सबसे बडी जिम्मेदारी है कि अपने बच्चों को अकेला न होने दें। उन्हें वक्त दें। अभी भी नहीं अवेयर हुए तो बहुत देर हो जाएगी।

डॉ। विभा नागर, मनोवैज्ञानिक, सीसीएसयू

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क्या है 'द ब्लू व्हेल गेम'

रूस में बने गेम का नाम ब्लू व्हेल चैलेंज है। इसे 'द ब्लू व्हेल गेम' के नाम से भी जाना जाता है। इस सुसाइड गेम के कई नाम हैं। इनमें 'अ साइलेंट हाउस', 'अ सी ऑफ व्हेल्स' और 'वेक अप मी एट20 एम' शामिल है। दुनियाभर में इस गेम को खेलते हुए 250 से ज्यादा लोग सुसाइड कर चुके हैं, जिसमें 130 बच्चे सिर्फ रूस के हैं। भारत में भी इस खूनी गेम की दस्तक हो गई है।

गेम का टास्क

-'द ब्लू व्हेल गेम' में 50 दिन तक टास्क बताए जाते हैं। इसे इंटरनेट पर खेला जाता है

-हर टास्क को पूरा करने पर हाथ पर एक कट करने के लिए कहा जाता है। आखिर में व्हेल की आकृति उभरती है।

- सुबह 4.20 बजे गेम का एडमिन अगले टास्क के लिए कोड देता है।

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-टास्क पूरा करने पर हाथ की 3 नसों को काटकर उसकी फोटो क्यूरेटर को भेजनी होती है। कागज की सीट पर व्हेल बनाकर क्यूरेटर को भेजना होता है

-व्हेल बनने के लिए तैयार होने पर अपने पैर में 'यस' उकेरना होता है और नहीं तैयार होने पर अपने को चाकू से कई बार काटकर सजा देना होता है

-50वें दिन प्लेयर को किसी ऊंचे छत से कूदकर खुदकुशी कर विजेता बनने की बात कही जाती है। इस सुसाइड गेम में प्लेयर को एडमिन के पास हर स्टेज कम्पलीट करने के बाद प्रुफ के तौर पर तस्वीर और वीडियो भेजनी होती है