RANCHI: कौन कहता है जहां वषरें से अंधियारा है, वहां उजाला नहीं होगा। बिखरी है जहां वषरें से खामोशियां, वहां हंसी का फुहारा नहीं होगा। अरे बदलाव आएगा, पहले अलाव तो जलाओ। अंधियारा मिटाने के लिए दीये में दिल से आग तो लगाओ। जी हां, अगर मन में कुछ करने की चाह हो तो कुछ भी असंभव नहीं है। तभी तो जो बच्चे पहले गुंडा बनना चाहते थे, वो आज शिक्षक या सैनिक बनना चाह रहे हैं। देश के लिए कुछ करना चाहते हैं। यह सब संभव हुआ है रिटायर्ड फौजी ललन कुमार मिश्रा की बदौलत, जो उम्र से भले बुजुर्ग हों पर दिल से आज भी जवान हैं।

मुफ्त में पढ़ा रहे बच्चों को

ललन मिश्रा हरमू हाउसिंग कॉलोनी के शिव मंदिर में गरीब बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं। झुग्गी-झोपड़ी में रहनेवाले गरीब बच्चों को एकत्रित कर शिक्षा के साथ स्वास्थ्य और आर्ट एंड क्राफ्ट का भी पाठ पढ़ा रहे हैं। वह भी नि:शुल्क। हर रोज बच्चों को दो शिफ्ट (शाम चार से रात आठ बजे तक)पढ़ाते हैं। साथ ही रविवार को एक्सरसाइज भी करवाते हैं। ये वैसे बच्चे हैं जो गरीबी के कारण अपराध के दलदल में जाने का मूड बना चुके थे।

एक से चार और फिर 74 बच्चे

श्री मिश्रा कहते हैं कि पिताजी हाइस्कूल के शिक्षक रहे हैं। पत्‍‌नी कल्पना मिश्रा 12 साल तक टीचर रहीं। मैं खुद देश की सेवा के लिए भारतीय सेना में शामिल हुआ। 2006 में रिटायर हुआ। इसके बाद छोटा-मोटा काम करते रहे। शिव मंदिर प्रबंधन समिति का भी रख-रखाव करता हूं। वह कहते हैं कि मंदिर के आस-पास भीख मांग रहे बच्चों को देख कर काफी दुख होता था। लोग आते और एक-दो रुपए देकर चले जाते। इनकी जरूरत और शिक्षा की किसी को कोई चिंता नहीं थी। वह कहते हैं कि 65 बच्चे मेरे लिए चैलेंज हैं। इन्हें शिक्षित कर अच्छा इंसान बनाना है। चार बच्चों से सेंटर शुरू हुआ था। वह बताते हैं कि मंदिर से निकलनेवाले कचरे के बीच सिक्का खोजते बच्चों को देख कर बुलाया। कहा कि कल से कॉपी-पेंसिल लेकर आओ। हम पढ़ाएंगे। दो-तीन दिनों तक कोई बच्चा नहीं आया। चौथे दिन फिर मंदिर के पास भीख मांगते नजर आए। तब बच्चों को प्यार से समझा कर अगले दिन बुलाया। चार जून 2017 को सिर्फ एक बच्चा कॉपी-पेंसिल लेकर आया। इसके बाद एक से चार और चार से 74 बच्चे हो गए।

खुद काटते हैं बच्चों के बाल व नाखून

इन बच्चों का वह खुद नाखून और बाल काटते हैं। फिर नहला कर तैयार करते हैं। उनका मानना है कि इस सेंटर में जितने भी बच्चे हैं, सभी 60 प्रतिशत से अधिक अंक ला सकते हैं। सभी में पढ़ने की इच्छा शक्ति है। नर्सरी से नौवीं तक के बच्चे हैं। किसी की मां घरों में नौकरानी का काम करती है, तो पिता रिक्शा चलाते हैं। श्री मिश्रा कहते हैं कि मैंने यह बीड़ा खुद उठाया है। इसलिए सरकार या किसी एनजीओ की मदद की जरूरत नहीं है। इसे आगे बढ़ाने में पांच से छह वर्ष लगेंगे। इसके लिए काम कर रहा हूं।